सूक्ष्मगति से अग्रसर होने वाले अलक्षित अंकुरण को किसी एक समाज अथवा किसी एक सृजन-शील मस्तिष्क की रचना मान लेने की सामान्य भावना उचित नहीं हो सकती। संगीत किसी प्रतिभावान व्यक्ति का चातुर्यपूर्ण अद्भुत कार्य नहीं है। और अब तक के वे अनेक सिद्धांत भी मिथ्या हैं, जिन्हें करीब-करीब वैज्ञानिक आधार पर प्रस्तुत किया गया है कि मनुष्य ने पक्षियों की चहचहाने की नकल की है, या स्त्री जाति को प्रसन्न करना चाहता था, या संगीत की सृष्टि सांकेतिक चिल्लाहट से हुई है अथवा उसने किसी कमिक एवं सामूहिक सहयोग से संगीत की प्राप्ति की है अथवा अन्य कल्पनात्मक सिद्धांत। यदि ये सिद्धांत सत्य होते तो अति प्राचीन मानवों में चहचहाकर या प्रेम-गान या संकेत समान संगीत अथवा सामूहिक कार्य एवं उनके साथ लय प्रधान गीत प्रचलित होते। लेकिन इस प्रकार के गानों का स्पष्ट रूप से अभाव रहा है।
प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण चन्दनी गंध से महका हुआ मेंरा गाँव धान की बालियों से परिपूर्ण भोली-भाली रंगबिरंगी ग्रामीण परिधान पहने बालायें जब खेतों में काम करती हैं तो चूड़ियों की झंकार का संगीत पूरे वातावरण को मुग्ध कर जाता है। पनघट पर हास परिहास करती युवतियों बैलो को खेत ले जाता किसान जब अपने कंधे में हल लेकर आषाढ़ की पहली बारिश में उल्लासित होकर खेत की ओर चल देता है वह आनंदित होकर गाने लगता है।
हमारे भारतीय लोक संगीत के प्रवाह को समझना किसी नदी के प्रवाह को समझाने जैसा ही जटिल है। किसी नदी के उद्गम उसकी विभिन्न शाखाओं प्रशाखाओं की भाँति हमारे लोक संगीत के लालित्य को समझना आसान नहीं है। संगीत का जन्म उसका अपरिपक्व होना है। अस्तु मेरे भी कहीं कोई त्रुटि अवश्य हुई होगी मैं उसे स्वीकार करते हुये ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि इन कमियों के बाद भी जिस नेक उद्देश्य से मैंने यह कार्य किया है वह अपने लक्ष्य को प्राप्त हो।
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