पुस्तक के विषय में
अस्त्र-शस्त्र उतने ही प्राचीन हैं जितनी 'कि-मानव सभ्यता । इनका जन्म मानव को अपनी सुरक्षा करने की भावना के साथ. ही हुआ । समय के साथ-साथ और आवश्यकतानुसार इनका स्वरूप परिवर्तित और विकसित होता रहा है । इस पुस्तक में पुराण कलि के बाद सिंधु-सभ्यता और फिर गुप्त काल, मौर्य काल, मुगल काल, राजपूत राजाओं का समय और मराठा इतिहास में वर्णित अस्त्र-शस्त्रों की रोमांचक प्रगति-यात्रा के अतिरिक्त जनजातियों में उपयोग होते रहे हथियारों का भी क्रमानुसार उल्लेख किया गया है ।
पुस्तक की लेखिका श्रीमती शीला झुनझुनवाला प्रमुख पत्रकार होने के साथ-साथ विदुषी साहित्यकार भी हैं ।
भूमिका
शस्त्र सेनाओं से संबंधित मूल हिंदी भाषा में लिखी पुस्तकों का अभाव रहा हैं । श्रीमती शीला झुनझुनवाला एक प्रसिद्ध पत्रकार और जानीमानी साहित्यकार हैं । उनके इस प्रयत्न ने हिंदी सैन्य विषयों पर व्याप्त अभाव को पूरा करने में महत्वपूर्ण योगदान किया है । मैं इस उपयोगी प्रयत्न के लिए विदुषी लेखिका और भारत सरकार के प्रकाशन विभाग को बधाई देना चाहूंगा ।
अस्त्र-शस्त्र उतने ही प्राचीन हैं जितनी कि मानव सभ्यता । इसका जन्म मानव की अपनी सुरक्षा करने की भावना के साथ ही हुआ । समय के साथसाथ और आवश्यकतानुसार इनका स्वरूप परिवर्तित और विकसित होता रहा है ।
आजकल मारक और सामूहिक संहार के लिए प्रयुक्त होने वाले अस्त्रों का युग है, जिनके प्रयोग से मानव सभ्यता और विश्व के अस्तित्व को ही खतरा उत्पन्न हो गया है। पुरातन काल में भी अनेक ऐसे ही मारक शस्त्रास्त्रों का वर्णन आता है जिनका उपयोग दिव्य शक्ति के रूप में किया जाता था । इस पुस्तक में ऐसे अनेक उदाहरण देकर इसकी रोचकता बनाए रखी गई है । मेरे विचार में शस्त्रों से अधिक महत्वपूर्ण वह योद्धा है जो कि इनका उपयोग करता है । खेमकरण में 1965 के भारत-पाक युद्ध में हमारे पुराने शेरमन टैंकों ने पाकिस्तान के आधुनिक पेटन टैंकों को नष्ट कर भारतीय सेना के गौरव शौर्य, देश- भक्ति और त्याग का एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया था । फिर भी, आधुनिक शस्त्रास्त्र न केवल सेना का मनोबल बनाए रखते हैं बल्कि शांति स्थापना में भी उपयोगी सिद्ध होते हैं । इतिहास ऐसे अनेक उदाहरणों से भरा पड़ा है जब शौर्य, देश- भक्ति व उच्चतम बलिदान की भावना के बावजूद उपयुक्त शस्त्रास्त्रों के अभाव की परिणति हार में हुई । हमें ऐसे अनेक उदाहरणों से शिक्षा प्राप्त करनी है।
पुस्तक में लेखिका ने पौराणिक काल से मध्य-युगीन शस्त्रास्त्रों के बारे में विश्वस्त जानकारी दी है। सरल भाषा और आकर्षक शैली इस पुस्तक की विशेषता है । सशस्त्र सेनाओं से संबंधित विद्वानों, शोधकर्ताओं और सामान्य पाठकों के लिए इसमें पर्याप्त उपयोगी सामग्री है । मुझे विश्वास है कि लेखिका का यह प्रयास सर्वजनों के लिए उचित और उपयोगी सिद्ध होगा।
प्रकाशकीय
