वैदिक धर्म कर्मकाण्ड प्रधान है। समस्त वैदिक साहित्य यज्ञ की पृष्ठभूमि में आलोकित है। सम्पूर्ण सृष्टि यज्ञमय है। यज्ञ ही निखिल जगत् की उत्पत्ति का केन्द्र है। चराचर-दृष्टादृष्ट समस्त जड़ चेतन इसी यज्ञ-क्रिया के परिणाम हैं। इसीलिए तो ऋचा उद्घोषित करती है कि 'यज्ञेन यज्ञमयजन्तदेवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्' अर्थात् यज्ञ से देवों ने यज्ञ-रूप प्रजापति का यजन किया था। यज्ञ-क्रियाएँ ही प्रथम धर्म के रूप में अनुस्यूत हैं। यज्ञानुष्ठान से मानवीय ऐहिकामुष्मिक कामनाओं की पूर्ति सम्भव है।
यज्ञ का परिवेश अत्यन्त व्यापक है। स्वयं प्रकृति सम्प्रति अध्वर्यु के रूप में यज्ञ-क्रिया को अग्रेषित कर रही है। यज्ञ-सम्पादन में ऋतुओं का विशिष्ट महत्त्व है। ऋतुओं के अनुकूल ही यज्ञ सम्पन्न किये जाते हैं। इसीलिए यज्ञ में आदि देव ने ऋतुओं को आज्य, इध्म, हवि एवं अग्नि आदि के रूप में भी निरूपित किया है।
यज्ञ की तीन संस्थाएँ हैं १. हवि, २. सोम तथा ३. पाक। इन त्रिधात्मक संस्थाओं में क्रमशः सात-सात यज्ञ-विधाएँ विहित हैं, जिनमें हवि एवं सोम संस्थाक यागों को श्रौत अथवा वैदिक यज्ञ कहा गया है। उभय विधि वैदिक यागों (हवि एवं सोम) के क्रमशः दर्शपूर्णमास एवं अग्निष्टोम प्रकृति यज्ञ हैं। अक्षय्य सुकृत रूप फल प्रदान करने वाला ऋतु-सम्बन्धी चातुर्मास्य नामक याग स्वयं में प्रकृति एवं विकृति उभय रूप धारण करता है, जिसके आनुष्ठानिक विधि-विधान समग्र याज्ञिक साहित्य में प्रस्तुत किये गये हैं। वेदों की विविध शाखाओं में चातुर्मास्य यज्ञ की आनुष्ठानिक प्रक्रियाएँ यत्किञ्चित् भिन्नता के साथ विहित हैं, जिनके सापेक्षिक, समुचित एवं वास्तविक स्वरूप का प्रस्तुत ग्रन्थ में सम्यक् विवेचन करने का प्रयास किया गया है।
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu (हिंदू धर्म) (12615)
Tantra ( तन्त्र ) (1014)
Vedas ( वेद ) (706)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1903)
Chaukhamba | चौखंबा (3353)
Jyotish (ज्योतिष) (1458)
Yoga (योग) (1101)
Ramayana (रामायण) (1388)
Gita Press (गीता प्रेस) (731)
Sahitya (साहित्य) (23148)
History (इतिहास) (8260)
Philosophy (दर्शन) (3396)
Santvani (सन्त वाणी) (2591)
Vedanta ( वेदांत ) (120)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist