भौतिकवादी एवं उपभोगवादी संस्कृति ने मानव समाज को अपने वर्तमान जीवनशैली पर पुनर्विचार करने पर लगभग विवश कर दिया है। एक तरफ विश्व विश्व युद्ध, आतंकवाद, स्वास्थ्य, पर्यावरणीय संकट से गुजर रहा है, वहीं दूसरी तरफ समाज पारिवारिक विखंडन, भ्रष्टाचार, नक्सलवाद, भेदभाव आदि से गुजर रहा है। वैयक्तिक स्तर पर भी मानव भावनात्मक स्तर पर विषाद्, निराशा, हताशा, कुंठा, अवसाद, उपेक्षा आदि से गुजर रहा है। ऐसे में समग्र मानव जीवनशैली पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। इस बदली हुई सांस्कृतिक मूल्यों में भी महात्मा बुद्ध एवं पतंजलि के विचारों पर आधारित नीति दर्शन विश्व को आकर्षित एवं प्रभावित कर रहा है। इसतरह की जीवनशैली को बहुत तेजी से अपनाने की कोशिश, मानव समाज द्वारा, चल रही है। पतंजलि ने अपने यौगिक विधि से आत्मसंयमित जीवन की प्रेरणा देकर मानव-समाज का बड़ा ही उपकार किया है। आज विख्यात योग परंपरा के अनुमोदनकर्ता स्वामी सत्यानन्द सरस्वती (मुंगेर, बिहार), स्वामी रामदेव (हरिद्वार) आदि की विधि पातंजलयोग की विधि से अनुप्राणित है जिसका व्यापक प्रभाव मानव जीवन पर पड़ा है। महात्मा बुद्ध ने भी वैयक्तिक, सामाजिक एवं वैश्विक स्तर पर जिन नैतिक सद्गुणों पर आधारित वैयक्तिक कल्याण एवं लोक कल्याण की धारणा को स्थापित किया है-वे कई वैश्विक एवं वैयक्तिक समस्याओं के समाधान के रूप में विश्व को लुभ रहा है। पतंजलि ने नैतिक (यम, नियम), दैहिक एवं प्राणिक (आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार) और मानसिक व आध्यात्मिक (धारणा, ध्यान, समाधि) संयम पर आधारित जीवन शैली की अनुशंसा कर आज मानव समाज के एक बड़े भाग को प्रभावित किया है और अनुपालन करने के लिए प्रेरित किया है। यौगिक विधि पर आधृत जीवन को आज आंशिक रूप से ही सही लेकिन विश्व के बहुत लोगों ने अपनाया है। उसी तरह बुद्ध के प्रज्ञा, शील, एवं समाधि के अन्तर्गत आनेवाले अष्टांगिक मार्ग के विभिन्न अंग एवं पंचशील ने बिना किसी अतिवादी प्रक्रिया को वरण किये। मानवोचित जीवन की ओर बहुत बड़े मानव समुदाय को जोड़ा है। लोककल्याणकारी विचार का स्पष्ट निर्देश बुद्ध के विचारों में विद्यमान है जिसने लोककल्याण कारी मानव समाज की स्थापना का स्पष्ट प्रवर्तन करने का दिशा-निर्देश देने का काम किया है।
नैतिक सद्गुणों पर आधारित वैयक्तिक कल्याण एवं लोक कल्याण संबंधी उत्कृष्ट एवं व्यवस्थित जीवनशैली की अनुशंसा महात्मा बुद्ध एवं पतंजलि इन दोनों के विचारों में देखने को मिलती है।
बुद्ध के विचारों पर आधृत परंपरा को जहां नास्तिक परंपरा में रखा गया है वहीं पतंजलि आस्तिक परंपरा का निर्वाह करते हैं। अनात्मवाद, अनीश्वरवाद, क्षणभंगवाद, प्रतीत्य समुत्पाद जैसे दार्शनिक विचारों का प्रवर्त्तन बुद्ध के विचारों में होता है, वहां पतंजलि बुद्ध के दार्शनिक विचारों से भिन्न नित्य आत्मा की सत्ता, ईश्वर की सत्ता, सत्कार्यवाद (परिणामवाद) एवं विकासवाद के अनुमोदन करने वाली परंपरा का निर्वाह करते हैं। दार्शनिक विचारों में भिन्नता रहने के बावजूद दोनों ने नैतिक सद्गुणों पर आधारित एक संयमित जीवन की अनुशंसा की है। बुद्ध ने मध्यम मार्ग का प्रतिपादन किया, वहां पतंजलि ने राजयोग (मनोदैहिक नियंत्रण की कठोर विधि) की स्थापना की है। चूंकि बुद्ध ने नास्तिक परंपरा का निर्वाह करते हुए, कुछ भिन्न दार्शिनिक विचारों का प्रतिपादन करते हुए, मध्यम मार्ग का प्रतिपादन किया है और पतंजलि आस्तिक परंपरा का निर्वाह करते हुए, कुछ भिन्न दार्शनिक विचारों को प्रतिपादित करते हुए कठोर संयमात्मक जीवन पर बल दिया है, लेकिन दोनों ने सद्गुणों पर आधारित जीवनशैली की अनुशंसा की है। इसलिए दोनों के नीति दर्शन का तुलनात्मक अध्ययन एक महत्वपूर्ण आकर्षण का विषय है। इसी उद्देश्य से इस शोध कार्य में दोनों के नीतिदर्शन संबंधी विचारों का एक तुलनात्मक अध्ययन का विषय चयन किया गया है, जिसमें दोनों के विचारों के साम्य सूत्र एवं भेदसूत्र निर्धारित करने की चेष्टा की गई है। इस शोध कार्य को अध्ययन की सुविधा के लिए पाँच अध्यायों में बाँटा गया है।
भारतीय दर्शन संप्रदाय को दो वर्गों में वर्गीकृत किया गया है-
(1) आस्तिक एवं (2) नास्तिक। बुद्ध पर आधृत परंपरा वस्तुतः नास्तिक परंपरा का ही उदाहरण है जबकि पातंजल योग वेद की प्रमाणिकता को स्वीकार करनेवाली आस्तिक परंपरा का निर्वाह करता है। बुद्ध एवं पतंजलि के विचारों में नीतिदर्शन संबंधी विचारों का प्रतिपादन, स्थापन एवं अनुमोदन दीखता है। नीतिदर्शन अथवा नीतिशास्त्र आदतों अथवा चरित्र का विज्ञान है। यह अभ्यासजन्य मानव व्यवहार का विज्ञान है। लेकिन पाश्चात्य आचरण संबंधी विचारों एवं प्राच्य नीति संबंधी विचारों में स्वरूपतः अंतर है। बुद्ध एवं पतंजलि का नीतिदर्शन भारतीय परिवेश में अंकुरित, पल्लवित, पुष्पित होता आकार ग्रहण किया है। इसतरह संयमित नैतिक आचरण इसकी महत्वपूर्ण विशेषता रही है। प्रथम अध्याय भूमिका इन्हीं बातों को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है।
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