प्रस्तुत पुस्तक आत्म-अनुसन्धान और आत्मिक-विकास की प्रेरणा देने वाले सद्गुरुदेव श्री सतपाल जी महाराज के कतिपय प्रवचनों का संकलन है। "अपने आपको जानो" इन प्रवचनों का मूल-मंत्र है। बाह्य संसार को हम इतना अधिक जानते हैं और उससे भी आगे न जाने कितना जानने के प्रयास में लगे हैं। एक से एक आगे बढ़कर अनुसंधान और आविष्कार हो रहे हैं। बाह्य सुख-सुविधाएँ अधिक से अधिक उपलब्ध कराने के अथक प्रयास हो रहे हैं। किन्तु इन सबके बीच व्यक्ति अपने आपको, अपनी अन्तर्चेतना को बिल्कुल भुला बैठा है, इन सबके बीच वह स्वयं अपने को ही खो बैठा है। उसका व्यक्तित्व एक चैतन्य पुरुष का न रहकर मात्र एक यांत्रिक खिलौने से अधिक नहीं रह गया है जिसमें विभिन्न विचार धाराओं की चाभी भर कर जैसे चाहे वैसे नचाया जा रहा है और उसी के अनुरूप वह नाच रहा है।
प्रस्तुत संकलन बाह्य संसार में भटकने की दिशा से मोड़कर उसे अपने अन्तर्जगत् में प्रवेश करने और अपनी वास्तविक सत्ता को जानकर अपनी महानता एवं पूर्णता की अनुभूति प्राप्त करने की प्रेरणा प्रदान करेगा ऐसी हमारी आशा और आकांक्षा है।
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