प्रो (डों) सोहन राज तातेड, (जन्म 1947) पूर्व कुलपति, सिधानिया विश्वविद्यालय, पचेरी व्ही (झुझुनू राज) एव जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय, लाडनूं (राज) के मानद सलाहकार रह चुके है। वे ट्रीनिटी वर्ल्ड विवि (यूके), एनए आई (यूएसए) विवि, जगन्नाथ विवि, ढाका (बगलादेश) जोध्पुर राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, जोधपुर (राज), जे.जे.टी.वि.वि. एव सिंघानिया विश्वविद्यालय (राज) के सरक्क प्रोफेसर भी है। वे दर्शन, योग एवं शिक्षा विषयों में अन्तर्राष्ट्रीय एवं भारतीय विश्वविद्यालयों में रजिस्टर्ड पी-एचडी शोध निर्देशक है। पूर्व में डॉ तातेड़ ने राजस्थान सरकार के जन स्वास्थ्य अभियात्रिक विषाग मे 30 वर्ष तक सेवा देकर अधीक्षण अभियन्ता पद से स्वेच्छापूर्वक निवृति लेकर अभी शिक्षा क्षेत्र में योगदान दे रहे है। वे भारत एवं विश्व की अनेक शैक्षणिक एवं सामाजिक संस्थाओं में एसोसियेट सदस्य, संरक्षक एवं आजीवन सदस्य है। डॉ तातेड, यू.एस.ए. यू.के. जापान, जर्मनी, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, नेगल, बंगलादेश एवं भूटान देशों की विदेश यात्रा कर चुके है। जाने माने विद्वान प्रो (डॉ) सोहन राज तातेड़ की दर्शन, योग एवं शिक्षा विषयक 65 पुस्तके प्रकाशित हो चुकी है तथा 15 पुस्तके प्रकाशनाधीन है। इसके अतिरिक्त इनके 60 से अधिक शोध पत्र प्रतिष्ठित राष्ट्रीय/अतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकें है। इन्होंने 60 से अधिक राष्ट्रीय/अतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों/कार्य ओं में भाग लेकर अपने शोध पत्र/व्याख्यान प्रस्तुत किए। आप इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय एकता एवार्ड, समाज भूषण, युवक रत्न, जैन ज्ञान-विज्ञान महोषी, भारत एक्सीलेन्सी एवार्ड, महर्षि पतंजलि अन्तर्राष्ट्रीय एवार्ड, भारत भूटान भूटान मैत्री, राजीव गांधी वार्ड इन्द्रो-नेपाल हारमोनी, प्राकृतिक चिकित्सा रत्न और योग रत्न राष्ट्रीय सम्मानों से अलकृत है।
प्रतिभामूर्ति परम विदुषी डॉ. साध्वी सुलोचना का जन्म 12 दिसम्बर 1971 को नागौर जिले के रूचेरा ग्राम में हुआ। आपके पिताश्री स्व. बुधमलजी नाहर एव माताश्री वर्तमान में महासती श्री कचनकारजी म सा के नाम से विख्यात है। अपनी पूज्य माताजी के वैराग्य के संस्कार प्राप्त कर एवं अपने चरित्र मोहनीय कर्मों के क्षयोपशम से सन् 1995 में बसतकुंवरजी म सा के सानिध्य एवं गुरुवर्या शासन प्रमादिका महासती श्री कचनकुवरजी म सा (संसारपक्षीय माताजी) की निश्रा में दीक्षा ग्रहण की। आपकी देता के अवसर पर प्रवर्तक श्री सुमनमुनिजी म सा आदि कई साधु-साध्वियों उपस्थित थे। आपकी गुरु बहिन साध्वीश्री समर्पिताजी म सा सुलक्षणा की दीक्षा भी आपके साथ ही सम्पन्न हुई। यह युगल जोडी अपना विशेष प्रभाव रखती है।
आप युवाचार्य मधुकर मुनिजी म. सा. के साहित्य पर पी-एच.डी. डिग्ग्री से विभूषित है। आप पूर्व में हिन्दी साहित्य रत्न पर एमए कर चुकी है। आपको 70 से अधिक थोकडे कठस्थ है। आप चार वर्षीता कर चुकी है तथा पाचवा वर्षीतप जारी है। डॉ. साध्वी सुलोचना मधुर वक्ता, तपसूर्या, तप चन्द्रिका अलंकरण से अलकृत है। आगमों का स्वाध्याय आपकी प्रमुख रुचि का विषय है। गीत रचना एवं साहित्य सृजन आप दक्ष है तथा आपकी प्रवचन क्षमता बेजोड़ है।
नाम-डॉ तेजसिंह गौड
पिता का नाम स्वश्री सिद्धनाथसिहजी गौड़
माता का नाम अतः स्व श्रीमती भंवरकवर गौड़ जन्म तिथि-16 अगस्त 1938
शैक्षणिक योग्यता-एमए (प्राचीन भारतीय इतिहास एवं सस्कृति) बीएड.
