यह चीन नाम भारत का दिया हुआ अल्पज्ञात तथ्य है कि चीन का है। चीन तो स्वयं को झुआंगहुआ कहता है। इससे भी अल्पज्ञात तथ्य यह है कि महाभारत काल में चीन भारत के सैकड़ों जनपदों में से एक था। प्रशांत महासागर के तट पर पीत नदी के पास यह लघु राज्य भारत से हजारों किलोमीटर दूरस्थ था। पाठकों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि अपने इतिहास के अधिकांश में चीन भरतवंशी शासकों के अधीन अर्थात् परतंत्र रहा है। आज के विशाल चीन का निर्माण तत्कालीन सोवियत संघ, ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमरीका आदि के अनुग्रह, हस्तक्षेप और प्रत्यक्ष परीक्ष सहयोग से ही संभव हुआ है। अन्यथा पुराने चीन को कभी भी बाहरी शक्तियों से ऐसी व्यापक एवं प्रभावकारी सहायता नहीं मिलती। इसलिए यह चीन न होकर, विस्तारवादी और उपनिवेशवादी कम्युनिस्ट चीन है और इस प्रकार यह नैसर्गिक राष्ट्र न होकर कृत्रिम देश है। कम्युनिस्ट चीन के आततायी और दमनकारी साम्राज्यवाद से तिब्बतियों, मंगोलों, मांचुओं, तुर्कों और हानों की मुक्ति आवश्यक है और इसमें भारत की महती भूमिका हो सकती है। यह वैसे भी भारत का कर्तव्य है कि सदा से हमारे अभिन्न तथा आत्मीय रहे तिब्बत पर चीन का बलात् कब्जा कराने में मुख्य भूमिका भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री की ही रही। उन्होंने ही इतिहास में पहली बार चीन को भारत का पड़ोसी बनाया। अतः इस भयंकर भूल को सुधारना भारत का नैतिक दायित्व है। इन सभी दृष्टियों से यह पुस्तक महत्त्वपूर्ण पथ-प्रदर्शक तथा अवश्य पठनीय है।
प्रो. कुसुमलता केडिया:अंतरराष्ट्रीय राजनय की गहन अध्येता, विकास अर्थशास्त्री, समाज-वैज्ञानिक एवं इतिहासकार। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की अध्यापक, तदुपरांत गांधी विद्या संस्थान, वाराणसी में समाज-विज्ञान की प्राध्यापक एवं संकाय अध्यक्ष तथा निदेशक। पूर्व वरिष्ठ फेलो, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली। महात्मा गांधी नेशनल फेलो, भारतीय समाज विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली तथा फेलो, आई.आई.ए.एस., शिमला। पूर्व निदेशक, धर्म पाल शोधपीठ, भोपाल। वर्ष 2006 में अखिल भारतीय डॉ. हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान।
अर्थशास्त्र, इतिहास, गांधी चिंतन एवं स्त्री विमर्श पर हिंदी एवं अंग्रेजी में अनेक पुस्तकों का लेखन। इन पुस्तकों में मुख्य हैं स्त्रीत्व : धारणाएँ एवं यथार्थ, विश्व सभ्यता: भारतीय दृष्टि (भाग-1), गांधीजी और ईसाइयत, समृद्धि अहिंसक भी हो सकती है, भारत के विकास की भावी दिशा, दृष्टिदोष तो विकल्प कैसे ? रूट्स ऑफ अंडरडवलपमेंट, डेट ट्रैप ऑर डेथ ट्रैप और एजम्पशंस ऑफ डवलपमेंट थियरीज।
देश-विदेश एवं अनेक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों और संगोष्ठियों में आलेख प्रस्तुति तथा वक्तव्य। पिछले कुछ वर्षों से यूट्यूब के अनेक चैनलों पर अन्यान्य विषयों पर निरंतर वार्ताएँ।
चीन का 'चीन' नाम भारत का दिया हुआ है। चीन तो स्वयं को 'झुआंगहुआ' कहता है। महाभारत काल में चीन भारत के सैकड़ों जनपदों में से एक था। पीली नदी के पास का यह लघु राज्य आज के भारत से हजारों किलोमीटर दूर था, जिसकी पुष्टि भारत आए अनेक चीनी तीर्थयात्रियों ने की है। इन तीर्थयात्रियों से यह भी ज्ञात होता है कि तब के चीन और आज के भारत के मध्य के समस्त क्षेत्र हिदू राजाओं द्वारा शासित थे। चीन के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि अपने इतिहास के अधिकांश में चीन बाहरी शक्तियों के अधीन रहा है। तात्पर्य यह कि केवल थोड़े समय के लिए ही चीन को स्वशासित कहा जा सकता है। अतः आज के विशाल भौगोलिक क्षेत्रवाले चीन का निर्माण मुख्यतः तत्कालीन सोवियत संघ तथा अन्य पश्चिमी देशों के अनुग्रह, हस्तक्षेप और प्रत्यक्ष-परोक्ष सहयोग के कारण ही हुआ है। रोचक तथ्य यह है कि यह चीन न होकर कम्युनिस्ट चीन है। पारंपरिक चीन को बाहरी शक्तियों से कभी भी ऐसी व्यापक और प्रभावकारी सहायता नहीं मिलती।
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