चारु चन्द्रलेख आचार्य हजारीप्रसाद द्धिवेदी की कलम से निकली हुई एक गहन संवेध कृति है | इसमें 12वी-13वी सदी के भारत का व्यक्ति और समाज बारीकी से व्यक्त हुआ है |
समय के उस दौर में देश के लिए विदेशी आक्रमण का प्रतिरोध एक बड़ी चुनौती का दायित्व था लेकिन देश की समूची आध्यात्मिक तथा इतर शक्तियाँ पुरातन अन्धविश्वास के रास्ते नष्ट हो रही थी | ऐसे समाज के पुनर्गठन का काम पूरी तरह से उपेक्षित था और नए मूल्यों के सृजन की जरुरत की अनदेखी हो रही थी |
हजारीप्रसाद द्धिवेदी का यह उपन्यास उस योग की जड़ता तोड़ने के बहाने काल निरपेक्ष रूप से देश में नए उत्साह का संचार करता है | रचना का यही बल इसे कालजयी बनाता है | एक गाम्भीर्य पूर्ण दायित्व को निभाते हुए चारु चन्द्रलेख एक बेहद रोचक वृतांत भी है और इसीलिये प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है |
Hindu (हिंदू धर्म) (12711)
Tantra (तन्त्र) (1023)
Vedas (वेद) (707)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1906)
Chaukhamba | चौखंबा (3360)
Jyotish (ज्योतिष) (1466)
Yoga (योग) (1096)
Ramayana (रामायण) (1383)
Gita Press (गीता प्रेस) (733)
Sahitya (साहित्य) (23197)
History (इतिहास) (8267)
Philosophy (दर्शन) (3395)
Santvani (सन्त वाणी) (2590)
Vedanta (वेदांत) (120)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist