प्रस्तावना
१९४१ में पहली दफा लिखे गये 'रचनात्मक कार्यक्रम-अुसका रहस्य और स्थान' की यह पूरी तरह सुधारी हुअी आवृत्ति है । अिसमें शामिल किये गये विषय किसी खास सिलसिलेसे नहीं लिखे गये हैं; निश्चय ही अुन्हें अुनके महत्वके अनुसार स्थान नहीं मिला है । जब पाठक देखें कि किसी खास विषयको, जो पूर्ण स्वराज्यकी रचनाकी दृष्टिसे अपना महत्व रखता है, कार्यक्रममें जगह नहीं मिली है, तो अुन्हें समझ लेना चाहिये कि बह जान-बूझकर नहीं छोड़ा गया है । वे बिना हिचकिचाये अुसे मेरी सूचीमें शामिल कर लें और मुझे बता दें । मेरी यह सूची पूर्ण होनेका दावा नहीं करती; यह तो महज मिसालके तौर पर पेश की गयी है । पाठक देखेंगे कि अिसमें कअी नये और महत्वके विषय जोड़े गये हैं।
पाठकोंको, फिर वे कार्यकर्ता और स्वयंसेवक हों या न हों, निश्चित रूपसे यह समझ लेना चाहिये कि रचनात्मक कार्यक्रम ही पूर्ण स्वराज्य या मुकम्मल आजादीको हासिल करनेका सच्चा और अहिंसक रास्ता है। अुसकी पूरी-पूरी सिद्धि ही संपूर्ण स्वतंत्रता है । कल्पना कीजिये कि देशके चालीसों करोड़ लोग देशको बिलकुल नीचेसे सूपर अुठानेके लिअे रचे गये समूचे रचनात्मक कार्यक्रमको पूरा करनेमें लग गये हैं । क्या कोआई जिस बातसे अिनकार कर सकता है कि अिसका अेक ही नतीजा हो सकता है - अपने सब अर्थोंवाली संपूर्ण स्वतंत्रता, जिसमें विदेशी हुक्मतको हटाना भी शामिल है? जब आलोचक मेरी अिस बात पर हंसते हैं, तो जूनका मतलब यह होता है कि चालीस करोड़ लोग अिस कार्यक्रमकों पूरा करनेकीकोशिशमें कभी शरीक नही होगे बेशक, अुनके अिस मजाकमें काफी सचाअी है लेकिन मेरा जवाब है कि फिर भी यह काम करने लायक है अगर धुनके पक्के कुछ कार्यकर्ता अटल निश्चयके साथ अिस पर तुल जाय, तो यह काम दूसरे किती भी कामकी तरह किया जा सकता है, और बहुतोसे ज्यादा अच्छी तरह किया जा सकता है जो ली हो, अगर अिसे अहिंसक रीतिसे करना है, तो मेरे पास अिसका दूसरा कोअी अेवज नही है।
सविनय काननू-भंग या सत्याग्रह, फिर वह सामूहिक हो या व्यक्तिगत, रचनात्मक कार्यका सहायक है, और वह सशस्त्र विद्रोहका स्थान भलीभाति ले सकता है सत्याग्रहके लिअे भी तालीमकी अुतनी ही जरूरत है, जितनी सशस्त्र विद्रोहके लिअे सिर्फ दोनों तालीमोंके तरीके अलग-अलग हैं दोनों हालतोंमें लडाअी तो तभी छिडती है, जब अउसकी जरूरत आ पडती है फौजी बगावतकी तालीमका मतलब है हम सब हथियार चलाना सीखें, जिसका अन्त शायद अरुन बमका अुपयोग करना सीखनेमें हो सकता है सत्यान्यमें तालीमका अर्थ है, रचनात्मक कार्यक्रम या तामीरी काम अिसलिअे कार्यकर्ता कभी सत्याग्रह या सविनय कानून-भगकी ताकमें नही रहेंगे हा, वे अपनेको अुसके लिअे तैयार रखेंगे, अगर कभी रचनात्मक कामको मिटानेकी कोशिश हुअी अेक-दो अुदाहरणोंसे यह साफ मालूम हो जायगा कि कहा सत्याग्रह किया जा सकना है और कहा नही। हम जानते है कि राजनीतिक समझौते रोके गये है और रोके जा सकते