नारी विमर्श की प्रखर चिंतक और उपन्यासकार प्रभा खेतान का यह चर्चित उपन्यास स्त्री के शोषण, उत्पीड़न और संघर्ष का जीवन्त दस्तावेज है | संपन्न मारवाड़ी समाज की पृष्भूमि में रची गई इस औपन्यासिक कृति की नायिका प्रिया परत-दर-परत स्त्री जीवन के उन पक्षों को उघाड़ती चलती है जिनको पुरुष समाज औरत की स्वाभाविक नियति मानता रहा है और इस प्रक्रिया में वह हमें स्त्री की युगो-युगो से संचित पीड़ा से रु-ब-रु कराती है |
बचपन से ही भेदभाव और उपेक्षा की शिकार साधारण शक्ल-सूरत और सामान्य बुद्धि की प्रिया परिवार की 'सुरक्षित' चौहद्दी के भीतर ही यौन शोषण की शिकार भी होती है और तदुपरांत प्रेम और भावनात्मक सुरक्षा की तलाश में उन तमाम आघातों से दो -चार होती है जिनसे संभवतः हर स्त्री को गुजरना होता है | अपने जड़ संस्कारो में जकड़ा पति भी उसे मानवोचित सम्मान नहीं दे पाता है |
इस सबके बावजूद प्रिया अपनी एक पहचान अर्जित करती है | मनुष्य के रूप में अपनी जिजीविषा और स्त्री के रूप में अपनी संवेदनशीलता को जीती हुई वह अपना स्वतंत्र तथा सफल व्यवसाय स्थापित करती है | घर के सीमित दायरे से मुक्त करके अपने सपने को सुदूर क्षितिज तक विस्तृत करती है |
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