पृथ्वी पर शायद कोई अन्य प्रजाति है जो मनुष्य के तरीके से बहुगुणित होती हो। मनुष्य में विलंबित लैंगिक परिपक्वता और सुदीर्घ गर्भावस्था जिसके लिए काफी कायिक आवश्यकताएं होती हैं और कठिन शिशु प्रसव के बावजूद, पृथ्वी पर वह सफलतापूर्वक फैलता गया है। ऐसा संभवतः द्विजनकीय सामाजिक संभरण पद्धति के कारण है जिससे बच्चे को पूरी सुरक्षा मिलती है। माता पिता और बच्चे के बीच भावनात्मक सम्बन्ध जीवनपर्यन्त होता है और बच्चे के जन्म के साथ एक सामाजिक महत्व जुड़ा होता है।
पृथ्वी ग्रह पर मनुष्य की प्रचुर संख्या के आधार पर (अंतिम जनगणना तक 5 खरब) यह ऐसा मालूम होता है कि अति जनसंख्या आज हमें कितना कष्ट देती है। लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू कुछ दूसरी ही कहानी कहता है। अति जनसंख्या की समस्या की भीषणता से अभिभूत व्यक्ति यह नहीं अनुभव करता कि बच्चे का न होना सामान रूप से गंभीर समस्या है। सभी भारतीय दम्पतियों में से लगभग 10 प्रतिशत निस्संतान हैं और आंकड़े यह दर्शाते हैं कि पर पांचवें जोड़ें में से एक वंध्य है। निस्संतान होने की काली छाया समाजरूपी समुद्र में तैरता हुए हिमखण्ड के समान है।
उत्तरदायित्व पूर्व प्रजनन ही दोनों समस्याओं का हल है जिससे आज दुनियाँ त्रस्त है। दोनों समस्याओं से लड़ते हुए वैज्ञानिकों के लिए जैवप्रौद्योगिकी एक दोधारी हथियार सिद्ध हुआ है।
अंतःपात्रे निषेचन और गिफ्ट और जिफ्ट जैसे विकसित तकनीकों ने वहुत से बंध्य जोड़ों के चेहरों पर मुस्कान ला दी है। जवकि गर्भ निरोधक गोलियों और आरोपण ने अनचाहे बच्चों को रखा है। वास्तव में, वेहतर से बेहतक निरोधक उपाय विकसित करने के लिए कदम उठाए गए हैं कि आज वैज्ञानिक विश्वासपूर्वक गर्भनिरोधक वैक्सीनों की वात कर रहे हैं।
अत्याधुनिक तकनीकें न केवल अत्यंत आरम्भिक अवस्था में गर्भ का पता लगा सकती हैं अपितु एम्नीओसंटेसिस जैसे परीक्षण विशिष्ट आनुवंशिक लक्षणों के साथ-साथ भ्रूण के लिंग की सही सही भविष्यवाणी कर सकते हैं। इस प्रकार, आनुवंशिक रोग से अंतर्ग्रस्त बच्चे को जन्म देने के दर्द से वचा जा सकता है।
पंडित जवाहर लाल नेहरु ने सन 1961 में कहा था, "यह केवल विज्ञान है जो भूख और गरीबी, अस्वस्थता और अशिक्षा, अन्धविश्वास और संज्ञाहीन रिवाजों और परम्पराओं, भूखे लोगों से भरे समृद्ध देश के व्यर्थ जाते स्रोतों की समस्याओं को हल कर सकता है-आज कौन है जो विज्ञान को अनदेखा करने का साहस कर सकता है।" वर्षों बाद यह अभिमत ठीक लगता है। एक विज्ञान जो हमारे अनेक दुराग्रही प्रश्नों के उत्तर देने के लिए वचनबद्ध है, वह है प्रजनन जीव विज्ञान। जैवप्रौद्योगिकी के सामंजस्य से प्रजनन विज्ञान ने एक नए युग में प्रवेश किया है। मानव संदर्भ में गर्भनिरोधन और बंध्यता की समस्याएं, बेहतर किस्मों के लिए फार्म-पशुओं में प्रजनन में सहायता और जंगली जीवों को विलुप्तता से बचाना हमारी प्रमुख समस्याएं हैं। इसके अतिरिक्त, प्रजनन क्रियाओं के मूल की समझ, लिंगों का पूर्वचयन और आनुवंशिक विसंगतियों को ठीक करना, हमारा ध्येय है। सहायता प्राप्त प्रजनन तकनीकों और जैवप्रौद्योगिकी में नवीनताओं ने हमारी सामाजिक अस्तित्व संबंधी सोच की नींव को हिला दिया है। इन पक्षों में से कुछ का वर्णन करते हुए, जो हमारे प्रजनन जैवविज्ञानियों को उद्वेलित करते हैं, यह पुस्तक सरल शब्दों में एक समीक्षा प्रस्तुत करती है।
लिंगों के विकास का प्रारंभिक अध्ययन करने वाले जे मेनार्ड स्मिथ कहते हैं, "एक अच्छे उद्दीपन में जितना संभव हो उतना विस्तार होना चाहिए जबकि एक अच्छे प्रतिदर्श में जितना कम से कम संभव हो।" इसे ध्यान में रखते हुए, हमने विषयवस्तु को गहराई में जाने दिया है, कुछ पक्षों का विस्तृत वर्णन करते हुए, अन्य के विस्तार से बचते हुए। हमें आशा है, अंतिम निष्कर्ष एक रोचक और प्रेरणात्मक पाठ्य वन पड़ा है।
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