झारखण्ड प्राकृतिक संपदा में जितना सम्पन, परिपूर्ण है, उससे अधिक लोक संगीत व संस्कृति में समृद्ध हैं। इसकी संस्कृति और प्रकृति बड़ी अनुठी हैं। जिस प्रकार इसके गर्भ में अनेकानेक बहुमूल्य खनिज संपदा है, ठीक उसी प्रकार इनके गर्भ में सतरंगी गीत संगीत का भी समागम है, जो इन्हें अलग छवि प्रदान करता है तथा सभी समाज और संस्कृति से भिन्न बनाती हैं।
यहाँ की संस्कृति में समाहित गीत अनंत अमूल्य है। किसी भी पर्व त्यौहार या अनुष्ठान कार्य में गीत-संगीत, नृत्य के बिना अधूरा हैं। झारखण्ड समाज के हर पारंपरिक गांव में नृत्य-संगीत के लिए अखरा का निमार्ण किया गया है जो कि आदिवासी समाज का पूजनीय स्थल है। जिसमें सरहुल या करमा दोनो पों में आदिवासी, सादान गीत, गाते और नृत्य करते नजर आते हैं। जो कि झारखण्डी समुदाय के लोगों को अन्य राज्यों के समुदायों की अपेक्षा अलग छवि के रूप में उभारती हैं। हमारे समक्ष एकता, समानता के रूप में प्रस्तुत होती है।
साहित्यकारों के बिना कोई भी साहित्य निश्वर की भाँति है, उसका कोई भी अस्तित्व नहीं है। साहित्यकार अपने वैभव शक्ति, दृढ संकल्प, इच्छा शक्ति से साहित्य को नवीन रूप प्रदान करता है। जो समाज के लिए सदा जीवन प्रेरणा का पात्र बन जाता है। वह समाज में एक प्रतिविम्ब की तरह प्रदर्शित होता है। साहित्य को पथ प्रदर्शन करने में झारखण्डी लेखको का अमूल्य योगदान रहा है। जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों एवं कठोर परिश्रम कर समाज को एक नया आयाम दिया और हमारे समाज को जीवंत रखा।
झारखण्ड की प्रकृति सौंदर्य, संस्कृति की मधुरता और इनके जीवन की पवित्रता अनेको को गायक और नर्तक बना डाला। अर्जुन भगत भी इसी परंपरा के कवि, गायक थे। इनका जन्म कब हुआ इसका साक्ष्य नहीं मिल पाया है अपितु इनकी भाई की पोती चंद्रमुन्नी का कहना है कि इनका जन्म 1908 ई के आसपास हुआ होगा। वे 'उराँव' जाति के थे, और उनका गोत्र 'कुजूर था, वह राँची कचहरी में 'मुंशी' का काम करते थे। अर्जुन भगत की पत्नी विपति उराँव थी। अर्जुन भगत के पिता लालू भगत गांव के जमींदार थे। इनके घर में किसी भी वस्तु की कमी नहीं थी अपितु यह अपने समाज, संस्कृति, राजनैतिक दाव पेंच, धर्म परिवर्तन, जमींदारी लोहरा समाज आदि विषयों पर यह विचार विमर्श कर हरेक छन चितिति होते थे। यह चिंता इनके प्रेरणा का विषय बना और यह एक समाज सुधारक के रूप में उभर कर सबके समक्ष प्रस्तुत हो गये, जो इन्हें एक क्रांतिकारी गीतकार के रूप में पहचान दिलाती है। जिससे समाज जाग्रित हो, अपने हक, अधिकार को समझे और समाज का प्रतिनिधित्व करने के लिए व्यक्ति गण पथ की ओर अग्रसर हो, यह इनकी कामना थी। जो उन्हें सभी लेखकों से भिन्न बनाती है, और श्रेष्ठ कवि के रूप में नागपुरी साहित्य में अपना स्थान पाते हैं। इनके गीतों की शैली को देखते ऐसा आभास होता हैं कि मानों समाज, संस्कृति को सुदृढ़ व संरक्षित करने का संकल्प स्वयं ही उठा लिए हैं।
अर्जुन भगत सभी कलाओं के धनी कलाकार थे। इन्होंने नागपुरी लोक-संगीत को एक समृद्ध विरासत के रूप में प्रस्तुत कर डाला है। इनके गीतों में विभिन्न राग-रागनियों का समावेश मिलता है जैसे - फगुआ राग, अंगनई अचरतिया, पहिल सांझा, एकहरिया, झूमटा. भिनसरिया, डमकच इत्यादि में अर्जुन भगत निपुण थे। इनके गीत तीर के समान चुभते हैं, इसके साहचर्य इनके गीत में लिखा व्यंग्य भी किया गया है।
Hindu (हिंदू धर्म) (12690)
Tantra ( तन्त्र ) (1023)
Vedas ( वेद ) (706)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1905)
Chaukhamba | चौखंबा (3356)
Jyotish (ज्योतिष) (1466)
Yoga (योग) (1098)
Ramayana (रामायण) (1385)
Gita Press (गीता प्रेस) (734)
Sahitya (साहित्य) (23171)
History (इतिहास) (8262)
Philosophy (दर्शन) (3394)
Santvani (सन्त वाणी) (2591)
Vedanta ( वेदांत ) (120)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist