संगीत में अवनद्ध वाद्य की समृद्ध एवं वैभवशाली परम्परा है। जिसके फलस्वरूप संगीत वाद्यों में अवनद्ध वाद्यों का विशिष्ट स्थान रहा। अवनद्ध वाद्यों का प्रयोग प्राचीन काल से ही संगत एवं स्वतंत्र दोनों रूपों में दृष्टिगोचर होता है। प्राचीन कालीन अवनद्ध वाद्यों में मध्य काल व वर्तमान तक आते-आते आमूल-चूल परिवर्तन होना स्वाभाविक ही है, क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। प्राचीन कालीन अवनद्ध वाद्यों की परम्परा में विविध कालान्तर में आये किचिंत ढाँचे, स्वरूप, वादन विधि, नामकरण इत्यादि में क्यों व किस सीमा तक बदलाव आया व उनका वर्तमान में क्या स्वरूप है ? इन्ही समस्त बिन्दुओं का गहनता व सुक्ष्मता से अध्ययन करने हेतु प्रस्तुत पुस्तक "प्राचीन कालीन अवनद्ध वाद्यों के बदलते स्वरूप" को सकारात्मक स्वरूप दिया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक में अवनद्ध वाद्य विषय से सम्बन्धित तथ्यों का संकलन पुस्तकालयों, संग्रहालयों, दृश्य-श्रव्य सामग्री, इण्टरनेट एवं संगीत जगत के कलाकारों व विद्वानों से विचार-विमर्श को विश्लेषण, साक्षात्कार, सर्वेक्षण, वर्णनात्मक व विवरणात्मक विधि के माध्यम से किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक के अन्तर्गत प्राचीन अवनद्ध वाद्यों के अध्ययन के लिये भरतमुनि कृत नाट्यशास्त्र ग्रंथ आधार व अति महत्त्वपूर्ण ग्रंथ माना गया है। अवनद्ध वाद्यों के अस्तित्व को बनाये रखने में प्रस्तुत ग्रंथ ने अतुलनीय भूमिका का निर्वाह किया है। प्राचीन काल, मध्यकाल व वर्तमान में वर्णित कुछ वाद्य समान प्रतीत होते हैं तो कुछ वाद्यों के ढाँचे, नाम एवं स्वरूप में परिवर्तन परिलक्षित होते हैं, कुछ अन्य नये वाद्य भी विकसित हुए एवं उनका वर्तमान में स्वतन्त्र स्वरूप है। पुस्तक में अध्ययन को 4 अध्यायों में विभक्त कर अन्त में उपसंहार के रूप में समस्त अध्यायों का निष्कर्ष कर अध्यापन कार्य सम्पन्न किया गया है।
प्रथम अध्याय 'संगीत एवं वाद्य-उत्पत्ति, विकास एवं इतिहास का अध्ययन के अन्तर्गत संगीत की उत्पत्ति, संगीत में वाद्यों का वैशिष्ट्र, वाद्य शब्द की विस्तृत व्याख्या, वाद्य-वृन्द, वाद्य वर्गीकरण में तत्, घन, सुषिर व अवनद्ध वाद्य एवं अवनद्ध वाद्यों का संक्षिप्त इतिहास का अध्ययन किया गया है।
द्वितीय अध्याय प्राचीन काल में वर्णित कतिपय अवनद्ध वाद्यों का अध्ययन के अन्तर्गत नाट्यशास्त्र ग्रंथ-सामान्य परिचय देते हुए नाट्यशास्त्र ग्रंथ का रचनाकाल, नाट्यशास्त्र ग्रंथ में वर्णित विद्वानों/आचार्यों के नाम, नाट्यशास्त्र ग्रंथ के अध्याय, अवनद्ध वाद्य की उत्पत्ति, अवनद्ध वाद्यों की उपयोगिता, अवनद्ध वाद्यों के प्रकारः-1. अंग वाद्यों का परिचय 2. प्रत्यंग वाद्यों का परिचय दिया गया है।
तृतीय अध्याय 'मध्य काल में वर्णित कतिपय अवनद्ध वाद्यों का अध्ययन' के अन्र्तगत संगीत रत्नाकर ग्रंथ-सामान्य परिचय, भाष्य एवं भाष्यकार, विषय सामग्री में सप्त अध्याय का अध्ययन कर संगीत रत्नाकर ग्रंथ में वर्णित वाद्य वर्गीकरण, संगीत रत्नाकर ग्रंथ में वर्णित अवनद्ध वाद्यः-23 प्रकार के अवनद्ध वाद्यों में पटह, मर्दल, हुडुक्का, करटा, घट, दवस, ढक्का इत्यादि वाद्यों का विस्तृत विवरण किया गया है।
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