अपनी बात
ज्योतिष के प्रचार प्रसार से सामान्य जन में ज्योतिष के प्रति आस्था और विश्वास निश्चय ही बढ़ा है । आज अनेकों प्रतिष्ठित संस्थान ज्योतिष शिक्षा के कार्य में लगै हैं । ज्योतिष जन्म समय की ग्रह स्थिति, वर्तमान ग्रहदशा व ग्रहों की गोचर स्थिति के परस्पर संबंधों व उनके संभावित परिणाम को जानने की विद्या है । अनिष्टप्रद दशा में अशुभ गोचर बहुत दु ख व क्लेश दिया करता है ।
ऐसे समय में यदि कोई कहे कि अनिष्ट दशा में तो ऐसा होता ही है । इसमें कोई क्या कर सकता है? ऐसे व्यक्ति को नक्षत्र सूचक तो कह सकते हैं किन्तु ज्योतिषी नहीं । कारण मंत्रसिद्ध ज्योतिषी तो कठिन व जटिल परिस्थिति में भी राह खोज लेता
जटिल व विषम परिस्थिति में भी राह खोजना ही इस पुस्तक का उद्देश्य है । अनिष्ट ग्रह उपचार पर डा. सुरेश चन्द्र मिश्र की उपाय भाग्योदय, श्री के के पाठक की ग्रह उपचार कौमुदी श्रीमती मृदुला त्रिवेदी की समृद्धि सूत्र व समृद्धि सुधा निश्चय ही उत्कृष्ट पुस्तकें हैं ।
विगत 15 20 वर्षों में मंत्रोपचार के अनेक सफल प्रयोग देखने में आए । निश्चय ही इसमें संबंधित व्यक्ति की श्रद्धा व विश्वास की भूमिका ही अधिक महत्त्वपूर्ण थी । सदा की भांति मित्रों के स्नेहपूर्ण सहयोग व सामग्री संकलन व व्यवस्था तथा तर्क परक विचार व विश्लेषण से पुस्तक का आकार कुछ बढ़ गया है ।
सभी द्वादश भावों में शुभ व अशुभ प्रभाव के योग दिए हैं । इसके बाद उपचार संबंधी मंत्र, स्तोत्र व कवच दिए हैं । पुस्तक का आरंभ उपाय के उपयोग दर्शाने वाले पांच उदाहरणों से हुआ है । इसके बाद ग्रहों पर नक्षत्रों का प्रभाव तथा उपचार के सिद्धान्त पर चर्चा हुई है । 4 में अनिष्ट ग्रह गोचर में वैदिक मंत्र का उपयोग तथा 5 में कुछ सरल व सटीक उपचारों पर चर्चा हुई है ।
6 में व्यापार व्यवसाय में सफलता के लिए संकटनाशक गणेश स्तोत्र का महत्व दर्शाया है । विभिन्न व्यवसायों के लिए उपयोगी रत्न व मंत्र बताए हैं । रत्नोपचार रहस्य ( ) में सूर्यादि नौ ग्रहों के रत्नों का विभिन्न लग्नों पर प्रभाव, चर्चा का विषय है तो 8 में रत्न धारण में सावधानी की आवश्यकता पर बल दिया है । उदाहरण न्य 6 में रत्न धारण में सावधानी का महत्त्व बतलाया गया है । 9 में ग्रह शांति में यंत्रों का उपयोग व 10 में अनिष्ट ग्रह से बाधा व क्लेश पर उदाहरण सहित चर्चा हुई है । ग्रहों की अशुभता, प्रभाव व उसका उपचार चर्चा का विषय है ।
11 में मंत्रों का महत्त्व व भूमिका के अन्तर्गत सर्वशक्तिमान व सभी भाषाओं का प्रथम वर्ण अ क्यों? पर विचार हुआ है । बीज मंत्र व उनके गूढ़ अर्थ बतलाकर पापनाश में मंत्रबल सर्वोपरि है, ये बात कही है । 12 में अनिष्ट ग्रह स्थिति व उपचार संबंधी 15 उदाहरण देकर विषय को स्पष्ट किया है ।
13 में धन प्राप्ति के योग देकर सूर्य, गणेश व लक्ष्मी उपासना का महत्त्व बतलाया है ।