पी-एचडी-प्राचीन एवं मध्यकालीन मालवा में जैनधर्म एक अध्ययन
व्यवसाय शिक्षा विभाग, मध्यप्रदेश में 43 वर्ष तक सेवा प्रदान करने के पश्चात 30 नवम्बर 1998 को वरिष्ठ
व्याख्याता के पद से सेवानिवृत्त ।
लेखन एवं सम्पादन (क) 14 पुस्तकों का लेखन, (ख) 19-20 अभिनन्दन ग्रंथों/ स्मृति प्रथों का समादनन् (ग) हिन्दी मासिक-शाश्वत धर्म, जय गुजार एवं अहिसा दर्शन का सम्पादन (घ) लगभग 250-300 शिभेन्न विषयों के आलेखों का विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं आदि में प्रकाशन।
पुरस्कार एवं सम्मान (अ) अ.भा. कालिदास समिति, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा स्नातक तर के त्रो के लिए आयोजित निबंध प्रतियोगिता में में प्रथम पुरस्कार। (ब) समाज सेवा विभाग, म.प्र सरकार द्वारा छात्रों के आयोजित लोक कथा प्रतियोगिता में पुरस्कृत। (स) श्री अ.भा. राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद् द्वारा सन् 2008 में राष्ट्रसंत आचार्य श्रीमद विजय जयतसेन सूरिजी म के सान्निध्य में बैंगलोर में अभा विद्वत सम्मान से सम्मानित। (द) गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान, पजाब, हरियाणा, दिल्ली, कर्नाटक, आप, तमिलनाडु आदि प्रातों के अनेक स्थानों पर सम्मान एवं अभिनन्दन।
वर्तमान स्थिति-निदेशक, श्री राजेन्द्र सुरि शताब्दी शोघ सस्थान, उज्जैन (म.प्र)
भारतीय संस्कृति में श्रमण संस्कृति का विशिष्ट योगदान है। इसमें भी जैन संस्कृति का अपना विशेष महत्व है। वर्तमान में श्रमण भगवान् महावीर का शासन प्रवाहमान है और उनकी वाणी का प्रवाह आज भी निरन्तर गतिशील है। श्रमण भगवान् महावीर के परवर्ती आचार्यों ने उनकी वाणी को संग्रह किया, जो आगम साहित्य के रूप में आज हमारे समक्ष है। आगम साहित्य को सुरक्षित रखने के लिए और उसको वर्तमान रूप में प्रस्तुत करने के लिए आचायर्यों और विद्वान मुनिराजों ने कठोर परिश्रम किया है, जिसे विस्मृत नहीं किया जा सकता। इतना ही नहीं, अनेक आचार्यों ने आगम साहित्य पर व्याख्या साहित्य का सृजन कर उसके गूढ़ रहस्यों को प्रकट करने का भी सराहनीय कार्य किया है। उसी व्याख्या साहित्य के आधार पर आगम साहित्य को समझना सरल हो सका है। इसके साथ ही अन्यान्य विषयों पर भी आचार्यों और मुनिराजों ने अपनी लेखनी चलाकर विपुल मात्रा में विभिन्न विषयक साहित्य उपलब्ध करवाया है, जो आज हमारी अमूल्य धरोहर है।
श्रमण भगवान् महावीर की परम्परा में ही क्रांतिवीर लॉकाशाह हुए, जिन्होंने आगमिक विचारों को सुरक्षित रखने के लिए एक नवीन दृष्टि दी और उनके सप्रयत्नों से स्थानकवासी श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय की नींव पड़ी। इस परम्परा में अनेक मूर्धन्य आचार्य और मुनि हुए, जिन्होंने भी जैन आगम साहित्य के व्याख्या साहित्य का सृजन किया। इतना ही नहीं, आज से लगभग एक सौ वर्ष पूर्व