डॉ. श्यामबिहारी अग्रवाल भावुक लेखक, प्रबुद्ध कलाकार तथा सहृदय शिक्षक के रूप में कला-जगत सुपरिचित है। कोलकाता के गर्वमेंट कालेज ऑफ आर्ट एण्ड क्राफ्ट से पाँच वर्षीय स्नात्कोत्तर डिप्लोमा के बाद आपप्ने जनवरी 1968 को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के चित्रकला विभाग में अपने कला गुरू क्षितीन्द्रनाथ मजूमदार जी के स्थान को लेक्चरर के रूप में सुशोभित किया और आपके सप्रयत्नों से इलाहाबाद विश्वविद्यालय में चित्रकला की स्नातक एवं स्नातकोत्तर और बी.एफ.ए., एम.एफ.ए. कक्षाओं का शुभारम्भ हुआ और शोध कार्य का प्रारम्भ हुआ। इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने सन् 1979 में डॉ. अग्रवाल को, उनके शोध प्रबन्ध 'भारतीय चित्रकला में रीतिकालीन साहित्य की अभिव्यक्ति' पर डी. फिल. उपाधि से उन्हें विभूषित किया। इलाहाबाद दृश्य कला विभाग के आचार्य पद से 2003 में सेवा से निवृत्त होने के पश्चात वे प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद से जुड़े और अध्यक्ष के रूप में दृश्य कला संकाय की स्थापना की। आप ने इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ में विजटिंग प्रोफेसर के रूप में भी कार्य किया। वरिष्ठ कलाकार एवं प्रशिक्षक के रूप में भारतवर्ष के सांस्कृतिक केंद्रों, ललित कला अकादमी, संग्रहालयों एवं विभिन्न विश्वविद्यालयों के कार्यशालाओं एवं सेमिनारों में प्रतिभागिता की और अपनी कार्यकुशलता एवं विद्वता की अमिट छाप छोड़ी।
डॉ. श्यामबिहारी अग्रवाल
डॉ. अग्रवाल उत्तर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल द्वारा राज्य ललित अकादमी, लखनऊ के सदस्य हुए और अपने कार्यकाल में नवोदित कलाकारों के उन्नयन हेतु सक्रिय कार्य किया। मनोनीत अकादमी से प्रकाशित 'कला त्रैमासिक' का सम्पादन किया और महान संत चित्रकार क्षितीन्द्रनाथ र महान अकादमी के अनेक कला कार्यशालाओं एवं प्रदर्शनियों का सफल संचालन किया। डॉ. अग्रवाल निरंतर शोध कार्य से जुड़े हुए हैं और विभिन्न विश्वविद्यालयों के शैक्षिक एवं शोध कार्य समितियों के सदस्य मनोनीत हैं। आपको महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, कानपुर विश्वविद्यालय और अब ध विश्वविद्यालय ने अपने अन्तर्राष्ट्रीय कला शिविर में कलाकार के रूप में डॉ. अग्रवाल को विशेष रूप से सम्मानित किया।
डॉ. अग्रवाल के चित्रों की एकल एवं सामूहिक प्रदर्शनियाँ स्थान-स्थान पर तथा समय-समय पर पुरस्कृत एवं सम्मानित भी हुई हैं। हो चुकी हैं आपके बित्र देश-विदेश के अनेक संग्रहालयों एवं व्यक्तिगत संग्रहों में संगृहीत हैं। उनके चित्रकला सीधे लेख विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशित होते रहे हैं। कला संबंधी अब तक दर्जनों पुस्तकें हिन्दी और अंग्रेजी में प्रकाशित हो चुकी हैं।
