बच्चों के जीवन में प्रकृति का स्थान शिक्षा के हर बड़े चिंतक की विवेचना का विषय बना है। आज के युग में जब शहरी जीवन का विस्तार प्रकृति से बच्चों के संपर्क को दूभर बना चुका है, शिक्षा के लिए यह एक बड़ी चुनौती है कि पेड़-पौधों, कीड़े-मकोड़ों, जानवरों और पक्षियों की जीवंत दुनिया को बच्चों के मानसिक विकास और ज्ञानार्जन का स्रोत-संसाधन माना जाए। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 में पर्यावरण संबंधी ज्ञान को हर विषय की पढ़ाई में पिरोने की जरूरत पर बल दिया गया है। प्राकृतिक जीवन को स्वयं देखना, बारीकी से अपने अवलोकन दर्ज करना और प्रकृति के जगत में हो रही घटनाओं और परिवर्तन की प्रक्रियाओं का अनुमान लगाना शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए तो जरूरी है ही, स्वयं अपने अस्तित्व व जीवन को समग्र और शांतिदायी दृष्टि से देखने में भी मदद देता है। इस संदर्भ में पक्षी जगत के अवलोकन को प्रोत्साहित करने वाली यह पुस्तक बच्चों और शिक्षकों के लिए कुछ बुनियादी सामग्री और प्रेरणा का स्रोत देती है।
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