वजूद, यक्षगान, ग्रहण और अँधेरा महज चार लम्बी कहानियाँ नहीं है- ये हमारे कथा साहित्य की विरल उपलब्धियाँ है | इन्ही चारो कहानियो से तैयार हुआ है अत्यंत महत्वपूर्ण और बहुचर्चित कथाकार अखिलेश का नया कहानी-संग्रह अँधेरा | अखिलेश हिंदी की ऐसी विशिष्ट प्रतिभा है जिनके लेखन को लेकर साहित्य-जगत उत्सुक और प्रतीक्षारत रहता है | अखिलेश की रचनात्मकता के प्रति गहरे भरोसे का ही नतीजा है की उनकी रचनाएँ साहित्य की दुनिया में ख़ास मुकाम हासिल करती है | निश्चय ही इस अनोखे विश्वास के निर्माण में अँधेरा की कहानियो को अहम भूमिका है |
अँधेरा में शामिल चारो कहानियाँ लगातार चर्चा के केन्द्र में रही है | इन्हे जो ध्यानाकर्षण-जो शोहरत मिली है, वह कम रचनाओ को नसीब होती है | इनके बारे में अनिक प्रकार की व्याख्याएँ, आलेख ,टिप्पणियाँ और विवाद समय-समय पर प्रकट हुए है | पर इन सबसे ज्यादा जरुरी बात यह है की चारो कहानियो पर पाठको ने भी मुहर लगाई है |
हमारे युग की मनुष्य -विरोधी शक्तियों से आख्यान की भिड़न्त , भाषा की शक्ति, शिल्प का वैविध्य तथा उत्कर्ष, प्रतिभा की विस्फोटक सामर्थ्य-ये सभी कुछ कोई एक जगह देखना चाहता है तो उसे अखिलेश का कहानी-संग्रह अँधेरा अवश्य पढ़ना चाहिए |
अँधेरा की कहानियो की ताकत है की वे अपने कई -कई पाठ के लिए बैचेन करती है | यही नहीं, वे प्रत्येक अगले पथ में नई व्यंजना, नए अर्थ , नए सौंदर्य से जगमगाने लगती है | इसी बिंदु पर अँधेरा की कहानियाँ न केवल पढ़े जाने और एकाधिक बार पढ़े जाने की इच्छा जगाती है , बल्कि सहेजकर रखे जाने की जरुरत भी पैदा करती है |
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