आचार्यश्री अमोलक ऋषिजी म. ने स्थानकवासी श्वेताम्बर जैन परम्परा के मान्य बत्तीस आगम ग्रंथों का हिन्दी में सर्वप्रथम अनुवाद कर मुद्रण करवाया और जन-जन के लिए उपलब्ध करवाया। यद्यपि उनका यह अनुवाद भावानुवाद था, तथापि उन्होंने एक सारणि तो तैयार कर दी, जिसका अनुकरण उनके पश्चात् कुछ अन्य आचार्यों/मुनियों ने भी किया। जैन आगम ग्रंथों के हिन्दी अनुवाद सहित विवेचन के लिये युवाचार्यश्री मिश्रीमलजी में 'मधुकर का नाम बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है। युवाचार्यश्री मधुकर मुनिजी म. के मार्गदर्शन में हुए इस कार्य का सर्वत्र स्वागत ही हुआ है। इसमें अनुवाद के साथ जो विवेचन है वह स्पष्ट है और विषय वस्तु को समझने में सहायक है अथवा यों कहें कि विवेचन में विषय-वस्तु को भलीभांति स्पष्ट कर समझाया गया है, जिससे सामान्य पाठक जिसकी रुचि आगम साहित्य में है, को सुविधा हुई है।
जैनाचार्यों / मुनियों ने आगम साहित्य की व्याख्याओं के अतिरिक्त धर्म, दर्शन, इतिहास, भूगोल, आयुर्वेद, ज्योतिष, गणित, कथा आदि विविध विषयों पर अपनी लेखनी चलाई और साहित्य भण्डार में अभूतपूर्व अभिवृद्धि की।
इसी श्रृंखला में युवाचार्यश्री मधुकर मुनिजी म. ने भी अपना योगदान दिया है। आगम साहित्य के अनुवाद कार्य के अतिरिक्त आपने धर्म, दर्शन, उपन्यास, कथा साहित्य का भी सृजन किया है। आप एक कुशल प्रवचनकार थे और आपके प्रवचनों के संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं। युवाचार्यश्री मधुकर मुनिजी म.सा. प्रवचनकार के साथ ही निबंधकार, उपन्यासकार, कथाकार आदि तो थे ही, साथ ही वे आगम के सूत्रों के अनेक रहस्यों को खोजते हुए अनुसंधान की दृष्टि से उन्हें प्रस्तुत करने वाले भी थे। उनके इस सृजन को भी विस्मृत नहीं किया जा सकता है।
युवाचार्यश्री मधुकर मुनिजी म. ने जितना भी साहित्यिक सृजन किया है, उसे जैन विद्या के विकास में उनके योगदान के रूप में रेखांकित करने का हमने प्रयास किया है।
अभी तक किये गये कार्यों का विवरण- स्वामी श्री ब्रजलालजी
म. एवं युवाचार्यश्री मिश्रीमलजी म. 'मधुकर के सम्मान में प्रकाशित 'मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ, युवाचार्यश्री मधुकर मुनि स्मृति ग्रंथ तथा एक अन्य पुस्तक श्री युवाचार्य मधुकर मुनि व्यक्तित्व एवं कृत्तित्व का प्रकाशन हुआ है। इन कृतियों में युवाचार्यश्री मधुकर मुनिजी म. के जीवन पर ही अधिक विचार किया गया है। साथ ही उनके जीवन से संबंधित पावन प्रसंगों पर भी लिखा गया है। उनके साहित्यिक अवदान पर चर्चा अवश्य हुई, किन्तु वह नगण्य ही है। उनके द्वारा आगम साहित्य के अनुवाद-विवेचन के संबंध में तो किसी प्रकार की चर्चा किसी ने भी नहीं की। उनके कथा साहित्य उपन्यास प्रवचन तथा धर्म दर्शन से संबंधित पुस्तकों का भी मूल्यांकन नहीं किया गया है। युवाचार्यश्री मधुकर मुनिजी म. के जैन