चट्टानों को काटकर बनाए गए बौद्ध गुफ़ा मंदिर व मठ, अजंता गाँव के समीप, उत्तर-मध्य महाराष्ट्र, पश्चिमी भारत में स्थित है, जो अपनी भित्ति चित्रकारी के लिए विख्यात है। औरंगाबाद से 107 किलोमीटर पूर्वोत्तर में वगुर्ना नदी घाटी के 20 मीटर गहरे बाएँ छोर पर एक चट्टान के आग्नेय पत्थरों की परतों को खोखला करके ये मंदिर बनाए गए हैं। लगभग तीस गुफाओं के इस समूह की खुदाई पहली शताब्दी ई. पू. और सातवीं शताब्दी के बीच दो रूपों में की गई थी- चैत्य (मंदिर) और बिहार (मठ)। यद्यपि इन मंदिरों की मूर्तिकला, ख़ासकर चैत्य स्तंभों का अलंकरण अद्भुत तो है, लेकिन अंजता की गुफ़ाओं का मुख्य आकर्षण भित्ति चित्रकारी है। इन चित्रों में बौद्ध धार्मिक आख्यानों और देवताओं का जितनी प्रचुरता और जीवंतता के साथ चित्रण किया गया है, वह भारतीय कला के क्षेत्र में अद्वितीय है। अजंता की गुफ़ाएं, औरंगाबाद Ajanta Caves, Aurangabad अजंता की गुफाएं बौद्ध धर्म द्वारा प्रेरित और उनकी करुणामय भावनाओं से भरी हुई शिल्पकला और चित्रकला से ओतप्रोत हैं, जो मानवीय इतिहास में कला के उत्कृष्ट ज्ञान और अनमोल समय को दर्शाती हैं। बौद्ध तथा जैन सम्प्र दाय द्वारा बनाई गई ये गुफाएं सजावटी रूप से तराशी गई हैं। फिर भी इनमें एक शांति और अध्यात्मव झलकता है तथा ये दैवीय ऊर्जा और शक्ति से भरपूर हैं। दूसरी शताब्दीऔ डी. सी. में आरंभकरते हुए और छठवीं शताब्दी ए. डी. में जारी रखते हुए महाराष्ट्र में औरंगाबाद शहर से लगभग 107 किलो मीटर की दूरी पर अजंता की ये गुफाएं पहाड़ को काट कर विशाल घोड़े की नाल के आकार में बनाई गई हैं। अजंता में 29 गुफालाओं का एक झुंड बौद्ध बास्तुककला, गुफा चित्रकला और शिल्पं चित्रकला के उत्कृष्त म हरणों में से एक है। इन गुफाओं में चैत्यओं कक्ष या मठ है, जो भगवान बुद्ध उदाहरणों और बिहार को समर्पित हैं, जिनका उपयोग बौद्ध भिक्षुओं द्वारा ध्याउन लगाने और भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का अध्यैयन करने के लिए किया जाता था। गुफाओं की दीवारों तथा छतों पर बनाई गई ये तस्वीरें भगवान बुद्ध के जीवन की विभिन्ना घटनाओं और विभिन्न बौद्ध देवत्वय की घटनाओं का चित्रण करती हैं। इसमें से सर्वाधिक महत्वंपूर्ण चित्रों में जातक कथाएं हैं, जो बोधिसत्व के रूप में बुद्ध के पिछले जन्मव से संबंधित विविध कहानियों का चित्रण करते हैं, ये एक संत थे जिन्हें बुद्ध बनने की नियति प्राप्तट थी। ये शिल्प कलाओं और तस्वीतरों को प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत करती हैं जबकि ये समय के असर से मुक्त है। ये सुंदर छवियां और तस्वीरें बुद्ध को शांत और पवित्र मुद्रा में दर्शाती हैं। सह्याद्रि की पहाड़ियों पर स्थित इन 30 गुफाओं में लगभग 5 प्रार्थना भवन और 25 बौद्ध मठ हैं। इन गुफाओं की खोज आर्मी ऑफिसर जॉन स्मिथ व उनके दल द्वारा सन् 1819 में की गई थी। वे यहाँ शिकार करने आए थे, तभी उन्हें कतारबद्ध 30 गुफाओं की एक श्रृंखला नज़र आई और इस तरह ये गुफाएँ प्रसिद्ध हो गई। घोड़े की नाल के आकार में निर्मित ये गुफाएँ अत्यन्त ही प्राचीन व ऐतिहासिक महत्त्व की है। इनमें 200 ईसा पूर्व से 650 ईसा पश्चात् तक के बौद्ध धर्म का चित्रण किया गया है। अजंता की गुफाओं में दीवारों पर खूबसूरत अप्सराओं व राजकुमारियों के विभिन्न मुद्राओं वाले सुंदर चित्र भी उकेरे गए है, जो यहाँ की उत्कृष्ट चित्रकारी व मूर्तिकला के बेहद ही सुंदर नमूने है। अजंता की गुफाओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है। एक भाग में बौद्ध धर्म के हीनयान और दूसरे भाग में महायान संप्रदाय की झलक देखने को मिलती है। हीनयान वाले भाग में 2 चैत्यड 1 और 4 बिहारड 2 है तथा महायान वाले भाग में 3 चैत्य और 11 बिहार है। ये 19 वीं शताब्दी की गुफाएँ है, जिसमें बौद्ध भिक्षुओं की मूर्तियाँ व चित्र है। हथौड़े और छैनी की सहायता से तराशी गई ये मूर्तियाँ अपने आप में अप्रतिम सुंदरता को समेटे है।