है, मगर व्यक्ति-व्यक्तिके बीच होनेवाली निजी दोस्तीको रोका नही चा सकता वैसी निस्वार्थ और सच्ची दोस्ती ही राजनीतिक समझौतोकी बुनियाद बननी चाहिये अिसी तरह खादीके कामको, जो केन्द्रित हो गया है, सरकार मिटा सकती है लेकिन अगर लोग खुद खादी बनायें और पहने, तो कोअी हुकूमत अुन्हें रोक नही सकती सादीका बनाना और पहनना लोगो पर लादा नहींजाना चाहिये. बल्कि आजादीकी लडाअीके अेक अराके रूपमें अुन्हे खुद अिसे सोच-समझकर बौर खुशी-खुशी अपनाना चाहिये गांवोंको अिकाअी मानकर वही यह काम हो सकता है अिस तरहके कामोको शुरू करनेवालोको भी रुकावटोंका सामना करना पड़ सकता है दुनियाने सब जगह अैसे लोगोको कष्टकी अिस आगमें से गुजरना पड़ा है बिना कष्ट सहे कहीं स्वराज्य मिला है ' हिंसक लडाअीमें सत्यका सबसे पहले और सबसे बडा बलिदान होता है, किन्तु अहिंसाकी लड़ाआईमें वह सदा विजयी रहता है अिसके सिवा, आज जिन लोगोकी सरकार बनी है, अुन सरकारी मुलाजिमोंको अपना दुश्मन सम- झना अहिंसाकी भावनाके विरुद्ध होगा हमें सुनसे अलग होना है लेकिन दोस्तोंकी तरह।
रचनात्मक कार्यक्रमको पेश करनेसे पहले अूपर जो बातें मैने कही है, वे यदि पाठकोंकं गले अुतर चुकी है, तो वे समझ सकेंगे कि अिस कार्यक्रममें और मिसके अमलमें बेहद रह भरा है यही नही, बल्कि जितना रस तथाकथित राजनीतिक कामोंमें और सभाओंमें लेक्चर झाडनेमें आता है, अुतना ही गहरा रस अिस काममें भी आ सकता है और, निश्चय ही यह रचनास्मक काम अधिक महत्वका और अधिक अुपयोगी है।
भूमिका
रचनात्मक कार्यक्रमकों दूसरे शब्दोंमें अधिक और अुचित री ति से सत्य और अहिंसात्मक साधनों द्वारा पूर्ण स्वरा व्य की यानी पूरी-पूरी आजादीकी रचना कहा जा सकता है ।
स्वतंत्रता के नामसे पहचानी जानेवाली चीजको हिंसाके जरिये और अिसलिअे खासकर असत्यमय साधनोंकी सहायतासे निर्माण करनेकी कोशिशें कि तनी अधिक दु:खदायी होती हैं सो हम भलीलीभांति जानते हैं । आज कल जो लड़ाअी चल रही है, अुसमें हर रोज कितनी दौलत बरबाद हो रही है, कितने लोग मर रहे हैं, और सत्यका कितना खून हो रहा है! सत्य और अहिंसाके जरिये संपूर्ण स्वतंत्रताकी प्राप्तिका मतलब है, जात-पांत, वर्ण या धर्मके भेदसे रहित राष्ट्र के प्रत्येक घटककी और अुसमें भी अुसके गरीब-से-गरीब व्यक्तिकी स्वतंत्र ताकी सिद्ध । अिसलिये स्वतंत्रतासे कसीको भी दूर या अलग नही रखा जा सकता । अिसलिअे अप ने राष्ट्रसे बाहरके दूसरे राष्ट्रों के साथ और राष्ट्रकी जनता के भीतर अुसके सके अलग- अलग वर्गोके परस्परावलम्बनके साथ अिस स्वतंत्रता का पूरा- पूरा मेल रहेगा । अलबत्ता, जिस तरह हमारी खींची हुअी कोअी भी लकीर यूक्किडकी शास्त्रीय व्याख्याकी लकीरकी तुलनामें अधूरी रहेगी, अुसी तरह तात्विक सिद्धान्त की अपेक्षा अुसका व्यावहारिक अमल अधूरा रहता है । अिसलिअे जिस हद तक हम सत्य और अहिंसाका अपने रोजमर्राके जीवनमेंअमल करेंगे, अुसी हद तक हमारी हासिल की हुअी संपूर्ण स्वतंत्रता भी पूर्ण होगी ।
