ब दा सिंह बहादुर एक अदम्य सिख सैन्य नेता थे, जिन्होंने सिख राज्य की स्थापना की, जिसकी राजधानी वर्तमान हरियाणा के लोहागढ़ में थे थी। बंदा बहादुर ने 15 साल की उम्र में सांसारिक सुखों का त्याग कर दिया। उनकी लोकप्रियता तब चरम पर पहुँच गई जब उन्होंने जमींदारी व्यवस्था को समाप्त कर दिया और बाद में किसानों को पूर्ण स्वामित्व का अधिकार दिया।
बंदा सिंह बहादुर का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 को राजौरी, पुंछ में (वर्तमान जम्मू-कश्मीर) में एक राजपूत परिवार में हुआ। उनका मूल नाम लछमन देव था। बहुत कम उम्र में उन्होंने शिकार करना, घुड़सवारी करना, मार्शल आर्ट और हथियार चलाना जैसे हुनर सीखे। धनुष और तीर के साथ एक प्राकृतिक संबंध होने के कारण, वे अपनी किशोरावस्था में ही शिकार करने लगे। लेकिन जल्दी ही शिकार से उन्हें विरक्ति हो गई और वे घर छोड़कर बैरागी हो गए और उन्हें माधोदास बैरागी के नाम से जाना जाने लगा।
देश भ्रमण करते हुए वे महाराष्ट्र में नांदेड़ पहुँचे और एक मठ की स्थापना की। सितंबर 1708 में सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह ने उनके मठ का दौरा किया, जिसके बाद माधोदास गुरु गोविंद सिंह के शिष्य बन गए। उन्हें नया नाम गुरुबख्श सिंह दिया गया। समय के साथ गुरुबख्श सिंह एक सैन्य कमांडर के रूप में प्रसिद्ध हुए और उनकी अदम्य वीरता के चलते बंदा सिंह बहादुर नाम से प्रसिद्ध हुए।
गुरु गोविंद सिंह ने बंदा सिंह बहादुर को कुछ अधिक हासिल करने के लिए अपनी तपस्वी जीवन-शैली को त्यागने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बंदा बहादुर को पंजाब के निर्दोष लोगों को मुगलों के चंगुल से मुक्त कराने का एक महत्त्वपूर्ण कार्य सौंपा, क्योंकि इसलाम के अलावा मुगल सभी का उत्पीड़न कर रहे थे। इसके अलावा, मुगल सम्राट् बहादुर शाह ने गुरु गोविंद सिंह से वादा किया था कि वह पंजाब में आम लोगों के खिलाफ विभिन्न अपराधों के लिए सरहिंद के गवर्नर नवाब वजीर खान को दंडित करेगा; लेकिन सम्राट् ने अपना वादा पूरा नहीं किया। इससे गुरु गोविंद सिंह नाराज हो गए। उन्होंने वजीर खान को सबक सिखाने के लिए बंदा बहादुर से मदद माँगी और इस तरह वे कई निर्दोष लोगों को बचाने में सफल रहे।
गुरु गोविंद सिंह ने उन्हें अपना सैन्य कमांडर नियुक्त किया। इसके अलावा उन्हें एक 'हुकमनामा' (गुरु का आदेश) दिया गया, जिसमें सभी सिखों से मुगलों के खिलाफ लड़ाई में बंदा बहादुर के साथ शामिल होने का आग्रह किया गया। बंदा बहादुर ने समाना की लड़ाई में वजीर खान के नेतृत्ववाली मुगल सेना को हराया। समाना शहर पर कब्जा करने के बाद सिखों को बड़े पैमाने पर संपत्ति हासिल हुई, जिससे उन्हें आर्थिक रूप से स्थिर होने में मदद मिली।
बंदा बहादुर ने मुखलगपुर में अपनी राजधानी स्थापित की, पर बाद में उसका नाम बदलकर लोहागढ़ रखा गया। बंदा बहादुर ने लोहागढ़ में अपना स्वयं का टकसाल भी शुरू किया। बंदा बहादुर ने जमींदारी व्यवस्था को भी समाप्त कर किसानों को पूर्ण स्वामित्व दिया। बाद में मुगलों ने छल से बंदा बहादुर को बंदी बना लिया और यातना देकर 9 जून, 1716 को बेरहमी से मार डाला।
निश्छल बहादुरी की एक ऐतिहासिक गाथा, जो श्रद्धा से सिर झुकाने को प्रेरित करती है।
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