ऋग्वेद में सप्त सिन्धु क्षेत्र का उल्लेख मिलता है। इसका अभिप्राय सात नदियों के प्रदेश से है। इन सात नदियों में से पाँच, सतलुज, व्यास, रावी, चिनाब, जेहलम नदियाँ सिन्धु नदी की सहायक नदियां (tributaries) हैं। ये पाँचों नदियाँ कहीं न कहीं सिन्धु नदी में मिल जाती हैं। सप्त सिन्धु की एक अन्य ऐतिहासिक नदी सरस्वती है। वर्तमान में सरस्वती नदी अपने पुराने स्वरूप में विद्यमान नहीं है। लेकिन वरसात में इसकी सहायक नदियाँ और खड्डें आकर उससे मिलती रहती हैं और उन दिनों के लिए यह नदी फिर जीवित हो उठती है। हरियाणा प्रदेश में 'घग्घर नदी ही सरस्वती थी' ऐसा भी कहा जाता है। लेकिन घग्घर और हाकडा को सरस्वती की सहायक नदियां (tributaries) माना जा सकता है। इसका वर्तमान काल में उद्गम यमुनानगर जगाधरी के पास आदि बद्री भी माना जाता है। सरस्वती नदी किसी अन्य नदी में नहीं मिलती। यह निरन्तर चलते हुए रन के कच्छ में अरब सागर में जा मिलती थी। इन सातों नदियों के क्षेत्र को ही सप्त सिन्धु कहा जाता है। अवेस्ता में इसे हपत हेन्दु कहा गया है। कुछ स्थानों पर काबुल नदी यानि कुभा को भी सप्त सिन्धु का भाग ही माना गया है।
उपरोक्त सात नदियों वाले क्षेत्र में खैबर पख्तूनखवा (जिसको पहले नार्थ वैस्ट फरन्टियर प्रोविन्स, सरहदी सूबा, सीमान्त प्रान्त भी कहा जाता था) बलूचिस्तान प्रान्त, सिन्ध प्रान्त, पश्चिमी पंजाब और इसके अतिरिक्त पूर्वी पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर (जिसमें पाकिस्तान के कब्जा वाला हिस्सा भी शामिल है) और लद्दाख (जिसमें पाकिस्तान व चीन के कब्जा वाला मसलन गिलगित, बलतीस्तान भी शामिल है) सम्मिलित है। सप्त सिन्धु के सभी क्षेत्रों का क्षेत्रफल 1254718 वर्ग किलोमीटर है। इसमें से 881913 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पाकिस्तान के सिन्ध, पश्चिमी पंजाब, बलूचिस्तान, खैबर पतूनखवा और राजधानी क्षेत्र इस्लामाबाद का है। जैसा कि ऊपर संकेत किया गया है सप्त सिन्धु क्षेत्र में सिन्ध प्रान्त, बलूचिस्तान प्रान्त, पश्चिमी पंजाब और खैबर पख्तूनखवा और इसके अतिरिक्त पूर्वी पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर (जिसमें पाकिस्तान के कब्जा वाला हिस्सा भी शामिल है) और लद्दाख (जिसमें पाकिस्तान व चीन के कब्जा वाला मसलन गिलगित, बलतीस्तान भी शामिल है) सम्मिलित है। इस पूरे क्षेत्र की आबादी 34 करोड़ के आसपास बैठती है। इसमें सिन्ध प्रान्त, बलूचिस्तान प्रान्त, पश्चिमी पंजाब और खैबर पख्तूनखवा की आबादी ही 24 करोड़ है। इसके अतिरिक्त 1947 में पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर व लद्दाख के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया था, उन हिस्सों की जनसंख्या के आसपास है। इस 34 करोड़ की जनसंख्या में से 24 करोड़ जनसंख्या उन क्षेत्रों में रहती है जिसे 1947 के बाद पाकिस्तान के नाम से स्वीकार किया गया है और शेष 10 करोड़ की जनसंख्या पूर्वी पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, लद्दाख, चंडीगढ़ में बसती है।
वर्तमान में चौंतीस करोड़ की जनसंख्या को समेटे हुए सप्त सिन्धु क्षेत्र की छोटी बडी भाषाओं की गणना करना आसान कार्य नहीं है। संस्कृत भाषा तो मुख्य भाषा थी भी और है भी। काल क्रम से संस्कृत का रूप बदलता रहा। लेकिन यह तो हर भाषा की नियति है। वैदिक संस्कृत से लौकिक संस्कृत की यही यात्रा थी। थोड़ा और पीछे जाएँ तो अवेस्ता की भाषा और संस्कृत भाषा की समानता की तलाश होने लगती है तो मामला और पीछे चला जाता है। दूसरी भाषाओं में बलूची, सिन्धी, सरायकी, पश्तो, ब्रूही, कश्मीरी, बलती, गोजरी, डोगरी, पोठोहारी, हिन्दको, पुआधी, शीना, गान्धारी, भोटी, बागडी, पूर्वी बलूची, दक्षिणी बलूची, पश्चिमी बलूची, Badeshi, बलती, बटेरी, bhaya, ब्रूही, बुरुशसकी, चीलिस्सो, दमेली, दारी। लेकिन इन भाषाओं का दुर्भाग्य ही कहा जाना चाहिए कि एटीएम मूल की विदेशी जातियों ने जब सप्त सिन्धु क्षेत्र पर कब्जा कर लिया तो यहाँ की लगभग सभी भाषाओं की मूल लिपियों को समाप्त कर उनके स्थान पर अपने देश की अरबी-फारसी लिपि लाद दी। अरबी लिपि स्थानीय भाषा के सही उच्चारण के लिए उचित लिपि नहीं है। इस लिपि के विदेशी मूल की होने के कारण जब कहीं इसके प्रति विद्रोह के स्वर मुखर होने लगे तो पाकिस्तान की सरकार ने इसको अरबी-फारसी लिपि न कह कर शाहमुखी लिपि कहना शुरु कर दिया।
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