महापुरुष या महामानव को जानने का सबसे श्रेष्ठ उपाय है- उन लोगों द्वारा लिखित या मुख द्वारा निःसृत वाणियाँ। यह सब अगर उपलब्ध हों तो दूसरों के कहे का कोई मतलब नहीं होता। यह बात हमारे आदरणीय अध्यापक हावड़ा विवेकानंद इंस्टीट्यूशन के हेडमास्टर श्री सुधांशुशेखर भट्टाचार्य कहते थे।
अफसोस की बात यह है कि देश के बहुतेरे महामानवों ने अपने बारे में कुछ नहीं लिखा, समय की अवहेलना और आलस्य लाँघकर उन लोगों की लिखी चिट्ठियाँ भी उपलब्ध नहीं हैं, इसीलिए सुनी-सुनाई बातों के अलावा हमें खास कुछ उपलब्ध नहीं होता। स्वामी विवेकानंद का जीवन नितांत क्षणस्थायी होने के बावजूद सौभाग्य से विभिन्न समय में लिखी गई अजस्त्र पत्रावली, चर्चा परिचर्चा, संस्मरण, हँसी-ठिठोली, भ्रमण-वृत्तांत और रम्य रचनाओं के संभार से हम वंचित नहीं हुए हैं। इससे भी ज्यादा सुखद बात यह है कि उनके महाप्रयाण के एक शताब्दी बाद भी, अनेक अप्रत्याशित सूत्रों से, अनगिनत विस्मयकारी तथ्य आज भी आविष्कृत हो रहे हैं।
मसलन स्वामीजी की पत्रावली। उद्बोधन में प्रकाशित पत्रावली के तीसरे संस्करण में पत्रों की संख्या थी 434, लेकिन पूस, 1334 बँगला संवत् में प्रकाशित चौथे संस्करण में इन पत्रों की संख्या 576 हो गई। इनमें 153 पत्र बँगला में 418 पत्र अंग्रेजी में, 3 पत्र संस्कृत में और 2 विशुद्ध फारसी में हैं। बँगला में प्रकाशित पत्र यहीं खत्म नहीं होते, इसका प्रमाण है अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित 'द कंप्लीट वर्क्स ऑफ स्वामी विवेकानंद' ग्रंथ का नवम खंड। हाल ही में उस खंड में 227 महत्त्वपूर्ण पत्र मुद्रित हुए हैं, जो निश्चय ही चौंकानेवाले हैं। अंग्रेजी में प्रकाशित 'द कंप्लीट वर्क्स' के विवरण के मुताबिक अभी तक स्वामीजी के कुल 777 पत्र हमारी नजर में आ चुके हैं।
कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि स्वामीजी द्वारा लिखित पत्रों की संख्या एक हजार से भी अधिक होगी।
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