चन्द्रदेव जी के कविताई जतना चन्द्रदेव जी के ह, हमरा हिसाब से हमरो ऊ ओतने ह। आ नाहिंयो ह, त हिरिस त हमार ई हइए ह कि 'होइत' ! अतना त भइबे कइल कि उहाँ के कविता जब पहिले-पहिल 'समकालीन भोजपुरी साहित्य' में आइल त पत्रिका के संपादक नीरन जी के घरे एगो निकहा बटोर-बीच ओकर एगो उदय-मुख पाठ रखाइल, आ तब, उनुका कवितवन आ कविताई के जवन सामूहिक बड़ाई बतियावल गइल, तवना में, भरपूर ढिठाई के साथे, जतना चन्द्रदेव जी के, ओह से तनिको कम ना आपनो हिस्सेदारी उदय जी मनले, आ बड़ बात, कि पवले। ओह बतियावल बड़ाई में से एगो-दूगो, खास क के काका जी वाला, जवन बड़ाई रहलो ना रहे भरसक, तवन त भुलवले ना भुलाय। काकाजी माने जिला देवरिया के हमार तब के सबसे बुजुर्ग मित्र श्री दयाशंकर मिश्र, ढंग-ढर्रा सब कुछ से निछछ आम आदमी, कवि ना, कथाकार ना, आलोचक त हर्गिज ना, साहित्य के पढ़वइयो ऊ रहले कि ना, पता ना, बाकिर सुनवइया सोगहग। सुनें त सगरो से सुनें, आपन सबकुछ लगा के सुनें। सुन के, ना नीक लागे त बस अतनवे कहें कि नीरन जी के सहेट में ईहे कुल्ह अकच-बकच सुने परेला, नीक लागे त बस अतनवे कहें कि ईहे कुल्ह सुने खातिर त नीरन जी के सहेट में रहे परेला! बाकिर का, कि चन्द्रदेव जी के कविताई सुन के, काकाजी जवन अक्सर कहत रहले, ओकरा से बढ़ के कुछ कहले। त 'देस-राग' के बाद 'माटी क बरतन' के अगवानी में, तहिया जवन कहले रहले काकाजी, तवने, जतना भर हमरा इयाद रह गइल, ओतने...।
कहले कि ई कइसे हो, कि ई कवि आपन कहत जाता, आ ओसहीं जइसे कहल जाला य बतियावत जाता, आ बतियावले सब बतवन के अपना तरफ से बस बतावत जाता, ओसहीं जइसे बतियावल जाला, जइसे बतावल जाला य आ ओकर कहलके बतिया, ओकर बतियवलके-बतवलके बतिया कविता भइल चल जाता, ऊहो अँइसे, अतना अरराऽ के...|
1 अगस्त, 1962 को गाजीपुर के विक्रमपुर नामक गाँव में जन्म । प्रारंभिक शिक्षा गाँव में। उदय प्रताप कॉलेज, वाराणसी से 1985 में हिन्दी साहित्य में एम.ए. तदुपरांत 1995 में जामिया मिल्लिया इस्लामिया (केन्द्रीय विश्वविद्यालय), नई दिल्ली से पीएच.डी. ।
लेखन की शुरुआत गीत और कहानी-लेखन से। हिन्दी और भोजपुरी में रचनात्मक और आलोचनात्मक लेखन। पत्रकारिता से संबंधित दो पुस्तकें प्रकाशित । विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों से हिन्दी और भोजपुरी भाषा तथा साहित्य से संबंधित बौद्धिक और रचनात्मक कायक्रमों में भागीदारी। मैथिली-भोजपुरी अकादमी, दिल्ली के सहयोग से भोजपुरी समाज और भिखारी ठाकुर एवं कबीर का लोक और लोक के कबीर पर दो सेमिनारों का आयोजन और कबीर संगीत की प्रस्तुति। 1993-1995 के दौरान 'अफ्रीका' जर्नल के हिन्दी संस्करण का 'साहित्य संपादक' । 2017 में 'समकालीन सोच' पत्रिका के नित्यानंद तिवारी विशेषांक का संपादन ।
यूजीसी के लिए एम.ए. स्तर और शैक्षिक संचार संकाय (CEC) के लिए बी.ए. स्तर के डेढ़ दर्जन ई-पाठ का लेखन और उनकी ऑडियो-विजुअल रिकॉर्डिंग हेतु एंकरिंग।
प्रकाशित कृतियाँ
देस-राग (भोजपुरी) और गाँवनामा तथा पिता का शोकगीत (हिन्दी)। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना-दृष्टि, छायावाद के आलोचक, हिन्दी के प्रारंभिक उपन्यासों की भाषा, लोक-समाज और संस्कृति, विद्यापति समय से संवाद, छायावादी आलोचना, हिन्दी पत्रकारिता : स्वरूप और संरचना, शब्द-बोध। संपादन- अब्दुल विस्मिल्लाह का कथा-साहित्य, भारतीय मुसलमानः सामाजिक और आर्थिक विकास की समस्याएं, मध्यकालीन कविता। कहानी पुस्तिकाएँ इंसानियत, समझदारी। इनके अतिरिक्त अनेक जन-जागरूकतापरक नुक्नुक्कड़ नाटकों की रचना। सर्जना और आलोचना, जीवन का उत्सव और राग-रंग प्रकाशन के क्रम में।
सम्मान : 2001 में अखिल भारतीय भोजपुरी परिषद्, लखनऊ, उ.प्र. द्वारा भोजपुरी भास्कर सम्मान । संप्रति जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली के हिन्दी विभाग में हिन्दी साहित्य और मीडिया-लेखन का अध्यापन ।
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