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बंगाल में भाजपा- BJP in Bengal (Right Wing's Development Journey in the Left Bastion)

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Specifications
HBE241
Author: Manjit Thakur
Publisher: Penguin Books India Pvt. Ltd.
Language: Hindi
Edition: 2024
ISBN: 9780143466901
Pages: 226
Cover: PAPERBACK
8.50 X 5.50 inch
200 gm
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Book Description
पुस्तक परिचय
आज़ादी के बाद से, पहले जनसंघ और फिर भाजपा ने बंगाल पर कब्जे की हर संभव कोशिश की है। कभी वामपंथ के गढ़ के रूप में परिभाषित बंगाल में 2016 से राजनीति ने करवट बदली है। 2006 के विधानसभा चुनावों में वाम मोर्चे के ज़बरदस्त प्रदर्शन के बाद आहिस्ता आहिस्ता उसका जनाधार छीजता चला गया। यहाँ भाजपा के करिश्माई सेनापति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रचंड चुनावी लहर का मज़बूती से सामना करने वाली तृणमूल नेता ममता बनर्जी ने 2021 के विधानसभा चुनावों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है - तो क्या अब राज्य की राजनीति में केंद्रीय भूमिका में आने की बारी भाजपा की है ?

वरिष्ठ पत्रकार मंजीत ठाकुर ने पश्चिम बंगाल की राजनीति को करीब से देखने के साथ पिछले 15 वर्षों का हर चुनाव कवर किया है। बंगाल पर अपने गहन शोध व विमर्श के बाद उनका मानना है कि आने वाले चुनावों में भाजपा के पास 'राष्ट्रवाद' और 'रामलला' हैं, लेकिन ममता के पास पहले की तरह 'बंगला अस्मिता' और 'सांस्कृतिक उपाख्यानों' का सहारा है। राष्ट्रवाद और उपराष्ट्रवाद के बीच का द्वंद्व बंगाल के चुनावी युद्ध को और अधिक दिलचस्प बना रहा है।

यह पुस्तक बंगाल में भाजपा (और संघ परिवार) की यात्रा को विस्तार से बताने के साथ-साथ पाठकों को आजादी के बाद से अब तक, बंगाल की बहुरंगी राजनीति से रू-ब-रू कराती है।

लेखक परिचय
झारखंड के मधुपुर में जन्मे मंजीत ठाकुर पेशे से पत्त्रकार हैं। संप्रति वह दिल्ली में रहते हैं और इन दिनों आवाज-द वॉयस के डिप्टी एडिटर हैं। मंजीत ने आइआइएमसी, नई दिल्ली से रेडियो और टीवी पत्रकारिता में डिप्लोमा हासिल किया और फिर भारतीय फिल्म और टेलिविजन संस्थान, पुणे से फिल्म की पढ़ाई की। उन्होंने दो दशक पहले अपनी पत्रकारीय यात्रा की शुरुआत नवभारत टाइम्स से की और फिर डीडी न्यूज़ में लंबा वक्त बिताया। उसके बाद वह इंडिया टुडे पत्रिका और फिर पॉकेट एफएम में कंटेंट हेड (मेल) रहे।

मंजीत ठाकुर ने पश्चिम बंगाल की राजनीति को करीब से देखा है और 2009 के बाद से राज्य का तकरीबन हर चुनाव कवर किया है। उन्होंने विभिन्न जनजातीय समुदायों की समस्याओं पर किताब 'ये जो देश है मेरा' लिखी है, जो विस्थापन की पीड़ा और उससे उपजने वाले मानवीय संघर्षों पर है। उन्होंने सांस्कृतिक उपन्यास 'गर्भनाल' लिखा है और उनकी तीन कहानियाँ अंग्रेजी में अनूदित होकर 'स्टोरीवाला' शीर्षक संग्रह में प्रकाशित हुई है। वह 'फलक' कहानी संग्रह के संपादक रहे हैं। इसके अलावा, उन्होंने एक ऑडियो नॉवेल 'रॉबिन' भी लिखा है, जो स्टोरीटेल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध है।

