अप्सरा 'निराला' की कथा-यात्रा का प्रथम सोपान है ! अप्सरा-सी सुन्दर और कला प्रेम में डूबी एक वीरांगना के यह कथा हमरे हृदय पर अमिट प्रभाव छोड़ती है ! अपने व्यवसाय से उदासीन होकर वह अपना हृदय एक कलाकार को दे डालती है और नाना दुष्चक्रों का सामना करती हुई अंतत: अपनी पावनता को बनाए रख पाने में समर्थ होती है ! इस प्रक्रिया में उसकी नारी-सुलभ कोमलताएँ तो उजागर होती हैं, उसकी चारित्रिक दृढ़ता भी प्रेणाप्रद हो उठती है !
इस उपन्यास में तत्कालीन भारतीय परिवेश और स्वाधीनता-प्रेमी युवा-वर्ग की दृढ़ संकलिप्त मानसिकता का चित्रण हुआ है, जो की महाप्राण निराला की सामाजिक प्रतिबद्धता का एक ज्वलंत उदाहरण है !
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