मानसिक क्लेश के ज्योतिषीय कारण व उपचार के 7 उदाहरण दिए हैं । भगवान की शरण में जाना सभी दु खों का सही उपाय है ।
15 में संतान, विद्या, बुद्धि संबंधी योगों पर विस्तार से चर्चा हुई है । विद्या प्राप्ति के लिए देवी सरस्वती का मंत्र ध्यान, स्तोत्र दिया है । संतान सुख के लिए संतान गोपाल मंत्र, गणेश मंत्र गणेश स्तोत्र पर चर्चा हुई है ।
16 में षष्ठ भाव के पापत्व पर विचार तथा रोग व शत्रु पीड़ा संबंधी योगों का संकलन हुआ है । शत्रु पर विजय व धन वैभव प्राप्ति के लिए शिवकृत कृष्ण स्तोत्र दिया है ।
17 में दांपत्य जीवन में बाधा संबंधी योगों पर विचार के बाद देवी पूजा के मंत्र, दुर्गा मंत्र सर्वमंगल स्तोत्र, दुर्गा के नाम व उनका अर्थ, गौरी व्रत कथा. राधा कृत पार्वती स्तोत्र तथा दांपत्य कलह मिटाने के लिए भगवान कृष्ण के 24 नामों के पाठ को सिद्ध उपाय बताया है ।
18 में अष्टम भाव या अपमान, विपत्ति व मृत्यु संबंधी योगों पर विचार के बाद कार्तिक स्नान, तुलसी पूजन, तुलसी स्तोत्र, सावित्री पूजन, स्तोत्र, यमाष्टक महामृत्युंजय के मंत्र का अर्थ, मंगल चंडिका स्तोत्र, मंत्र व श्री रुद्र का प्रयोग बताया गया है ।
19 में भाग्य की हानि व पिता संबंधी सुख के योग दिए हैं । गणेश मंत्र, गणेशजी के द्वादश नाम, विष्णु मंत्र, भगवान के 28 नाम का पाठ भाग्य वृद्धि का श्रेष्ठ साधन बताया है ।
20 में दशम भाव पर चर्चा कर व्यवसाय में बाधा, हानि व अपयश संबंधी योगों पर चर्चा हुई है । उपचार के लिए सूर्य पूजन, सूर्याष्टक. मंगल का पूजन, हनुमानजी के मंत्र व हनुमान चालीसा शनि पूजन, शनि नामावलि पाठ तथा नीलशनि स्तोत्र,पर विचार हुआ है । शक्ति पूजन नवाक्षर मंत्र का अर्थ व सर्व विघ्नहारी दुर्गा मंत्र यश, प्रतिष्ठा व सफलता देता है । 21 में मान सम्मान व लाभ प्राप्ति के योग, धन नाश के योग के बाद अनिष्ट उपचार में लक्ष्मी नारायण मंत्र, लक्ष्मी नमस्कार मंत्र, इन्द्रकृत लक्ष्मी स्तोत्र का प्रयोग बताया है । 22 में दूादश भाव पर अशुभ प्रभाव धननाश व अंग वैकल्य पर विस्तार से चर्चा हुई है ।
अपंगता व धन नाश के 15 उदाहरणों के बाद ऋण मुक्ति के उपाय बताए हैं । मंगल गायत्री मगल स्तोत्र मंगल यंत्र मगल कवच अंगारक स्तोत्र ऋण विमोचन स्तोत्र. ध्यान व प्रयोग विधि पर विस्तार से चर्चा हुई है ।
23 में अशुभ ग्रहों की पहचान के लिए सभी लग्नों में शुभ व अशुभ ग्रहों को तालिका व तर्क सहित दर्शाया है ।
