बाबा फरीद
बाबा फरीद उन सूफी संतों में थे जिन्होंने अपने आध्यात्मिक प्रभाव से अनेक लोगों को ईश्वर भक्ति के मार्ग पर लगाया । जब आततायी मुसलमान आक्रमणकारियों के कुकर्मों ने इस्लाम को लोगों की निंदा का पात्र बना दिया तब बाबा फरीद के मधुर व्यक्तित्व ने पुन उसकी प्रतिष्ठा बढ़ाई ।
शेख फरीदुद्दीन मसऊद शक्करगंज का जन्म खोतवाल नामक ग्राम, नज़दीक मुल्तान में हुआ था । इनके पिता का नाम शेख जमालुद्दीन और माता का नाम मरियम था । इन्होंने ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी को गुरु रूप में वरण कर कठिन तपस्या की ।
गुरुग्रंथसाहिब में बाबा फरीद जी के 112 श्लोक, दो आसा तथा दो छी राग में शबद भी मिलते हैं । फरीद जी अरबी, फारसी, हिंदी तथा पंजाबी के लेखक थे । गुरुग्रंथसाहिब के अतिरिक्त नसीहतनामा, गुरु हरि सहाय की पोथी, गोशट शेख फरीद की संत रतनमाला, भाई पैंढ़े वाली बीड़ तथा पुरातन जन्म साखियों में फरीद जी के नाम से रचनाएँ मिलतीं हैं । नागरी लिपि में फरीद जी की पतनामा नामक गद्य रचना भी मिलती है ।
फरीद जी की रचना अति सरल है और श्लोकों में होने से जनसमूह की समझ के अनुकूल भी है । उनकी अनुभव आधारित रचना को जहाँ हम यथार्थवादी रचना कहते। हैं वहीं उसमें सदाचार तथा मानववाद का उपदेश भी मिलता है । वह मनुष्य को सादा तथा सरल जीवन बिताने की प्रेरणा देते हैं
रुखी सुखी खाइ कै ठंढा पाणी पीउ
फरीदा देखि पराई चोपड़ी ना तरसाए जीउ ।
प्राक्कथन
नेशनल इंस्टीट्यूट आफ पंजाब स्टडीज की स्थापना 1990 में पंजाबी जीवन की सजीवता तथा साहित्य को उन्नत करने के पहलू से की गई थी । कुछ समय उपरांत पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ द्वारा इसको उच्चतर शिक्षा के सेंटर की मान्यता दे दी गई । शोध के अतिरिक्त इंस्टीट्यूट लेक्चरों, सेमिनारों और कॉस्फेंसों का आयोजन भी करता है । कुछ कॉन्फ्रेंसों का आयोजन मल्टीकल्चरल एजुकेशन विभाग, लंदन यूनिवर्सिटी, साउथ एशियन स्टडीज विभाग, मिशीगन यूनिवर्सिटी और सेंटर कार ग्लोबल स्टडीज, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, सेंटा बारबरा के सहयोग से किया गया है । स्वतंत्रता के पचास वर्ष के अवसर पर इंस्टीट्यूट ने 1999 में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली के सहयोग से एक अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार बँटवारा तथा अतीतदर्शी का आयोजन किया । महाराजा रणजीत सिंह पर एक राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन दिसंबर 2001 में किया गया । 1999 में खालसा पंथ के स्थापना की तीसरी शताब्दी पर्व के अवसर पर इस संस्थान ने एक बड़ी योजना शुरू की जिसके अंतर्गत खोज टीम ने निर्देशक के नेतृत्व में भारत, पाकिस्तान तथा इंग्लैंड आदि देशों में घूम घूमकर सिख स्मृति चिह्नों की एक सूची तैयार की । ये चिह्न सिख गुरुओं व अन्य ऐतिहासिक व्यक्तियों से संबंधित हैं जिन्होंने खालसा पंथ को सही रूप से चलाने में सराहनीय योगदान दिया है ।
