आशा का दामन थाम कर 'वस तेरे हो गए हैं' कविता के माध्यम से प्रियतम अर्थात अच्छे के साथ समर्पण भाव के साथ चल दी है और मेघ मल्हार की तरह सरसती और वरसती है। इन कविताओं में प्रेम-प्यार की बयार बहती है, मिलन की अनछुई सी खुशबु है। जिन्दगी की शाम की उदासी भी झलकती है, किन्तु फिर भी 'जिन्हें जाना था' उनका शोक न करके 'कुछ ख्याल आया है' कविता के साथ, आँखों में नया खुमार भर दिया है और मंजिल की ओर स्वतः कदम बढ़ा दिये हैं।अधिक न कहूँ तो यह पुस्तक आप के मनों को प्रफुल्लित भी करेगी और खुशियां भी भरपूर देगी।
आज भारतवर्ष में बालिका भ्रूण हत्या जोरों पर है जिससे लिंग अनुपात की स्थिति बिगड़ गई है वहीं कई लोग ऐसे भी हैं जो पुत्री को रत्न एवं लक्ष्मी के रूप में देखते है तथा ईश्वर से यही कामना करते हैं कि उनको पुत्री रत्न की प्राप्ति हो, ऐसी ही एक घटना इनके जन्म के समय की है जब इनकी दादी माँ स्व० राधारानी अपने कुल में पुत्री के अभाव से व्यथित रहती थीं और घंटों सभी देवी, देवताओं एवं कुल देवी के सामने बैठकर सिर्फ एक बेटी की मन्नत किया करती थी, कि उनके कुल को सौभाग्य के रूप में लक्ष्मी की प्राप्ति हो जाए और अंततः ईश्वर ने उनकी मनोकामना पूर्ण करने का निश्चय 28 अक्टूबर को लिया जब प्रातः काल 2:03 बजे लक्ष्मी के रूप अनुभा कुमारी का जन्म स्व० विश्वनाथ प्रसाद एवं स्व० राधारानी के कनिष्ठ पुत्र- श्री अरूण कुमार सिन्हा एवं पुत्रवधू श्रीमती सरोज देवी (पुत्री डॉ. नंद किशोर प्रसाद, स्व. गिरिजेश्वरी देवी) के दूसरे गर्भ के रूप में एक मध्यमवर्गीय परिवार में सासाराम में हुआ। उनके जन्म के पश्चात् कुछ ही वर्ष के अंतर्गत उस कुल में तीन और पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई।
अपनी सोच में नई बातों का आगमन करना एवं कुछ अलग करने की इच्छा अनुभा में सदा प्रभावी रही। इनकी शिक्षा-दीक्षा स्नातकोत्तर पत्रकारिता एवं जनसंचार, नालंदा विश्वविद्यालय से सम्पन्न हुई। कला के क्षेत्र में इनकी रूचि अप्रतिम है। चित्रकला, संगीत, वाद विवाद में अव्वल रही हैं। बचपन में इनके भाई-बहन इनकी कुशाग्र बुद्धि की वजह से इन्हें आईन्सटाईन कह कर संबोधित करते थे।
जन्म स्थान : सासाराम (विहार)
रुचि: लेखन (कविता, कहानियाँ), संगीत सुनना एवं गायन, घूमना-फिरना (जगह-जगह भ्रमण करना)
शैक्षणिक: स्नातकोत्तर (पत्रकारिता एवं योग्यता जनसंचार) नालन्दा खुला विश्वविद्यालय, पटना
'अनुपमेय - एक अनुपम कविताओं का संग्रह है जिसके अंतर्गत रचित सभी कविताएँ जीवन की यथार्थ घटनाओं पर आधारित हैं। जीवन रुपी इस समुद्र में तैरते हुए न जाने कई पड़ावों पर अनजाने, अनमने ढंग से या जानबूझकर भी घटनाएँ घटित हो जाती हैं। इन्हीं घटनाओं ने न जाने कब हृदय में अपना वास लेकर मस्तिष्क को सूचित करते हुए हाथों को यह आदेश दिया और पंक्तिबद संकलन के स्वरूप में अवतरित हुआ। यूँ तो जीवन में न जाने कई घटनाओं पर कविताएँ पंक्तिबध हैं परन्तु इसकी भी एक सीमा है तथा उस सीमा से जब त्रिदेव भी मुक्त नहीं हैं तब मैं कैसे ? मैनें उन सभी संकलित संग्रह में कुछ अतिमहत्वपूर्ण शीर्षकों को यहाँ एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवाने का निर्णय लिया एवं अन्य संकलनों का प्रकाशन कुछ समय पश्चात् होगा।
मैं अपनी रचना 'अनुपमेय' को अपनी पूज्यनीया दादी माँ स्व० राधारानी, मेरे प्यारे पिताजी श्री अरुण कुमार सिन्हा और माँ श्रीमती सरोज देवी को समर्पित करती हूँ। सारे लोगों के आशीर्वाद से ही ये रचना बन पाई है। दादी की याद, आशीर्वाद, पिताजी का उत्तम संस्कार, आगे बढाने की चाह और माँ का समर्पण, त्याग और सबका प्यार, आशीर्वाद है जो ये बन पाया। मैं अपने पूरे परिवार की शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने मुझे, मेरे लिए, ये सुनहरा मौका दिया।
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