विद्या के विकास में दिये गये योगदान पर आज तक किसी प्रकार का कोई प्रयास नहीं हुआ है। हमने पहली बार इस दिशा में अपने प्रस्तुत शोध प्रबंध में प्रयास किया है। इस बारे में यह उल्लेख करना भी प्रासंगिक ही होगा कि उनके द्वारा लिखित कुछ पुस्तकें हमारे प्रयास करने के बावजूद हमें उपलब्ध नहीं हो पाई है जिससे उन पर हम कोई विचार नहीं कर सके। धर्म और दर्शन पर लिखी गई ये कृतियां महत्वपूर्ण है जिनमें युवाचार्यश्री ने गागर में सागर भरने का कार्य किया है। इसके बावजूद हमें संतोष है कि हम जैन विद्या के विकास में उनके अवदान को रेखांकित कर पाये हैं।
उद्देश्य-युवाचार्यश्री मिश्रीमलजी म. 'मधुकर के अध्ययन का क्षेत्र विस्तृत
था। उन्होंने संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती, राजस्थानी आदि भाषाओं के अनेक ग्रंथों का तलस्पर्शी अध्ययन किया था। उन्होंने जैन आगम साहित्य को अपने अध्ययन का ध्येय बनाया। इसके साथ ही उन्होंने वैदिक संस्कृति के वेद, उपनिषद्, स्मृति, पुराण आदि ग्रंथों का भी अध्ययन किया। उन्होंने अपने अध्ययन से जो पाया, उसे अपने विचारानुसार प्रस्तुत भी किया, जिसके परिणामस्वरूप विविध विषयों के अनेक ग्रंथों का सृजन उनके द्वारा हुआ। युवाचार्यश्री मधुकर मुनिजी म. के चिंतन को अनुसंधान की दृष्टि से प्रस्तुत करना हमने अपना कर्त्तव्य समझा। हमारे शोध कार्य का प्रमुख उद्देश्य यही है कि जैन विद्या के विकास में उनके अवदान को प्रस्तुत करें, जो हमने किया और पाया कि उनका इस क्षेत्र में अवदान महत्त्वपूर्ण है।
कोई भी कार्य हो, उसमें गुरुभगवंतों की कृपा और आशीर्वाद अपेक्षित है। उनकी कृपा और आशीर्वाद के अभाव में कार्य में सफलता प्राप्त करना संदिग्ध होता है। हमें भी अपने प्रस्तुत शोध कार्य में परमश्रद्धेय स्वर्गीय गुरुदेव आचार्यश्री मिश्रीमलजी म. 'मधुकर', सद्गुरुवर्याद्वय स्व. महासती श्री सरदारकुंवरजी म., स्व.महासती श्री कानकुंवरजी म. की दिव्य कृपा एवं आशीर्वाद हमारा मार्गदर्शन करता रहा है। सरलमना महासती श्री वसंतकुंवरजी म. की कृपा और आशीर्वाद बना रहा। इनके प्रति हम अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। मातृ स्वरूपा परम पूजनीया गुरुमाता, शासन-प्रभाविका महासती श्री कंचनकुंवरजी म. की कृपा और आशीर्वाद नहीं मिला होता तो शायद हम अपना यह कार्य सम्पन्न ही नहीं कर पाते। हम उनका यह उपकार जीवन पर्यन्त विस्मृत नहीं कर पायेंगे। उनके प्रति हम अपनी कृतज्ञता हृदय की गहराई से प्रकट करते हैं और चाहते हैं कि उनकी छत्रछाया हम पर सदैव बनी रहे।
