पुष्तक के बारे में
राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह (1890-1971) हिंदी कहानी के प्रारभिक दौर के सफल कथाकार और चिंतक हैं। रचनाएं तो उन्होंने सभी विधाओं में कीं पर मूलरूप से उन्हें कथाकार ही माना जाता है। तत्कालीन राजनीति में उनकी गहरी रुचि थी। गांधी जी के आदर्शो और विचारों से उनका गहरा: लगाव था। परदुखकातरता उनकी कहानियों का प्राण तत्व है। उनकी कहानियों में सामाजिक जीवन का सच. प्रभावी शिल्प और सहज भाषा में उकेरा गया है। छायावाद के वर्चस्व के दौर में भी उन्होंने अपनी कहानियों की प्रवृत्ति को सदा बहिर्मुखी बनाए रहा। दो दर्जन से अधिक महत्वपूर्ण सुस्तकों के ऐसे रचनाकार की तेरह सर्वप्रसिद्ध धगैर चर्चित कहानियां इस संकलन राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह की श्रेष्ठ कहानियां में संकलित हैं, जो निश्चय ही पाठकों को अपने समाज की विकास-प्रक्रिया और वतमान जीवन की गुत्थियों से एक साथ परिचय कराने में समथ हैं।
संकलन कमलानन्द झा हिंदी के युवा आलोचक हैं इनके अध्ययन. मनन एवं शोध का मुख्य विषय रामराज्य और तुलसीदास का मोहभंग भारत-अफ्रीका सांस्कृतिक सहसबंधं बाल रगंमचं नुक्कड़ नाटक एवं आघुनिक शिक्षा का सांस्कृतिक सदंर्भ आदि है। संचयन, संपादन के क्षेत्र में इन्होंने अपनी मही पहचान बनाई है।
अनुक्रम
1
भूमिका
सात
2
गांधी टोपी
3
मरीचिका
20
4
दरिद्रनारायण
43
5
सावनी समां
48
6
पैसे की अनी
88
7
कर्त्तव्य की बलिवेदी
103
8
ऐसा महंगा सौदा?
106
9
मां
122
10
भगवान जाग उठा!
137
11
जबान का मसला
147
12
बाप की रोटी
153
13
कानों में कंगना
175
14
अबला क्या ऐसी सबला?
181
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