मंजीत ने दूरदर्शन में राजनैतिक, पर्यावरण, सामाजिक मसलों पर जमकर रिपोर्टिंग की है और बहुत सारी डॉक्यूमेंट्रीज बनाई। मशहूर स्टोरीटेलर नीलेश मिसरा के लिए उन्होंने पचास से अधिक कहानियाँ लिखी हैं। उन्होंने बहुत सारी ऑडियो सीरीज भी लिखी हैं, जिनमें ऑडिबल के लिए 'हमलावर, और अन्य मंचों के लिए 'भारत की रानियाँ, 'योद्धा, सावन ऐप के लिए 'परमवीर चक्र', 'टाइम मशीन' आदि शामिल हैं।

लेखक ने वीएस नायपॉल की 'द लॉस ऑफ एल दोरादो, 'द नाइटवॉचमैंस अक्युरेंस बुक ऐंड अदर कॉमिक स्टोरीज, एपीजे अब्दुल कलाम की 'आरोहण, प्रणय रॉय की 'भारतीय जनादेश', अश्नीर ग्रोवर की 'दोगलापन', भूपेंद्र यादव और इला पटनायक की 'भाजपा का अभ्युदय' और रघुराम राजन और रोहित लांबा की 'ब्रेकिंग द मोल्ड' समेत चौदह किताबों का अनुवाद भी किया है। इसके अलावा, विजय निवेदी की किताब 'संघम शरणम गच्छामि' और प्रखर श्रीवास्तव की किताब 'हे राम' का संपादन भी उन्होंने किया है।

आभार
2024 का साल चुनावी है। केंद्र में भाजपा की सरकार है और नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व का विकल्प राजनैतिक तौर पर फिलहाल नहीं दिख रहा। हालाँकि, राजनीति गुंजाइशों का विज्ञान है और कई दफा बेहद शक्तिशाली और लोकप्रिय नेता जनता की परीक्षा में विफल हो जाते हैं।

भाजपा ने भी पश्चिम और मध्य भारत में अपने विस्तार के शिखर को हासिल कर लिया है। ऐसे में उसकी राजनीतिक जड़ों को पूरब की मिट्टी में पनपना होगा। बिहार, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा जैसे राज्य उसके लिए अभी तक वर्चस्व के बाहर हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के लिए पश्चिम बंगाल की अहमियत इसलिए भी अधिक हो जाती है, क्योंकि सिर्फ वहाँ की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस नेत्री ममता बनर्जी ही हैं, जो उनके विरुद्ध ताकतवर दिखती हैं। ऐसे में सूबे की सियासत इस लोकसभा चुनाव ही नहीं, बल्कि 2026 के विधानसभा चुनावों में भी काफी दिलचस्प रहने वाली है और मैंने उसके पीछे के आख्यानों को समेटने की कोशिश की है।

प्रस्तावना
लोकतंत्र का सौंदर्य इसी बात में निहित है कि करिश्माई नेतृत्व को भी जनता के दरबार में हाथ बाँधकर खड़ा होना पड़ता है और हर पाँच साल पर लोकतंल की आवश्यक शर्त रहे 'लोक' ने दलों को चाय की पत्ती की तरह उबाल कर उसके रंग और जायके को परखा है। बड़े से बड़े दल को भी बहुमत के बावजूद इस बात की आकांक्षा रहती है कि उसका प्रभाव क्षेत्र सीमित इलाके या खास 'पट्टी' में ही न रहे। अपने प्रभाव क्षेत्र के विस्तार की इस आकांक्षा में दलों के पास अपनी-अपनी विशिष्ट विचारधारा और शासन की शैलियाँ होती हैं। सबके अपने खास वोट बैंक होते हैं, हर दल पर खास किस्म का ठप्पा भी लगा है। बिलाशक, राजनैतिक दलों के राजनेता अमूमन खुद को सर्वस्वीकार्य नेतृत्व के रूप में पेश करते हैं, लेकिन दलीय वैचारिक भिन्नताएँ कई बार हिंसक हो उठती हैं।
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