देखे-अनदेखे, सुने-अनसुने संदर्भों के मार्मिक क्षणों को अन्तस् की अतल गहराई तक आत्मसात् कर शब्दायित करने का प्रयास किया है। कथा कहना और लेखन, साहित्य के क्षेत्र में एक ऐसी विधा है जो सीधी पाठक के हृदय और मन-मस्तिष्क को छूकर प्रभावित करती है। नवीन दिशा की ओर इंगित करते हुए मानव सोच को बदलने में अहम भूमिका निभाती है। कथा साहित्य कभी बूढ़ा, बासी, धुँधला अथवा पुराना नहीं होता। उबाऊ भी नहीं होता। हाँ, समय के साथ-साथ इसमें परिवर्तन का दौर अवश्य आता है। यह परिवर्तन सहज, स्वाभाविक एवं समय की माँग के अनुरूप ही होता है, जो आवश्यक भी है। फिर भी कथा साहित्य हमेशा नवीनता का ही अहसास देता है।
प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष, छुए-अनछुए और कहे-अनकहे सामाजिक सरोकारों की आग के "बुझे अंगारे : गर्म राख" का अहसास आपको देने में यह कथा संग्रह अपने धरातल पर अवश्य खरा उतरेगा।
संक्षिप्त परिचयः
जन्म : आठ जुलाई, उन्नीस सौ तियालीस ।
ग्राम : पदमपुरा, दरा स्टेशन, कोटा, राजस्थान।
वर्तमान सम्पर्क : पलायथा हाऊस, मोखापाड़ा, कोटा-324006 राजस्थान ।
शिक्षाः हाई स्कूल।
सम्प्रतिः स्वतन्त्र लेखन।
रचना धर्मिताः
कथा संग्रहः शेष यात्रा, मंथन, आगे और आगे, सूना आँगन और बुझे अंगारेः गर्म राख प्रकाशित तथा तीन कथा संग्रह की पांडुलिपियाँ प्रकाशन के लिए तैयार हैं।
उपन्यासः दो उपन्यास 'और धड़कनों के पार' धारावाहिक प्रकाशित तथा राजस्थानी भाषा में लिखित उपन्यास 'होत की जोत' राजस्थानी भाषा अकादमी बीकानेर के प्रकाशन सहयोग से प्रकाशित चार उपन्यासों की पांडुलिपियाँ प्रकाशन के लिए तैयार हैं।
इनके अतिरिक्त राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में छठे दशक से ही कहानियाँ प्रकाशित होती रही हैं। आकाशवाणी कोटा से भी कहानियों का प्रसारण होता रहता है।
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