नव सभ्यता जितनी है, अस्त्र-शस्त्रों की कहानी भी उतनी ही प्राचीन है। वस्तुत: अस्त्र-शस्त्रों (बचाव के साधनों) का जन्म उसी समय प्रारंभ हो गया होगा जब मनुष्य ने अपने आस-पास के भय से परिचय पाया होगा और जंगली जानवरों आदि से बचाव की चेष्टा की होगी। यह आवश्यकता प्रारंभ में उसकी शरीरिक चेष्टाओं तक ही सीमित रही। वह हथियार की जगह अपने हाथ-पैर, दांतों और नाखूनों का उपयोग करता रहा। यह नहीं, इन साधनों से उसने प्रारंभ में अपनी अन्य आवश्यकताओं की भी पूर्ति की। एक ओर वह भोजन के लिए इन सहज प्राकृतिक शक्तियों और साधनों का उपयोग करता था, दूसरी ओर जब उसके भोजन को छीनने की चेष्टा की जाती थी, तब बचाव में भी वह उन्हीं का आसरा लिया करता था।
आदिम सभ्यता के विकास के साथ-साथ जब आदमी झुंडों में रहने लगा और झुंडों में ही भोजन की तलाश में यहां-वहां निकलने लगा, तब इन झुंडों में टकराहटें शुरू हुई । इन टकराहटों के दौरान ही उसने बचाव और आक्रमण दोनों ही स्थितियों के लिए हथियारों की जरूरत और अधिक महत्ता के साथ महसूस की। उस समय हथियार बनाने के लिए उसके पास पत्थर ही था। तब तक किसी धातु को वह खोज नहीं पाया था। इस प्रकार पाषाण युग का प्रारंभ हुआ । अनेक नृवंश शास्त्रियों के अनुसार मनुष्य की खोजी प्रवृत्ति का प्रारंभ संभवत:हथियार के निर्माण से ही हुआ।
इस खोज की प्रवृत्ति और आवश्यकता के दौर ने उससे पत्थर के अनेक हथियारों-औजारों का निर्माण करवाया । इनमें विविध शक्लों में विविध पत्थरों को तराशना और पत्थर से ही तराश कर उनके बहु-उपयोगी औजार, हथियार बनाना उसने शुरू किया। पत्थर युग के हथियारों-ओजारों के विविध प्रकार और रूप पुरातत्वीय खोजों में पाए गए हैं। उनका काल निर्धारण भी हुआ है।
मोहनजोदड़ो-हड़प्पा की सभ्यता के अतिरिक्त ईसवी पूर्व रचित भारतीय पौराणिक ग्रंथों में अस्त्र-शस्त्रों के विविध रूप और प्रकारों का वर्णन, उनकी शक्ति और उपयोगिता की चर्चा, एक सीमा तक, उनकी प्रामाणिकता के साथ वर्णित है।
इस पुस्तक में कम से अस्त्र-शस्त्रों की यही कहानी दी गई है। लेखिका ने प्रयत्न किया है कि रामायण-महाभारत कालीन पौराणिक ग्रंथों में वर्णित विविध अस्त्र-शस्त्रों से लेकर मानव द्वारा आधुनिक युग में कदम रखने तक का अस्त्र-शस्त्र का संक्षिप्त इतिहास प्रामाणिकता के आधार पर पाठकों को सुलभ कराया जा सके।
इसमें पुराण काल के बाद सिंधु-सभ्यता और फिर गुप्त काल, मौर्य काल, मुगल काल, राजपूत राजाओं का समय और मराठा इतिहास में वर्णित अस्त्र-शस्त्रों की रोमांचक प्रगति-यात्रा के अतिरिक्त जनजातियों में उपयोग होते रहे हथियारों का भी क्रमानुसार उल्लेख किया गया है। पुस्तक के कलेवर में संजोई गई संपूर्ण सामग्री प्रामाणिक और तथ्यपूर्ण है।
विलक्षण लेखकीय सूझ-बूझ एवं प्रस्तुतीकरण की सुनियोजित क्षमता के साथ सहज और सरल भाषा में लेखिका ने यह पुस्तक लिखी है । विषय चयन की दृष्टि से भी पुस्तक उपयोगी है।
अनुक्रम
1
पौराणिक काल
2
पाषाण काल
11
3
सिंधु सभ्यता और आसपास का समय
15
4
ईसा-पूर्व और बाद के शस्त्रास्त्र
30
5
मुगलकालीन हथियार
40
6
मराठाकालीन शस्त्रास्त्र
52
7
राजपूतों के शस्त्रास्त्र
60
8
सिखों के शस्त्रास्त्र
66
9
आदिवासियों के शस्त्रास्त्र
74
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu (875)
Agriculture (85)
Ancient (994)
Archaeology (567)
Architecture (526)
Art & Culture (848)
Biography (586)
Buddhist (540)
Cookery (160)
Emperor & Queen (489)
Islam (234)
Jainism (271)
Literary (866)
Mahatma Gandhi (377)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist