जीवन जीने की कला- The Art of Living Based on Osho's Discourses (Live an Energetic Life)

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Item Code: HBF918
Publisher: Diamond Books, Delhi
Author: Swami Anand Satyarthi
Language: Hindi
Edition: 2025
ISBN: 9789351654681
Pages: 141
Cover: PAPERBACK
Other Details 8.5x5.5 inch
Weight 190 gm
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Book Description
पुस्तक परिचय
जीवन की कला से मेरा यही प्रयोजन है कि हमारी संवेदनशीलता, हमारी पात्रता, हमारी ग्राहकता, हमारी रिसेप्टिविटी इतनी विकसित हो कि जीवन में जो सुंदर है, जीवन में जो सत्य है. जीवन में जो शिव है. वह सब वह सब हमारे हृदय तक पहुंच सके। उस सबको हम अनुभव कर सकें, लेकिन हम जीवन के साथ जो व्यवहार करते हैं, उससे हमारे हृदय का दर्पण न तो निखरता, न निर्मल होता, न साफ होता; और गंदा होता. और धूल से भर जाता है। उसमें प्रतिबिंब पड़ने और भी कठिन हो जाते हैं। जिस भांति जीवन को हम बनाए हैं-सारी शिक्षा, सारी संस्कृति, सारा समाज मनुष्य के व्यक्तित्व को ठीक दिशा में नहीं ले जाता है। बचपन से ही गलत दिशा शुरू हो जाती है और वह गलत दिशा जीवन भर, जीवन से ही परिचित होने में बाधा डालती रहती है।

पहली बात, जीवन को अनुभव करने के लिए एक प्रामाणिक चित्त. एक शुद्ध दिमाग चाहिए। हमारा सारा चित्त औपचारिक है, फार्मल है, प्रामाणिक नहीं है। न तो प्रामाणिक रूप से कभी प्रेम, न कभी क्रोध, न प्रामाणिक रूप से कभी हमने घृणा की है, न प्रामाणिक रूप से हमने कभी क्षमा की है।

हमारे सारे चित्त के आवर्तन, हमारे सारे चित्त के रूप औपचारिक हैं. झूठे हैं, मिथ्या हैं। अब मिथ्या चित्त को लेकर जीवन के सत्य को कोई कैसे जान सकता है? सत्य चित्त को लेकर ही जीवन के सत्य से संबंधित हुआ जा सकता है। हमारा पूरा दिमाग, हमारा पूरा चित्त. हमारा पूरा मन मिध्या और औपचारिक है। इसे समझ लेना उपयोगी है।

सुबह ही आप अपने घर के बाहर आ गए हैं और कोई राह पर दिखाई पड़ गया है और आप नमस्कार कर चके हैं। और आप कहते हैं कि उससे मिलके बड़ी खुशी हुई, आपके दर्शन हो गए लेकिन मन में आप सोचते हैं कि इस दुष्ट का सुबह ही सुबह चेहरा कहां से दिखाई पड़ गया । यह अशुद्ध दिमाग है, यह गैर-प्रामाणिक मन की शुरुआत हुई। चौबीस घंटे हम ऐसे दोहरे ढंग से जीते हैं, तो जीवन से कैसे संबंध होगा? बंधन पैदा होता है दोहरेपन से। जीवन में कोई बंधन नहीं है।

आमुख
घर में आग लगी हुई हो तो हम किसी से पूछने नहीं जाते, शास्त्रों में उत्तर नहीं खोजते कि क्या करना है? किसी भी तरीके से घर से बाहर भाग कर आते हैं। परन्तु हमारा जीवन दुःख, तनाव व चिन्ताओं का जोड़ बन कर रह गया है उससे बाहर आने का प्रयास नहीं करते क्योंकि हमारी शिक्षा, संस्कार व समाज बीच में आ जाता है।

हमारे माता-पिता, भाई, बन्धु, पड़ोसी जो कर रहे हैं यानि पद, धन, यश व अहंकार की दौड़ में हैं, हम भी वही कर रहे हैं, और करें भी तो क्या? वे दुःख, तनाव व चिन्ता में जीते हैं हम भी दुःख, तनाव व चिन्ताओं में जीने को हमारी नियती यानि किस्मत में लिखा मान लेते हैं। और जिन्दगी जीते नहीं, ढोते हैं।

ओशो कहते हैं हम सुख-दुःख के पार आनंदित जी सकते हैं। कैसे? ओशो के प्रवचनों से संकलित इस पुस्तक में बच्चों के पालन-पोषण का ढंग, शिक्षा का प्रारूप कैसा हो, भोजन की गुणवत्ता तथा जीवन जीने के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की है। पुस्तक पढ़ते-पढ़ते आप स्वयं जान पाएंगे कि हमारे जीवन में कहां-कहां त्रुटियां हुई हैं। जिनके परिणाम स्वरूप हमारा जीवन, दुःख, तनाव व चिन्ताओं का जोड़ बन कर रह गया है।

पुस्तक में ओशो द्वारा बताए गए जीवन जीने के सूत्र, ओशो क्या कहना चाहते हैं, इशारे को पकड़ें, अंगुली नहीं भाव पकड़ना है, भाव को समझें जैसे सांप केंचुली छोड़ बाहर आता है वैसे ही आप पुराने संस्कारों से मुक्त हो अपने जीने के ढंग में परिवर्तन करने का संकल्प करेंगे, दुःख, तनाव व चिन्ताओं को अपनी किस्मत में लिखा ना मान कर इनके पार आनंदित जीवन जीने की ओर अग्रसर होंगे।

कुछ कमियां व त्रुटियां रह गईं हो तो सुझाव भेजने के लिए पाठकों एवं विशेषज्ञों को हमारा हार्दिक आमन्त्रण है।

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