हमारी खोज की उपलब्धियों को आम लोगों तक पहुँचाने के लिए और उन अनमोल वस्तुओं को सँभालने के प्रति जागृति पैदा करने हेतु इंस्टीट्यूट द्वारा चार सचित्र पुस्तकें गोल्डन टेंपल, आनदंपुर, हमेकुंट तथा महाराजा रणजीत सिहं पंजाब हेरिटेज सीरीज के अंतर्गत प्रकाशित की गई । इन पुस्तकों का पिछले साल गुरु नानक देव जयंती पर राष्ट्रपति भवन में विमोचन किया गया ।
दूसरे पड़ाव में इंस्टीट्यूट ने पंजाबी परंपरागत साहित्य पर आधारित पुस्तकें हीर, सोहणी महींवाल, बुल्लशोह की काफियाँ तथा बाबा फरीद को देवनागरी लिपि में प्रकाशित किया है ताकि वह जनसमूह जो पंजाबी भाषा से परिचित नहीं है, पंजाब के इस धरोहर से परिचित हो सके । इसके अतिरिक्त पंजाब के इतिहास और संस्कृति पर अनमोल मूल साहित्य का अनुवाद भी कराया जा रहा है ।
नेशनल इंस्टीट्यूट आफ पंजाब स्टडीज इस समूचे कार्य की संपूर्णता तथा प्रकाशन के लिए संस्कति विभाग, भारत सरकार तथा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सरकार की वित्तीय सहायता के प्रति आभार प्रकट करता है । इंस्टीट्यूट की कार्यकारी समिति तथा स्टाफ के सक्रिय सहयोग के बिना इन पुस्तकों का प्रकाशन संभव नहीं था जिसके लिए मैं उनका भी आभारी हूँ ।
पंजाब की विरासत का स्वागत
बाबा फरीद के सलोक, बुल्ले शाह की काफियाँ, वारिस शाह की हीर और फजल शाह का किस्सा सोहणी महींवाल ये सब पंजाबी साहित्य की अत्यंत लोकप्रिय और कालजयी कृतियाँ हैं । पंजाब के इन मुसलमान सूफी संतों ने दिव्य प्रेम की ऐसी धारा प्रवाहित की जिससे संपूर्ण लोकमानस रस से सराबोर हो उठा और इसी के साथ एक ऐसी सांझी संस्कृति भी विकसित हुई जिसकी लहरों से मजहबी भेद भाव की सभी खाइयाँ पट गई ।
पंजाबी साहित्य की यह बहुमूल्य विरासत एक तरह से संपूर्ण भारतीय साहित्य की भी अनमोल निधि है । लेकिन बहुत कुछ लिपि के अपरिचय और कुछ कुछ भाषा की कठिनाई के कारण पंजाब के बाहर का वृहत्तर समाज इस धरोहर के उपयोग से वंचित रहता आया है । वैसे, इस अवरोध को तोड्ने की दिशा में इक्के दुक्के प्रयास पहले भी हुए हैं । उदाहरण के लिए कुछ समय पहले प्रोफेसर हरभजन सिंह शेख फरीद और बुल्ले शाह की रचनाओं को हिंदी अनुवाद के साथ नागरी लिपि में सुलभ कराने का स्तुत्य प्रयास कर चुके हैं । संभव है, इस प्रकार के कुछ और काम भी हुए हों ।
लेकिन वारिस शाह की हीर और फजल शाह का किस्सा सोहणी महींवाल तो, मेरी जानकारी में, हिंदी में पहले पहल अब आ रहे हैं और कहना न होगा कि इस महत्वपूर्ण कार्य का श्रेय नेशनल इंस्टीट्यूट आफ पंजाब स्टडीज को है । ये चारों पुस्तकें पंजाब हेरीटेज सीरीज के अंतर्गत एक बड़ी योजना के साथ तैयार की गई हैं । मुझे इस योजना से परिचित करवाने और फिर एक प्रकार से संयुक्त करने की कृपा मेरे आदरणीय शुभचिंतक प्रोफेसर अमरीक सिंह ने की है और इसके लिए मैं उनका आभार मानता हूँ ।
सच पूछिए तो आज हिंदी में हीर को देखकर मुझे फिराक साहिब का वह शेर बरबस याद आता है