इसी श्रृंखला में पूज्य गुरुदेव उपप्रवर्तक मुनिश्री विनयकुमारजी 'भीम', श्री निरंजन मुनि म.. श्री सन्मति मुनिजी म. के प्रति भी हम अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं। शोधावधि में हमें आपकी ओर से सतत् प्रेरणा मिलती रही। यही कामना है कि साहित्य सृजन एवं साधना में आपकी प्रेरणा इसी प्रकार मिलती रहे। विद्वत् वर्ग के सहयोग एवं मार्गदर्शन के अभाव में शोधकार्य करना सम्भव नहीं होता। विशेषकर हम जैसों के लिये, जो अपनी आचार संहिता की मर्यादा में विचरण करते हैं। अजमेर निवासी श्री देव मुनिजी के प्रति भी हम आभार प्रकट करते हैं। श्री देव मुनि जी ने अनेक यात्रायें करके हमारे शोध कार्य के मार्ग को सफल बनाया है।
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, दुर्ग (छत्तीसगढ़), श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, पाली (राजस्थान), श्री नेमीचंदजी कोठारी, चैन्नई, श्री प्रकाशचंद्रजी बोहरा निवासी अटपड़ा, हाल मुकाम चैन्नई, श्री मांगीलालजी दिलीपकुमारजी श्रीश्रीमाल, मुम्बई के द्वारा समय-समय पर दिये गये विभिन्न प्रकार के सहयोग ने भी हमारे शोध कार्य के मार्ग को प्रशस्त किया है। अतः हम इन सब के प्रति भी आभार प्रकट करते हैं। यही कामना है कि भविष्य में भी आवश्यकतानुसार सभी का इसी प्रकार सहयोग मिलता रहे।
मुनिश्री हजारीमल स्मृति प्रकाशन, ब्यावर की ओर से भी हमें युवाचार्यश्री मधुकर मुनिजी म. का साहित्य उपलब्ध करवाने का सहयोग प्राप्त हुआ। अतः उनके व्यवस्थापकों के प्रति भी हम आभार प्रकट करते हैं।
अपने शोध प्रबंध में हमने अनेक मूर्धन्य विद्वानों के द्वारा लिखित ग्रंथों का उपयोग किया है। उन सभी विद्वानों के प्रति भी आभार प्रकट करते हैं। साथ ही जिन्होंने प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से हमें अपने शोध कार्य में सहयोग प्रदान किया है, उन सभी के प्रति भी आभार।
उन सभी पुस्तकालयों के प्रति हम लेखकगण अत्यन्त आभारी हैं, जिनकी पुस्तकों के सहयोग के कारण यह शोधपूर्ण ग्रन्थ लिखा जा सका। यदि किसी संदर्भ ग्रन्थ का नाम भूलवश छूट गया हो, उनके भी हम उतने ही आभारी हैं तथा उनसे क्षमाप्रार्थी हैं। श्रीमान् सूरज प्रकाश गुर्जर, एस. पी. डाटा केयर, रामदेव चौक, भगत की कोठी, जोधपुर (राज.) फ्रेण्डस कम्प्यूटर, (म.प्र.) उज्जैन द्वारा इस शोध ग्रन्थ का कम्प्यूटरीकरण अति अल्प समय में बिना किसी अशुद्धियों के किया गया एवं श्री लोकेश जैन, साहित्यागार, घामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर के द्वारा अति अल्प समय में किताब का सुन्दर प्रस्तुतिकरण किया गया। अतः हम उनके हृदय से आभारी है।
Hindu (हिंदू धर्म) (12741)
Tantra (तन्त्र) (1023)
Vedas (वेद) (709)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1912)
Chaukhamba | चौखंबा (3359)
Jyotish (ज्योतिष) (1477)
Yoga (योग) (1095)
Ramayana (रामायण) (1389)
Gita Press (गीता प्रेस) (731)
Sahitya (साहित्य) (23203)
History (इतिहास) (8283)
Philosophy (दर्शन) (3401)
Santvani (सन्त वाणी) (2584)
Vedanta (वेदांत) (121)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist