पुस्तक के बारे में
देवराहा बाबा: सद्भाव एवं विश्वशान्ति के प्रेरणा स्त्रोत
जब आनन्द में अवसाद,शान्ति में अशान्ति,योग में भोग की प्रवृत्ति बढ़ती है तो युगद्रष्टा गुरु की खोज में सभी विकल रहते हैं । ब्रह्मर्षि देवराहा बाबा इस कलियुग में अप्रतिम गुरु थे जो भगवत्स्वरूप थे जिनके दर्शन,स्पर्श और शुभाशीष से तत्व ज्ञान की प्राप्ति सम्भव थी । उनके अन्त:करण से प्रस्फुटित वाणी में मानव पर मंत्रवत् प्रभाव डालने की क्षमता थी । वे भारतीय संस्कृति के विग्रह थे जो दया,ममता,कल्याण के स्रोत थे । पूज्य देवराहा बाबा का सर्वात्म दर्शन मानव में सद्भाव,प्रेम और विश्वशान्ति का उत्प्रेरक तत्व है जिसकी आज सर्वाधिक आवश्यकता है । ब्रह्मर्षि देवराहा बाबा के नाम की जितनी प्रसिद्धि है,उनके परिचय की उतनी ही अल्पता है । उनके दिव्य व्यक्तित्व को सांगोपांग रूप में प्रस्तुत करने में डॉ० अर्जुन तिवारी का प्रयास प्रशंसनीय है । बाबा के शिष्य डॉ० तिवारी ने पत्रकार-सुलभ प्रवृत्ति के चलते युग-प्रवर्तक संत,भक्त और योगी की जीवन-गाथा को प्रामाणिक रूप में उपस्थापित किया है । श्रद्धार्चन,जीवन-जाह्नवी,सर्वात्मभक्ति-योग,प्रवचन-पीयूष,सुबोध कथा,सूक्ति-मुक्ता और अनुगतों की अनुभूति नामक अध्यायों में ब्रह्मर्षि से संदर्भित अनुकरणीय तथ्य हैं । पाण्डुलिपि को पढ़ते समय मुझे ऐसा लगा कि इसका प्रत्येक शब्द आध्यात्मिक अनुभूति से स्फूर्त है जिसके चिन्तन और मनन से मन को अलौकिक शान्ति मिलती है और चित्त निर्मल होता है ।
देवत्व और मनुष्यत्व के सुभग समन्वय,’असीम दया’ के सम्बल,लोकमंगल के अवतार ब्रह्मर्षि देवराहा बाबा पर प्रस्तुत ग्रंथ कल्याण-कामी जनों के लिए अत्यन्त उपादेय सिद्ध होगा । इस संग्रहणीय पुस्तक के लेखक व प्रकाशक दोनों ही साधुवाद के पात्र हैं जिनके चलते धर्म,नैतिकता एवं साम्प्रदायिक सद्भाव से संवलित साहित्य का सृजन एवं संचारण हो रहा है ।
आमुख
गिरिजा संत समागम,सम न लाभ कछु आन ।
बिनु हरि कृपा न होई सो,गावहिं वेद पुरान ।।
जगत् के कल्याण हेतु सद्ज्ञान,सत्कर्म और सद्भक्ति की त्रिवेणी प्रवाहित करने वाले योगेश्वर देवराहा बाबा सदाचरण तथा सद्भाव के अक्षय स्रोत थे । आलोक पुञ्ज आनन की मंद स्मिति,वेदमयी वाणी का सहज प्रवाह,आशीर्वादों के प्रतीक प्रसाद का मुक्तहस्त वितरण,’असीम दया’ का वरदान,भक्तों को भगवान के सम्मुख खड़ा कर देने वाले ब्रह्मर्षि की संकल्पोक्तियाँ आज दुर्लभ हो- गईं । पुन: चिन्तन करने पर लगता है कि भौतिक काया का क्या महत्त्व? आराध्य देव तो दिव्य ज्योति थे,उनके उपदेश आज भी सम्बल बने हुए हैं । बाबा सूक्ष्म रूप में अब भी भावुक भक्तों के सम्मुख हैं ।
पूज्य देवराहा बाबा आत्म विज्ञापन से बहुत दूर रहते थे । एक बार मैंने निवेदन किया कि राम और कृष्ण का जीवन लिपिबद्ध है जो अंधकार में प्रकाश स्वरूप है । इसी प्रकार महाराज का जीवन भी लिपिबद्ध हो जाय तो कल्याण ही है । मेरे कथन पर उनके मुखारविन्द से निकला- बच्चा पत्रकार अर्जुन! तूँ मेरी आत्मा है,तूँ मेरे ऊपर ग्रंथ न लिख,सद्धर्म सम्बन्धी बातें लिख दे। ले यह भगत हरवंश की किताब है,इसी को आगे बढ़ा । ‘प्रसाद रूप में प्राप्त पुस्तक और महाराज जी के निर्देश पर ही यह लघु ग्रंथ प्रस्तुत है ।
श्रद्धार्चन,जीवन-जाह्नवी,सर्वात्मभक्ति-योग,प्रवचन-पीयूष,सुबोध कथा,सूक्ति-मुक्ता और अनुगतों की अनुभूति नामक अध्यायों में जहाँ योगी,भक्त,संत की महिमा वर्णित है वहीं उनकी अमृतवाणी को अविकल रूप में प्रस्तुत किया गया है । सुबोध कथा,प्रवचन पीयूष से पाठक आत्मोन्नयन कर सकते हैं । इस साम्प्रदायिक विद्वेष की घड़ी में महाराज जी का सर्वात्मभक्ति योग सौहार्द का आधार है ।
आशा ही नहीं,मुझे पूर्ण विश्वास है कि ब्रह्मर्षि के प्रसाद रूप में प्रस्तुत इस ग्रंथ के पारायण से सबको अम्युदय और मोक्ष की सिद्धि होगी एवं विश्व-शान्ति का पथ प्रशस्त होगा ।
विषयानुक्रमणिका
प्रथम
अध्यायश्रद्धार्चन
1-7
द्वितीय
अध्यायजीवन-जाह्नवी
8-30
तृतीय
अध्याय सर्वात्मभक्ति-योग
31-47
चतुर्थ
अध्यायप्रवचन-पीयूष
48-57
पंचम
अध्यायसुबोध कथा
58-65
षष्ठ
अध्यायसूक्ति मुक्ता
66-80
सप्तम
अध्यायअनुगतों की अनुभूति
81-104
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