प्राक्कथन
''बौद्ध दर्शन'' मेरे ग्रंथ ''दर्शन-दिग्दर्शन'' का एक भाग है। तीसरे अध्याय को और विस्तृत रूप मैं लिखने की आवश्यकता थी, मगर इस संस्करण में वैसा करने के लिए मेरे पास समय नहीं था; दूसरे संस्करण में आशा है, मैं इस कमी को पूरा कर दूँगा। किन्तु, बुद्ध और धर्मकीर्ति के दर्शन को मैंने जितना विस्तारपूर्वक है, उससे बौद्ध दर्शन क्या है, इसे समझने में पाठकों को कोई दिक्कत न होगी। और विकासों की भाँति दर्शन के विकास को भी अलग-अलग रखकर अच्छी तरह नहीं समझा जा सकता, इसलिए बौद्ध दर्शन के विकास को जानने तथा विश्व-दर्शन में उसके महत्त्व को समझने के लिए पौरस्तय और पाश्चात्य सभी प्राचीन-अर्वाचीन दर्शनों का जानना जरूरी है जिसके लिए ''दर्शन-दिग्दर्शन'' को पढ़ने की जरूरत होगी।
प्रकाशकीय
हिन्दी साहित्य में महापंडित राहुल सांकृत्यायन का नोम इतिहास -प्रसिद्ध और अमर विभूतियों में गिना जाता है। राहुल जी की जन्म तिथि 9 अप्रैल, 1893 ई० और मृत्यु तिथि 14 अप्रैल, 1963 ई० है। राहुल जी का बचपन का नाम केदारनाथ पाण्डे था। बौद्ध दर्शन से इतना प्रभावित हुए कि स्वयं बौद्ध हो गये। 'राहुल' नाम तो बाद में पड़ा-बौद्ध हो जाने के बाद। 'सांकत्य' गोत्रीय होने के कारण उन्हें राहुल सांकृत्यायन कहा नाने लगा।
राहुल जी का समूचा जीवन घुमक्कडी का था। भिन्न -भिन्न भाषा साहित्य एव प्राचीन संस्कृत- पाली-प्राकृत- अपभ्रंश आदि भाषाओं का अनवरत अध्ययन-मनन करने का अपूर्व वैशिष्ट्य उनमें था। प्राचीन और नवीन साहित्य-दृष्टि की जितनी पकड और गहरी पैठ राहुल रमी की थी- ऐसा योग कम ही देखने को मिलता है। घुमक्कड़ जीवन के मूल में अध्ययन की प्रवृत्ति ही सर्वोपरि रही। राहुल जी के साहित्यिक जीवन की शुरुआत सन् 1927 ई० में होती है। वास्तुविकता यह है कि जिस प्रकार उनके पाँव नहीं रुके, उसी प्रकार उनकी लेखनी भी निरन्तर चलती रही। विभिन्न विषयों पर उन्होंने 150 से अधिक ग्रंथों का प्रणयन किया हैं। अब तक उनके 130 से भी अधिक ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों, निबन्धों एव भाषणों की गणना एक मुश्किल काम है।
राहुल जी के साहित्य के विविध पक्षों को देखने से ज्ञात होता है कि उनकी पैठ न केवल प्राचीन-नवीन भारतीय साहित्य में थी, अपितु तिब्बती, सिंहली, अंग्रेजी, चीनी रूसी, जापानी आदि भाषाओं की जानकारी करते हुए तत्तत् साहित्य को भी उन्होंने मथ डाला। राहुल जी जब जिसके सम्पर्क में गये, उसकी पूरी जानकारी हासिल की। जब वे साम्यवाद के क्षेत्र में गये, तो कार्ल मार्क्स, लेनिन, स्तालिन आदि के राजनीतिक दर्शन की पूरी जानकारी प्राप्त की। यही कारण है कि उनके साहित्य मे जनता, जनता का राज्य और मेहनतकश मजदूरो का स्वर प्रबल और प्रधान है।
राहुल जी बहुमुखी प्रतिभा-सम्पन्न विचारक हैं। धर्न्य, दर्शन, लोकसाहित्य, यात्रासाहित्य, इतिहास, राजनीति, जीवनी, कोश, प्राचीन तालपोथियो का सम्पादन आदि विविध क्षेत्रों में स्तुत्य कार्य किया है। राहुल जी ने प्राचीन के खण्डहरों में गणतंत्रीय प्रणाली की खोज की। 'सिंह सेनापति' जैसी कुछ कृतियों में उनकी यह अन्वेषी वृत्ति देखी जा सकती है। उनकी रचनाओं में प्राचीन के 'प्रति आस्था, इतिहास के प्रति गौरव और वर्तमान के प्रति सधी हुई दृष्टि का समन्वय देखने को मिलता है। यह केवल राहुल जी थे जिन्होंने प्राचीन और वर्तमान भारतीय साहित्य-चिन्तन को समग्रत, आत्मसात् कर हमें मौलिक दृष्टि देने का निरन्तर प्रयास किया है। चाहे साम्यवादी साहित्य हो या बौद्ध दर्शन, इतिहास- सम्मत उपन्यास हो या 'वोल्गा से गंगा' की कहानियाँ-हर जगह राहुल जी की चिन्तक मृत्ति और अन्वेषी सूक्ष्म दृष्टि का प्रमाण मिलता जाता है। उनके उपन्यास और कहानियाँ बिलकुल एक नये दृष्टिकोण को हमारे सामने रखते हैं।
समग्रत: यह कहा जा सकता है कि राहुल जी न केवल हिन्दी साहित्य अपितु समूचे भारतीय वाङ्मय के एक ऐसे महारथी हैं जिन्होंने प्राचीन और नवीन, पौर्वात्य एव पाश्चात्य, दर्शन एव राजनीति और जीतन के उन अछूते तथ्यों पर प्रकाश डाला है जिन पर साधारणत: लोगों की दृष्टि नहीं गयी थी। सर्वहारा के प्रति विशेष मोह होने के कारण अपनी साम्यवादी कृतियों में किसानों, मजदूरों और मेहनतकश लोगों की बराबर हिमायत करते दीखते हैं।
विषय के अनुसार राहुल जी की भाषा-शैली अपना स्वरूप निर्धारित करती है। जिन्होंने सामान्यत: सीधी-सादी सरल शैली का ही सहारा लिया है जिससे उनका सम्पूर्ण साहित्य-विशेषकर कथा-साहित्य-साधारण पाठकों के लिए भी पठनीय और सुबोध है।
प्रस्तुत पुस्तक 'बौद्ध दर्शन' के पाँच अध्यायों में बौद्ध दर्शन-सम्बन्धी सभी मान्यताओं पर सांगोपांग चर्चा करके बौद्ध दर्शन को सुस्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। बौद्ध दर्शन और उरस्के प्रधान व्याख्याता धर्मकीर्ति के दर्शन की जितनी विस्तृत जानकारी इसमें प्राप्त है, उसे समझने में विषय- मर्मज्ञ एव सामान्य पाठकों को भी कोई कठिनाई नहीं होगी। आशा है, प्रस्तुत पुस्तक विद्वानों एव जिज्ञासुओं में पूर्व की भाँति ही समादृत होगी।
विषय-सूची
1
गौतम बुद्ध के मूल सिद्धान्त
2
गौतम बुद्ध
17
3
नागसेन
55
4
बौद्ध सम्प्रदाय
68
5
बौद्ध दर्शन का चरम विकास
83
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