धरती आबा बिरसा मुंडा के बारे में सच कहा जाये तो जितनी मुँह उतनी बातें वाली कहावत चरितार्थ होती है। यह कहावत सच भी है क्योंकि ये देश के ऐसे नायक हैं जिनके लिये अपने पास करने के लिये जो कुछ भी था समाज और देश के दबे-कुचले लोगों के लिये था। समाज और गरीब लोगों की सेवा करने के कारण ही तो इन्हें भगवान कहा जाने लगा।
विरसा उलगुलान अग्रेजों के विरुद्ध तो था ही परंतु इससे अधिक शोषण से मुक्ति के लिये था। उन दिनों में जिस तरह से मुडाओं और यहाँ के मूलवासियों के साथ साहुकारों द्वारा अत्यचार होता था वह स्वीकार करने लायक बिल्कुल भी नहीं था। गरीब लोगों को मारा-पीटा, लूटा-खसोटा जाता, विभिन्न तरह से अत्यचार किये जाते थे। ऐसे ही अनगिनत घटनाओं से परेशान होकर बिरसा का आंदोलन शुरू हुआ।
बहुत कम समय का ही बिरसा का आंदोलन रहा था परतु इस छोटी अवधि में ही अंग्रेजो और साहुकारों के दाँत खटे हो गये थे। इस काल में सभी समुदाय के दबे-कुचले लोग साहुकारों के चंगुल से अपने को आजाद करने के लिये छटपटा रहे थे। ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों से लोग परेशान थे। यही कारण था कि बिरसा जैसे सीधे-साधे लोगों को भी आंदोलन का सहारा लेना पड़ा।
इस पुस्तक के माध्यम से बिरसा मुंडा के विभिन्न पहलूओं पर फिर से तथ्यों के साथ प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। साथ ही उनके बचपन एवं संघर्ष की गाथा के साथ यहाँ की आदिवासी जनता को समझाने का प्रयास किया गया है।
बिरसा आंदोलन से पहले के आंदोलनों से किस तरह बिरसा प्रेरित हुए और अपने संघर्ष या उलगुलान के लिए राह निकाले इस विषय को भी समझा जा सकता है।
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