प्रस्तुत पुस्तक, मूल रूप से भारतीय महाकाव्य महाभारत (ई.पू. 400 और 600 ई.) के विभिन्न पर्वो तथा दिव्यावदान (चौथी शताब्दी) के विभिन्न बौद्ध उपाख्यानों से संग्रहीत कई अवदानों में से एक रुद्रायणावदान के अन्तर्गत अलग-अलग रूपों में चित्रित उभयनिष्ठ केन्द्रीय पात्र 'शिखण्डी' के वृत्तान्तों, आख्यानों और उनके जीवन-वृत्तों पर आधारित आलोचनात्मक तथा गहन अनुशीलन और शोध का परिणाम है। सामान्यतया अवदान को इस प्रकार की रचना माना जाता है, जिसमें प्रतिष्ठित बौद्ध महाविभूतियों की महान, गौरवपूर्ण तथा उत्कृष्ट उपलब्धियों का वर्णन होता है। हमें ऐसे तमाम अवदानों की जानकारी प्राप्त होती है, जिनमें से कुछ प्रमुख अवदानों में अवदान शतक, अशोकावदान, कुशावदान और मान्धातावदान जैसे अवदान इस प्रकार की विषय सामग्री से सम्बन्धित हैं। प्रस्तुत पुस्तक दिव्यावदान ही अड़तीस ऐसे अवदानों का संकलन है जिनमें से हमने 'रुद्रायणावदान' नामक अवदान को अपने अध्ययन के लिए चुना है क्योंकि यह एक दूसरे अपेक्षाकृत ऐतिहासिक रूप से अज्ञात शिखण्डी का उल्लेख करने वाले ग्रन्थ महाभारत की कतिपय घटनाओं की जानकारी प्रस्तुत करता है। इस शिखण्डी को अनुपयुक्त रूप से, किन्तु लोकप्रसिद्धि में रौरुक के राजा रुद्रायण तथा रानी चन्द्रप्रभा के पुत्र के रूप में जाना जाता है। रुद्रायण तथा शिखण्डी क्रमानुसार ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में, महात्मा बुद्ध तथा राजगृह के शासक बिम्बिसार के पड़ोसी शासक हुये। उपरोक्त दोनों स्रोतों महाभारत तथा रुद्रायणावदान के वृत्तान्त, आख्यान, घटनायें तथा उपाख्यान अतीत के विभिन्न कालखण्डों से सम्बन्धित हो सकते हैं। ऐतिहासिक रुप से देखने पर पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में स्थित आज के बरेली तथा रामपुर में प्राचीन काल में अहिच्छत्र, तथा फर्रुखाबाद जिले के कम्पिल में पंचाल के राजा द्रुपद की राजधानी थी और द्रुपद का बेटा शिखण्डी था। महाकाव्य महाभारत के वर्णन के अनुसार द्रुपद तथा शिखण्डी, विशेषकर शिखण्डी, प्राचीन काल के प्रख्यात महापुरुषों जैसे कृष्ण, परशुराम, भीष्म, पाण्डव तथा अन्य लोगों के समकालीन और बीच में रखे जाते हैं। कुछ लोग महाभारत के भारत युद्ध के पूर्व, अर्थात् 3102 ई.पू. में या इसके आसपास शिखण्डी और द्रुपद को रखते हैं। पुरातात्विक दृष्टि से कुछ पुरातत्त्वविदों ने पाण्डवों के काल को चित्रित धूसरित मृदभांड संस्कृति या Painted Grey Ware Culture (जिसे सुरक्षित तथा निर्विवाद रूप से ई.पू. 900 से लेकर 600 ई.पू. के मध्य) से जोड़ा है या उनको उस काल से समीकृत किया है। चित्रित धूसरित मृद्भांड की संस्कृति वाले पुरास्थल के उत्खनन कर्ताओं ने इस संस्कृति के स्तर की तिथि को बहुत पीछे करीब ई.पू. 1200 के लगभग माना है परन्तु अन्य तमाम विद्वानों में इस पर मतभेद की वजह से हम इसे 900 ई.पू. से 600 ई. पू. में रखते हैं। प्राचीन हस्तिनापुर (जो अब मेरठ जिले के मवाना तहसील में स्थित है) तथा जो पूर्व में महाभारत के अनुसार पाण्डवों की राजधानी बताई जाती है, वहाँ पर चित्रित धूसरित मृद्भाण्ड (PGW) की संस्कृति प्राप्त होती है (जो ई.पू. 900 से 600ई. पू. के काल-खण्ड के मध्य में रखी जाती है)।
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