24 में अनिष्ट उपचार का महत्त्व 6 प्रसंगों द्वारा समझाया गया है । धर्म के लक्षण काल ही ईश्वर है, नव ग्रह पटल नव ग्रह स्तुति, सभी ग्रहों के मंत्र व दान कृष्ण शरण उपासना विधि शनि दशनाम स्तोत्र का प्रयोग बताया गया है । 25 में महामृत्युंजय मंत्र शनि मंत्र साढ़े सांती पीड़ानाशक शनि स्तोत्र रोगनाशक मंत्र, विपत्तिनाश मंत्र कुबेर मंत्र हनुमान मंत्र, भूमि वंदना पत्नी प्राप्ति हेतु मत्र. स्पर्धा व मुकदमें में सफलता के लिए गरुड़ जी के 12 नाम का पाठ षष्ठी देवी पूजन व स्तोत्र, विष्णु व गणेश जी के नमस्कार मंत्र, विद्या बुद्धि के लिए सरस्वती और विद्या गोपाल मंत्र, अर्थ संकट से मुक्ति के लिए लक्ष्मी गायत्री, रुद्राष्टक, शिवाष्टक, राधा परिहार स्तोत्र, हनुमान जी के 108 नाम सूर्य यंत्र, शीघ्र विवाह अनुष्ठान सीता कृत पार्वती स्तवन, वाहन दुर्घटना से सुरक्षा यंत्र, सूर्य स्तोत्र, सूर्य के 108 नाम से अक्षय पात्र प्राप्ति पर विस्तार से चर्चा हुई है ।
26 में पुरुष सूक्त व नारायण सूक्त मूल व अंग्रेजी अनुवाद के बाद दुर्गा सप्तश्लोकी व दुर्गाजी के 108 नाम, सूर्य के 12 नाम के उपयोग बताए हैं ।
जैसा कि स्पष्ट है ये बात मेरी कम और आपकी या उसकी अधिक है। उपचार यद्यपि सरल जान पड़ता है किन्तु है नहीं । इसमें उसकी कृपा शायद अधिक महत्त्वपूर्ण है ।
मैं आभारी हूँ अपने गुरुजन मित्र, छात्र व प्रशंसकों का जिन्होंने दुर्लभ मंत्र व स्तोत्र एकत्रित कर इस पुस्तक की रचना की ।
श्री अमृतलाल जैन, उनके पुत्र श्री देवेन्द्र व उनीत जैन तथा कार्यदल के सभी सदस्य भी प्रशंसा के पात्र हैं जिन्होने बिखरी सामग्री को सुंदर रंग रूप प्रदान किया । उपाय व उपचार की बात हो और उसका नाम छूट जाए ये तो संभव ही नहीं । मेरे गुरुदेव कहते हैं वही शुभ व अशुभ बनकर सुख दु ख देता है । फिर वही उपास्य. उपासक, स्तुति. स्तोता बन जाता है । शायद वही उपाय व उपचार है तो रोग शोक मुक्ति का अमोघ साधन भी । वही आनन्द धाम, सुख, सम्पन्नता, स्वास्थ्य व सुयश का स्रोत भी तो वही है बस । सो उसका शतश धन्यवाद ।
अनुक्रमिका
1
ज्योतिष में अनिष्ट से रक्षा
2
ग्रहों पर न क्षत्रों का प्रभाव
5
3
ज्योतिषीय उपचार के सिद्धांत
11
4
अनिष्ट ग्रह का उपचार और वैदिक मंत्र
19
कष्ट पीड़ा और ज्योतिषीय उपचार
27
6
व्यापार व्यवसाय में सफलता
33
7
रत्नोपचार रहस्य
39
8
रत्न धारण करने में सावधानी
52
9
ग्रह शान्ति में यंत्रों का प्रयोग
58
10
अनिष्ट ग्रह से बा धा और क्लेश
63
अनिष्ट निवारण में यंत्रों की भूमिका
82
12
अनिष्ट ग्रहस्थिति घटनाएँ और उपचार
91
13
धन मान और प्रतिष्ठा
103
14
मानसिक क्षोभ व्याकुलता या गृहक्लेश
107
15
संतान या विद्या बुद्धि का अभाव
118
16
रोग व शत्रु पीड़ा
129
17
दांपत्य क्लेश
136
18
अपमान विपत्ति व मृत्यु
154
भाग्य में हानि तथा पितृसुख में कमी
174
20
व्यापार व्यवसाय में बा धा और हानि
194
21
मान सम्मान व आय में कमी
210
22
धन वैभव का नाश तथा अंग वैकल्य
257
23
अशुभ ग्रहों की पहचान
252
24
जीवन में अनिष्ट उपचार का महत्व
260
25
अनिष्ट ग्रह उपचार
277
26
पुरुष सूक्तम्
305
परिशिष्ट
319
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