दिल का इक काम जो बरसों से पड़ा रक्खा है
तुम जरा हाथ लगा दो तो हुआ रक्खा है ।
हीर को हिंदी में लाना सचमुच दिल का ही काम है और ऐसे काम को अंजाम देने के लिए दिल भी बड़ा चाहिए । पंजाब भारत का वह बड़ा दिल है इसे कौन नहीं जानता! फरीद, बुल्ले शाह, वारिस शाह, फजल शाह ये सभी उसी दिल के टुकड़े हैं । आज हिंदी में इन अनमोल टुकड़ों को एक जगह जमा करने का काम जिस हाथ ने किया है उसका नाम है नेशनल इंस्टीट्यूट आफ पंजाब स्टडीज! इस संस्थान ने सचमुच ही आज अपना हक अदा कर दिया मेरा भी उसे सत श्री अकाल ।
परिचय
नेशनल इंस्टीट्यूट आफ पंजाब स्टडीज की तरफ से शेख फरीदुद्दीन मसऊद गंजशकर की शिक्षाओं पर एक किताब का प्रकाशन उन प्रशंसनीय कार्यो में से एक है जिन्हें यह सम्मानित संस्था एक अरसे से करती आ रही है । बाबा जी का कलाम हमारी सांझी लोक चेतना की महान और पुरानी धरोहर है जबकि उनकी शिक्षाएँ सारी मानव जाति के लिए मशाले राह हैं ।
बाबा फरीद ने सच्चाई की तलाश के सफर में इनसानी जिंदगी के लिए श्रेष्ठ जीवन मूल्यों की निशानदेही की और लोगों के बीच रहते हुए उन सच्चाइयों के अनुसार जिंदगी गुजारकर एक व्यावहारिक उदाहरण पेश किया । आपने अपनी तालीमात के जरिए इनसान दोस्ती, रवादारी और बराबरी का उपदेश दिया । आपकी शिक्षाओं का केंद्र मनुष्य था । आपने इनसान को संबोधित किया ताकि उसके दुख दर्द में शरीक होकर मुक्ति, शांति और कल्याण का रास्ता तलाश किया जा सके । बाबा जी जिंदगी को बा मकसद बनाना चाहते थे और मानव को सम्मान का स्थान देने का भूला हुआ सबक याद दिलाना चाहते थे । उनकी कोशिश थी कि इस धरती पर एक संतुलित समाज की स्थापना हो ।
बाबा फरीद ने पाक पटन में आज से आठ सदियाँ पहले एक जमातखाना कायम किया था । उन्होंने इस संस्था का नाम ही जमात (समष्टि) के हवाले से रखा । यह एक अवामी संस्था थी जहाँ चरित्र निर्माण का काम होता था । यह एक आवासी विश्वविद्यालय भी था । यहाँ अपने हाथों किए गए काम की महानता का पाठ पढ़ाया जाता था । यह उपमहाद्वीप की एकमात्र ऐसी संस्था थी जहाँ भिन्न भिन्न सभ्यताओं और संस्कृतियों के प्रतिनिधि जमा होकर विचारों का आदान प्रदान करते थे । हर मसलक (पंथ), रंग, नस्ल, जबान, कबीला और मजहब के लोग यहाँ बेरोक टोक आते और इस तरह भाईचारे और आपसी सहायता की रवायत कायम होती । मैं बाबा फरीद की दरगाह के सज्जादानशीन की हैसियत से नेशनल इंस्टीट्यूट आफ पंजाब स्टडीज का शुक्रगुजार हूँ कि वह बीच बीच में बाबा जी की तालीमात को फैलाने का पवित्र कार्य करता रहता है । बाबा जी के कलाम को बाबा गुरु नानक ने ही सँभालकर दुनिया के सुपुर्द किया था, और आप इस शानदार कारनामे के अच्छे वारिस साबित हो रहे हैं । यह मेरे लिए सम्मान की बात है कि मुझे बाबा जी के हवाले से इस किताब पर दो शब्द लिखने का अवसर मिला, जिसके लिए मैं सरापा प्रशंसा भाव से सराबोर हूँ ।
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