अनिवार्य हिंदी परीक्षा (CTH) के लिए लिखी गई पुस्तक वातांलाप तथा देवनागरी लिपि की लेखन प्रक्रिया पूर्ण हो जाने पर संतोष की अनुभूति हो रही है। यह पुस्तक मुख्य रूप से उन विद्यार्थियों के लिए लिखी गई है, जिन्होंने कभी भी हिंदी भाषा को विषय के रूप में नहीं पढ़ा है। ये विद्यार्थी अधिकांशतः वे विद्यार्थी हैं जो हमारे देश के पूर्वोत्तर राज्यों, दक्षिण भारत के राज्यों और पड़ोसी देशों से आए हुए हैं और जिन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों में अलग-अलग पाठ्यक्रमों (Courses) में प्रवेश लिया है इन विद्यार्थियों की मातृभाषा हिंदी न होने के कारण इनका हिंदी भाषा संबंधी ज्ञान बहुत कम है। पुस्तक को प्रारंभ करते समय हमारे समक्ष यह समस्या आन खड़ी हुई थी की स्नातक के विद्यार्थी को किसी भाषा का प्रारंभिक ज्ञान देने के लिए भाषा की व्याकरणिक कोटियों को किस रूप में और किस तरह से लिखा जाए क्योंकि यह विद्यार्थी हिंदी भाषा के लिखित रुप से पूर्णतः अनभिज्ञ रहे हैं। ऐसे में इनके लिए भाषा के किस स्तर का चयन किया जाए, वास्तव में यह एक अत्यंत मुश्किल कार्य था। विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम पर विचार विमर्श करने के उपरांत हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इस पुस्तक में भाषा की आरंभिक इकाई से लेकर वार्तालाप तक की यात्रा को पूर्ण किया जाए। पुस्तक 3 अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय वार्तालाप है जिसमें 15 विषयों पर संक्षेप में वातांलाप लिखे गए हैं सभी विषय दैनिक जीवन और विद्यार्थियों के अनुभवों पर आधारित हैं। भाषा को सरल स्पष्ट एवं रोचक रखने का पूरा प्रयास किया गया है। दूसरे अध्याय में देवनागरी लिपि के विकास एवं विशेषताओं के बारे में बताया गया है साथ ही हिंदी वर्णमाला, स्वर, व्यंजन, विराम चिह्न आदि की चर्चा की गई है। तीसरे अध्याय में हिंदी की व्याकरणिक कोटियाँ हैं जिसमें संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण, काल, लिंग, वचन आदि के भेदों, उप-भेदों के साथ व्याख्यायित किया गया है। पुस्तक के अंत में हिंदी की आधारभूत शब्दावली पाठ्यक्रम के अनुसार दी गई है। हिंदी भाषी क्षेत्रों से आए यह विद्यार्थी इस पुस्तक के द्वारा हिंदी भाषा के प्रारंभिक ज्ञान से परिचित होंगे साथ ही यह पुस्तक उन्हें हिंदी के पठन और लेखन कौशल में सक्षम बनाने में सहायक सिद्ध होगी। आशा है हमारा यह प्रयास पुस्तक के अध्येताओं के लिए लाभकारी सिद्ध होगा। पुस्तक की प्रकाशन व्यवस्था के लिए श्री टी. एस. राघव जी का बहुत-बहुत धन्यवाद ।
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