पाठक समूचे- रचनात्मक कार्यक्रमका अेक नकशा अपने मनमें खींचकर देखेंगे, तो अुन्हें मेरी यह बात माननी होगी कि अगर अिस कार्यक्रमको कामयाबीके साथ पूरा किया जाय, तो अिसका नतीजा वह आजादी या स्वतंत्रता ही होगी, -जिसकी हमें जरूरत है । क्या खुद मि० अेमेरीने यह नहीं कहा है कि हिन्दुस्तानके मुख्य दल आपसमें जो समझौता करेंगे, वह मान लिया जायगा ? अेमेरीकी बातको मैं अपनी भाषामें यों कहूंगा कि कौमी अेकताकी, जो रचनात्मक कार्यक्रमके कअी अंगोंमें से सिर्फ अेक अंग है, सिद्धिके बाद सब दलोंके बीच जो समझौता होगा, अुसे ब्रिटिश सरकार मंजूर कर लेगी । मि० अेमेरीने यह बात सच्चे दिलसे कही हैं या नहीं, अिस पर तर्क-वितर्क करनेकी कोअी जरूरत नहीं रहती क्योंकि अगर अिस तरहकी अेकता प्रामाणिकताके साथ यानी अहिंसाके जरिये हासिल हो जाती है, तो अुसके बाद होनेवाले समझौतेकी अपनी असली ताकत ही अैसी होगी कि सब दलोंकी अुस मिली-जुली मांगको मंजूर करनेके सिवा और कोआई चारा किसीके पास रह नहीं जायगा ।
अिसके खिलाफ हिंसाके जरिये हासिल होनेवाली स्वतंत्रताकी काल्पनिक तो क्या, संपूर्ण कही जा सकनेवाली भी कोअी व्याख्या नहीं । क्योंकि अिस तरहकी स्वतंत्रतामें यह बात सहज ही आ जाती है कि राष्ट्रका जो दल हिंसाके साधनोंका सबसे ज्यादा पुरअसर अिस्तेमाल कर सकेगा, देशमेंअुसीका डंका बजेगा । अिस तरहके पूर्ण स्वराज्यमें क्या आर्थिक और क्या दूसरी, किसी भी तरहकी संपूर्ण समानताका तो विचार तक नहीं किया जा सक्ता ।
लेकिन अिस वक्त तो मैं अपने पाठकोंको यही जंचाना चाहता हूं कि स्वराज्यकी स्थापनाके लिअे जिस अहिंसक पुरुषार्थकी जरूरत है, अुसके लिअे यह जरूरी है कि रचनात्मक कार्यक्रमका अमल समझ-बूझकर किया जाय लेकिन पाठकोंके लिअे मेरी यह दलील मानना आवश्यक नहीं के पूर्ण स्वराज्यकी प्राप्तिके लिअे हिंसाका साधन जरा भी अुपयोगी नहीं । अगर पाठक यह मानना चाहे कि हिंसाकी किसी योजनामें देशके गरीब-से-गरीब ब्यक्तिकी स्वतंत्रताका समावेश हो सकता है तो खुशी-खुशी मानें लेकिन अगर अिसके साथ वे यह मान सकें कि राष्ट्र द्वारा रचनात्मक कार्यक्रमका ठीक-ठीक अमल होने पर अुसमें से अिस प्रकारकी स्वतंत्रता निश्चय ही प्राप्त होगी, तो अुनकी अुक्त धारणाके लिअे मुझे आज अुनसे कुछ नहीं कहना है ।
अब हम अेक-अेक करके रचनात्मक कार्यक्मके अंगोंका विचार करें ।
विषय-सूची
5
9
1
कौमी अेकता
11
2
अस्पृश्यता-निवारण
15
3
शराबन्दी
16
4
खादी
18
दूसरे ग्रामोद्योग
26
6
गांवोंकी सफाअी
27
7
नयी या बुनियादी तालीम
28
8
बड़ोंकी तालीम
29
स्त्रियां
32
10
आरोग्यके नियमोंकी शिक्षा
34
प्रान्तीय भाषाअें
37
12
राष्ट्रभाषा
38
13
आर्थिक समानता
40
14
किसान
43
मजदूर
46
आदिवासी
47
17
कोढ़ी
49
विद्यार्थी
50
सविनय कानून-भंगका स्थान
56
अुपसंहार
58
परिशिष्ट
61
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