इसी कला आधार को विस्तृत रूप एवं अधिक सारगर्भित रूप से समझने एवं विषय की सर्वाधिक प्राचीनतम उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए संकुचित क्षेत्र मारवाड़ एवं मेवाड की नाथ सम्प्रदाय भित्ति चित्रकला विषय चुना गया। दोनों ही क्षेत्र नाथ सम्प्रदाय के प्राचीन एवं प्रमुख केन्द्र है एवं दोनों क्षेत्रों में यह सम्प्रदाय राजदरबार के संरक्षण में अत्यधिक विकसित हुआ है इस कारण कई ऐतिहासिक मन्दिरों व महलों का निर्माण हुआ जो इसके कलात्मक वैभव के साक्षी है। नाथ सम्प्रदाय की भित्ति चित्रकला के माध्यमों में पुरातनता एवं विभिन्नता होते हुए भी संयोजन के गुण तत्वों से युक्त सशक्त रेखांकन ने इसकी चारुता में अभिवृद्धि कर दी है।
अंततः इसकी कलात्मक गुणवत्ता को तथ्यपरक जानकारियों के साथ समग्रता से अध्ययन सर्वेक्षण व प्रगटन करने हेतु यह शोध प्रबंध एक पुस्तक रूप में नाथ संप्रदाय का सांस्कृतिक अध्ययन (भित्तिचित्र विशेष संदर्भ - मारवाड़ एवं मेवाड़) प्रस्तुत है।
शोध प्रबन्ध को और अधिक सारगर्भित रूप से समझने एवं विषय की सर्वाधिक प्राचीनतम उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए संकुचित क्षेत्र मारवाड़ व मेवाड़ की नाथ सम्प्रदाय की भित्ति चित्रकला विषय चुना गया।
प्राचीन भित्ति चित्र परम्पराओं व तकनीक का अध्ययन मुझे सदा से प्रिय रहा है। आदरणीय कलागुरु कलाविद् प्रो. देवकीनन्दन जी शर्मा सर के सानिध्य में मुझे एक वर्षीय म्यूरल चित्रण में स्नातकोत्तर डिप्लोमा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। तभी शोध के संस्कार बीज रूप से अंकुरित हो गये और आदरणीय भाई साहब जी (सर) के कला के प्रति समर्पण व साधना ने मुझे भी अत्यन्त प्रेरित किया और भित्ति चित्रण से संबंधित शोध की दिशा में यात्रा आरम्भ हुई।
अतः गुरु सत्ता के आशीर्वाद की फलश्रुति से जब नाथ सम्प्रदाय की कला से साक्षात्कार हुआ तब मेरे द्वारा नाथ सम्प्रदाय की भित्ति चित्रकला का विषय ही शोध प्रबन्ध हेतु चुनाव का प्रिय एवं मुख्य आधार बना।
राजस्थान में मेवाड़ व मारवाड़ दोनों ही क्षेत्र नाथ सम्प्रदाय के प्राचीन व प्रमुख केन्द्र हैं एवं दोनों राज्यों में यह सम्प्रदाय राजदरबार के संरक्षण से अत्यधिक विकसित हुआ है इस कारण कई ऐतिहासिक मन्दिरों, मठों व महलों का निर्माण हुआ जो इसके कलात्मक वैभव के साक्षी हैं।
नाथ सम्प्रदाय की पुरातनता व इसकी चित्रकला के माध्यमों में विभिन्नता होते हुए भी संयोजन के गुण तत्त्वों से युक्त सशक्त रेखांकन ने इसकी चारूता में अभिवृद्धि कर दी है। अतः मैं भी इसके आकर्षण से मुग्ध हुए बगैर ना रह सकी। अन्ततः इसकी कलात्मक गुणवत्ता को तथ्यपरक जानकारियों के साथ समग्रता से अध्ययन व प्रगटन करने हेतु अपने शोध प्रबन्ध के विषय रूप में इसका चयन किया।
सर्वप्रथम मैं अपने आध्यात्मिक गुरु श्रद्धेय आचार्य श्री स्वामी अवधेशानन्द गिरी जी महाराजकी असीम सहृदयता के प्रति सदैव श्रद्धा सहित नतमस्तक हूँ जिन्होंने मुझे शोध प्रबन्ध के गूढ़ रहस्यों को समझने एवं पूर्ण करने की सामर्थ्य प्रदान की। इस शोध प्रबन्ध की पूर्णाहूति में आदरणीय स्वामीजी अचलानन्दगिरि (सैनाचार्यजी) महाराजजीद्वारा मिले स्नेहिल आशीर्वाद
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