नम्र-निवेदन
भाईजी (श्रीहनुमानप्रसादजी" पोद्दार) -के" कुछ" व्यक्तिगत" पत्रोंका" संग्रह" लोक-परलोकका" सुधार (प्रथम" भाग) -के" नामसे" कुछ" सप्ताहपूर्व" प्रकाशित" हुआ" था" ।" उसी" संग्रहका" दूसरा" भाग" भी" प्रेमी" पाठकपाठिकाओंकी" सेवामें" प्रस्तुत" है।" इस" भागमें" प्राय" उन्हीं" विषयोंका" समावेश" है" जिनकी" चर्चा" पहले" भागमें" आ" चुकी" है।" इस" प्रकार" यह" दूसरा" भाग" पहले" भागका" ही" एक" प्रकारसे" पूरक" होगा।" दोनों" भागोंको" मिलाकर" ही" पढ़ना" चाहिये" ।" पुस्तकका" आकार" बड़ा" न" हो" इसीलिये" पत्रोंको" दो" भागोंमें" विभक्त" किया" गया" है।" आशा" है" प्रेमी" पाठक" इस" भागको" भी" उसी" चावसे" पढ़ेंगे" ।" मेरा" विश्वास" है" कि" जो" लोग" इन" पत्रोंको" मननपूर्वक" पढ़ेंगे" और" उनमें" आयी" हुई" बातोंको" अपने" जीवनमें" उतारनेकी" ईमानदारीके" साथ" चेष्टा" करेंगे, उन्हें" निश्चय" ही" महान्" लाभ" होगा" और" उन्हें" लोक-परलोक" दोनोंका" सुधार" करनेमें" यथेष्ट" सहायता" मिलेगी।
विषय-सूची
1
श्राद्धकी" आवश्यकता
7
2
ब्रह्मज्ञान, पराभक्ति" और" भगवान्की" लीला
20
3
कुछ" तात्विक" प्रश्नोत्तर
22
4
गीतोक्त" सांख्ययोग" एवं" कर्मयोग
28
5
श्रीजगन्नाथजीके" प्रसादकी" महिमा
33
6
रुपयेको" महत्त्व" नहीं" देना" चाहिये
35
रुपयेका" मोह
36
8
धनसे" हानि" और" धनका" सदुपयोग
38
9
पापका" प्रकट" होना" हितकर" है
41
10
मनुष्यका" कर्तव्य
42
11
मनुष्य" जीवन" की" सफलता
43
12
असली" सद्गुण
46
13
गम्भीरता" या" प्रसन्नता
48
14
निज-दोष" देखनेवाले" भाग्यवान्" हैं
49
15
कुछ" प्रश्नोत्तर
50
16
सेवा-धर्म" और" आनन्दका" स्वरूप
57
17
शान्ति" भगवान्के" आश्रयसे" ही" मिल" सकती" है
61
18
भगवान्का" ऐश्वर्य" और" भगवत्कृपा
62
19
भगवान्का" स्वभाव
66
भगवान्से" तुरन्त" उत्तर" मिलेगा
68
21
भगवान्की" असीम" कृपा
71
भगवान्की" कृपाशक्ति
72
23
दुःखमें" भी" भगवान्की" दया
76
24
प्रभुकी" इच्छा" कल्याणमयी" होती" है
78
25
सर्वोत्तम" चाह
26
भोग-तृष्णामें" दुःख
82
27
वैराग्यका" भ्रम
86
कोई" किसीका" नहीं" है
90
29
सेवा-साधन
92
30
भावुकताका" प्रयोग" भगवान्में" कीजिये
98
31
पापोंके" नाशका" उपाय
99
32
विपत्तिनाशका" उपाय
103
दोषनाशके" उपाय
34
दु:खनाशके" साधन
107
पतित" होकर" पतितपावनको" पुकारो
116
साधकोंसे
117
37
संसारमें" रहते" हुए" ही" भगवत्प्राप्तिका" साधन" कैसे" हो?
119
काम-क्रोधादि" शत्रुओंका" सदुपयोग
123
39
साधक" संन्यासीके" कर्तव्य
129
40
श्रीभगवान्के" श्रृंगारका" ध्यान
132
भगवत्साक्षात्कारके" उपाय
134
भगवान्की" दयालुतापर" विश्वास
137
भगवान्के" विधानमें" आनन्द
138
44
सर्वत्र" सबमें" भगवान्को" देखो
139
45
नाम-जपकी" महत्ता
140
वास्तविक" भजनका" स्वरूप
142
47
"प्रेम से होनेवाला" भजन
143
भजन-साधन" और" साध्य
145
"शरीर का मोह छोड्कर" भजन" करना" चाहिये
146
वैराग्य" और" भजन" कैसे" हो?
148
51
भक्तिका" स्वरूप
152
52
पराभक्ति" साधन" नहीं" है
154
53
उलटी" राह
155
54
'अर्थ' और" 'अनर्थ'
157
55
रति, प्रेम" और" रागके" तीन-तीन" प्रकार
160
56
विरह- सुख
163
भगवत्प्रेमकी" प्राप्तिके" साधन
165
58
श्रीकृष्ण-वरित्रकी" उज्ज्वलता
166
59
गोपीभावकी" साधना
175
60
गोपीभावकी" उपासना
192
कुछ" महत्वपूर्ण" प्रश्नोत्तर
193
बर्ताव" सुधारनेके" उपाय
206
63
समाजका" पाप
209
64
प्रेमके" नामपर
212
65
प्रेमके" नामपर" पाप
214
देश" पतनकी" ओर" जा" रहा" है
218
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