वेद विश्व का प्राचीनतम वाड्मय है। समस्त मानवों के अभ्युत्थान के लिए एक मात्र वेद ही सर्वस्व है - वेदोऽखिलो धर्ममूलम् । भारतीय संस्कृति, धर्म, दर्शन, अध्यात्म, आचार-विचार, रीति-रिवाज, विज्ञान-कला ये सभी वेद से अनुप्राणित है। भारतीय मनीषियों ने वेद को सनातन, नित्य और अपौरुषेय माना है। वैदिक मन्त्रों के समूह को सूक्त कहते हैं और प्रत्येक सूक्त/मन्त्र में देवत्व-शक्ति निहित है। वेद-वर्णित सूक्तों में इन्द्र, विष्णु, श्री (लक्ष्मी), गणेश, सरस्वती, रुद्र, उषा, पर्जन्य प्रभृति देवताओं की अत्यन्त सुन्दर प्रार्थनाएं हैं। वेद के प्रत्येक मन्त्र के प्रारम्भ में 'ॐ' का उच्चारण होता है। 'ऊँ' (प्रणव) ब्रह्म का वाचक है- तस्य वाचकः प्रणवः। 'ऊँ' वह मूल ध्वनि है जो अ+उ+म् नाम की तीन ध्वनियों में फैल जाती है। ऋक्-यजुः-साम की वेदत्रयी इन्हीं तीन मात्राओं का उपबृंहण करती है। तीन महाव्याहतियां भूः भुवः और स्वः भी इन्हीं तीन मात्राओं से निकलती हैं। यह गायत्री मन्त्र के बीज हैं। गायत्री मन्त्र को वेद का सार-सर्वस्व कहा गया है।
प्रस्तुत कृति में ग्यारह महत्त्वपूर्ण लेखों में विद्वान् लेखक ने उक्त विषयों का अत्यन्त सुन्दर विवेचन किया है। आशा है इससे केवल प्रबुद्ध पाठक ही नहीं, अपितु जनसाधारण भी पर्याप्त रूप से लाभान्वित होंगे।
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