स्व. राजरानी एवं श्री श्रीराम शुक्ल के पुत्र श्री सुरेश कुमार शुक्ल मन्देश' का जन्म 5 फरवरी, सन् 1972 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के जनपद लखीमपुर खीरी की तहसील गोला गोकर्णनाथ में हुआ था। सन्देश जी ने हिन्दी से एम.ए. उत्तीर्ण किया और वर्तमान में राष्ट्रधर्म हिन्दी मासिक के सम्पादकीय विभाग में कार्यरत हैं।
सन्देश जी ने 5 जून सन् 1993 को हिन्दी के विख्यात नदी महाकवि डॉ. अनन्त जी से काव्य दीक्षा लेकर अपनी साहित्य साधना प्रारम्भ की और अब तक बीस से अधिक कृतियाँ सृजित कर चुके हैं; जिनमें निम्न कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं।
* श्री तपेश्वरी चालीसा श्री हनुमत बावनी श्री अम्बा लहरी श्रीराम जीवनम् • चाँदनी के घर (हिन्दी गज़लें) धर्म विजय (खण्ड काव्य) सपनों के प्रासाद (दोहा सतसई) जीवन के सोपानों में (हिन्दी गज़लें) गोला गोकर्ण नाथ महात्म्य निर्वन्ध निर्झर (गीत-संग्रह) अनन्त आविर्भाव जय विवेकानन्द (महाकाव्य) • मैं मछली हूँ इसके अतिरिक्त अनेक पुस्तकें प्रकाशन की प्रतीक्षा में हैं।
सन्देश जी को देश की विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित एवं पुरस्कृत किया जा चुका है जिनमें साहित्य कला संगम अकादमी प्रतापगढ़ (उ.प्र.) द्वारा विद्यावाचस्पति, भाऊराव देवरस सेवा न्यास लखनऊ द्वारा युवा साहित्यकार सम्मान, शिव संकल्प साहित्य परिषद् होशंगाबाद (म.प्र.) द्वारा भाक्तिकाव्य कौस्तुभ एवं काव्य कलाधर, सरिता लोक भारती संस्थान सुल्तानपुर (उ.प्र.) द्वारा साहित्य गौरव, अ.भा. साहित्यकला परिषद्, कुशीनगर द्वारा 'राष्ट्रभाषा रत्न' उ.प्र. हिन्दी संस्थान लखनऊ द्वारा धर्म विजय खण्ड काव्य पर आनन्दमिश्र सर्जना पुरस्कार। इसके अतिरिक्त अनेक राष्ट्रीय संकलनों एवं देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर रचनाओं का प्रकाशन हो रहा है। साथ ही कई शोधग्रन्थों में भी उल्लेख हुआ है।
भारतीय आर्ष वाङ्मय लौकिक एवं अलौकिक प्रेरक प्रसंगों से सर्वाधिक समृद्ध है। हमारे ऋषियों-मुनियों एवं दार्शनिकों ने सदैव ही अपने शिष्यों और आगन्तुकों को सन्मार्ग पर चलने और आगे बढ़ने के लिए अपनी वाणी से ऐसे प्रभावशाली प्रेरक प्रसंगों का वर्णन किया है, जिनके माध्यम से ऋषियों की शिक्षाएँ सफल होकर अमर हो गयी। आज भी जीवन के सोपानों में कदम-कदम पर प्रेरक प्रसंगों का महत्त्व है। हम अपने आसपास होने वाली अनेक घटनाओं एवं परिवर्तनों से प्रेरित प्रभावित एवं आश्चर्यचकित होते रहते हैं, जो जीवमात्र के लिए स्वाभाविक है। घटनाक्रम प्राकृतिक रूप से सभी के साथ होते रहते हैं, किन्तु अधिकांश लोग इनको अनदेखा कर देते हैं लेकिन कुछ संवेदनशील विवेकवान अपने साथ या आस-पास होने वाले हर एक घटनाक्रम पर ध्यान देते हैं और उन्हें अपने चिन्तन का बिन्दु बनाकर स्वयं तो कुछ न कुछ सीखते ही हैं साथ ही अन्य लोगों के लिए भी शिक्षा के रूप में प्रस्तुत कर जाते हैं। कालान्तर में यही प्रसंग एवं घटनाएँ प्रेरक प्रसंग का रूप ले लेती हैं।
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