आधुनिक काव्य के उदीयमान कवि श्री वीरसिंह हरित की कविताएँ व्यक्ति तथा समाज की चेतना को मुखरित करती हैं। हरित जी ने अपनी कविताओं के माध्यम से हाशिये पर खड़े व्यक्ति को अभिव्यक्ति देकर उसकी संवेदनाओं को स्पष्ट किया है। ये मानवतावाद की विचारधारा से प्रेरित तथा प्रभावित हैं। अतः रचनाओं की दृष्टि से ये मानवतावादी रचनाकार हैं। अपनी कविताओं के माध्यम से 'हरित' जी ने आदर्शोन्मुख यथार्थवाद का चित्रण किया है। ये भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता के पोषक कवि रहे हैं। शोषण के विरुद्ध इनका स्वर मार्क्सवाद से प्रभावित परिलक्षित होता है। शोषितों, दलितों तथा जाति-व्यवस्था के शिकार लोगों को समता, बन्धुघुत्त्व, समाजवाद, बाल सुधार, महिला-उद्धार आदि के घरातल पर लाने में इन पर महात्मा बुद्ध, कबीर दास तथा डॉ. अम्बेडकर जी के दार्शनिक विचारों का प्रभाव दिखाई देता है। समानता, नीयत, श्रृंखला, मजदूर-दिवस, दलित-उद्धार, बदलता दौर, संदेश, अथक प्रयास, 'दलितों की सजग प्रहरी-मूकवक्ता', आज आदि कविताएँ इन्हीं तथ्यों पर आधारित हैं।
मेरी जननी, आदमी, सामाजिक कैंसर, मृग तृष्णा, क्या होगा, आइना, 'बढ़ते कदमों से झनझनाहट', समय की पहचान, लक्ष्य, प्यार का बंधन, चेतना, कविताएँ सामाजिक परिवर्तन एवं चेतना को द्योतित करती हैं तथा सामाजिक सरोकारों का यथार्थ चित्रण करते हुए आदर्शों को प्रस्तुत करती हैं। इन्होंने अंधविश्वास एवं पाखण्ड पर करारा प्रहार किया है। वी.एस. हरित जी प्रकृति-प्रेमी होने के साथ-साथ पर्यावरण के प्रति मानव समाज को सजग एवं सतर्क करते हैं।
मेरा वाहन : हद होली, आधुनिक रावण, मानव आबाद या बर्बाद, वृक्ष हमारा रक्षक, मानव कल्याण या विनाश आदि हरित जी की कविताएँ पर्यावरण के प्रति सजग दृष्टिकोण का विकास करती हैं।
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