शैतान का दवा है कि मेरा रास्ता ही सर्वोपरि कल्याणकारी है! उसका कहना है कि जो जितना ही ईश्वर-भक्त है-सत्य, ज्ञान, धर्मं और न्याय के मार्ग पर चलनेवाला-वह उतना ही दुखी, पीड़ित, त्रस्त्र और दरिद्र है; लेकिन जो जितना ही मेरे रास्ते पर चलने वाला है, वह उतना ही सुखी और समृद्ध'... और अब, जबकि हर व्यक्ति सुख-समृद्धि के लिए पगलाया घूम रहा है, क्या हमें शैतान की राह पर ही चलना होगा?
सुप्रसिद्ध लेखक कार्टूनिस्ट और चित्रकार आबिद सुरती की यह बहुचर्चित व्यग्यकृति, जिसे उसने शैतान कि रचना कहा है, बहुत ही अनूठे तरीके से हमारी आज की दुनिया पर शैतानी गिरफ़्त का प्रमाण पेश करती है! इससे गुज़रते हुए हम न सिर्फ मानव-सभ्यता के पुराकालीन जीवनादर्शों के छद्मम को उजागर होता हुआ देखते हैं बल्कि अपने नग्न और मूल्यहीन वर्तमान को भी आश्चार्यजनक ढंग से पहचान जाते हैं! वस्तुत: यह किताब 'काली' ही इसलिए है कि इसका हर पन्ना हमारी परंपरागत दृष्टि को अपनी उज्जवल चमक से चौंधियाने की ताक़त रखता है!
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