जीवन परिचय
कवि जयशंकर प्रसाद
श्री जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिन्दी कविता में 'छायावादी काव्य आन्दोलन' के जनक, प्रवक्ता और उन्नायक हैं । उन्होंने खड़ी बोली को काव्य-भाषा के रूप में अनिर्णय के प्रथम दौर से मुक्त करके उसे अद्भुत रूप से समृद्ध और अभिव्यक्ति सम्पन्न बनाया । उनकी काव्य-भाषा में गहरी अनुभूति सम्पन्नता और रोमांसलता का एक सांस्कारिक तेवर विद्यमान है । गोस्वामी तुलसीदास की तरह ही प्रसाद भाषिक संक्षिप्तता और बिम्बात्मक क्षमता का मर्म पहचानने वाले कवि हैं ।
'गीति तत्व' प्रसाद की कविता का दूसरा प्रमुख गुण है । अनुभूतियों की भीतरी झनझनाहट उनके गीतों से लेकर उनके महाकाव्य 'कामायनी' तक में समान रूप से विद्यमान है । प्रसाद अपनी कविताओं के माध्यम से मनुष्य जाति की उन्हीं अनुभूतियों को चित्रित करते हैं जिनमें एक भीतरी करुणा का आवेश हो और जो शब्द का स्पर्श पाते ही संगीत की प्राणवक्ता से झंकृत होउठें । 'झरना' 'आंसू और 'लहर' के गीत इसका प्रमाण तो हैं ही, 'कामायनी' की संपूर्ण अर्थवत्ता इसी गीत्यात्मक अनुगूँज से भरी हुई है ।
प्रसाद का काव्य अपने सारे ऐतिहासिक, दार्शनिक और 'मिथकीय' आवरण के बावजूद अपने वर्तमान में ही प्रामाणिक है । इतिहास, दर्शन और पुराण-कथाओं का उपयोग प्रसाद जी ने अपनी सांस्कृतिक धरोहर को पुनरुज्जीवित करने के लिए तो किया ही है, उसके माध्यम से अपने समय के भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन के मुख्य तेवर को पहचानने का काम भी वे करते हैं । इसीलिए उनकी कविताओं में राष्ट्रीयता का एक गहरा सरोकार विद्यमान है ।
अनुक्रम
प्राक्कथन..... ९ -४८
चित्राधार...... ७-८३
प्रेम पथिक..... ८५ - १०२
करुणालय........ १०३ -१२५
महाराणा का महत्व........ १२७- १४२
कानन कुसुम....... १४३ – २२८
झरना.... २२९-२९९
आँसू...... ३०१ -३३२
लहर ३३३
कामायनी...... ३९७-७०४
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