अजन्ता में निर्मित कुल 30 गुफाओं में वर्तमान में केवल 6 ही, गुफा संख्या 1, 2, 9, 10, 16, 17 शेष है। इन 6 गुफाओं में गुफा संख्या 16 एवं 17 ही गुप्तकालीन हैं। अजन्ता के चित्र तकनीकि दृष्टि से विश्व में प्रथम स्थान रखते हैं। इन गुफाओं में अनेक प्रकार के फूल-पत्तियों, वृक्षों एवं पशु आकृति से सजावट का काम तथा बुद्ध एवं बोधिसत्वों की प्रतिमाओं के चित्रण का काम, जातक ग्रंथों से ली गई कहानियों का वर्णनात्मक दृश्य के रूप में प्रयोग हुआ है। ये चित्र अधिकतर जातक कथाओं को दर्शाते हैं। इन चित्रों में कहीं-कही गैर भारतीय मूल के मानव चरित्र भी दर्शाये गये हैं। अजन्ता की चित्रकला की एक विशेषता यह है कि इन चित्रों में दृश्यों को अलग अलग विन्यास में नहीं विभाजित किया गया है। अजन्ता में फ्रेस्को' तथा टेम्पेरा' दोनों ही विधियों से चित्र बनाये गए हैं। चित्र बनाने से पूर्व दीवार को भली भांति रगड़कर साफ़ किया जाता था तथा फिर उसके ऊपर लेप चढ़ाया जाता था। अजन्ता की गुफा संख्या 16 में उत्कीर्ण 'मरणासन्न राजकुमारी' का चित्र प्रशंसनीय है। इस चित्र की प्रशंसा करते हुए ग्रिफिथ, वर्गेस एवं फर्गुसन ने कहा, 'करुणा भाव एवं अपनी कथा को स्पष्ट ढंग से कहने की दृष्टि 'यह चित्रकला के इतिहास में अनतिक्रमणीय है। वाकाटक वंश के वसुगुप्त शाखा के शासक हरिषेण (475-500ई.) के मंत्री वराहमंत्री ने गुफा संख्या 16 को बौद्ध संघ को दान में दिया था। गुफा संख्या 17 के चित्र को 'चित्रशाला' कहा गया है। इसका निर्माण हरिषेण नामक एक सामन्त ने कराया था। इस चित्रशाला में बुद्ध के जन्म, जीवन, महाभिनिष्क्रमण एवं महापरिनिर्वाण की घटनाओं से संबंधित चित्र उकेरे गए हैं। गुफा संख्या 17 में उत्कीर्ण सभी चित्रों में माता और शिशु नाम का चित्र सर्वोत्कृष्ट है। अजन्ता की गुफाऐं बौद्ध धर्म की 'महायान शाखा खा से संबंधित थी। अजंता की की प्रसिद्ध गुफाओं के चित्रों की चमक हजार से अधिक वर्ष बीतने के बाद भी आधुनिक समय से विद्वानों के लिए आश्चर्य का विषय है। भगवान बुद्ध से संबंधित घटनाओं को इन चित्रों में अभिव्यक्त किया गया है। चावल के मांड, गोंद और अन्य कुछ पत्तियों तथा वस्तुओं का सम्मिश्रमण कर आविष्कृत किए गए रंगों से ये चित्र बनाए गए। लगभग हजार साल तक भूमि में दबे रहे और 1819 में पुनः उत्खनन कर इन्हें प्रकाश में लाया गया। हज़ार वर्ष बीतने पर भी इनका रंग हल्का नहीं हुआ, खराब नहीं हुआ, चमक यथावत बनी रही। कहीं कुछ सुधारने या आधुनिक रंग लगाने का प्रयत्न हुआ तो वह असफल ही हुआ। रंगों और रेखाओं की यह तकनीक आज भी गौरवशाली अतीत का याद दिलाती है। ब्रिटिश संशोधक मि. ग्रिफिथ कहते हैं 'अजंता में जिन चितेरों ने चित्रकारी की है, वे सूजन के शिखर पुरुष थे। अजंता में दीवारों पर जो लंबरूप (खड़ी) लाइनें कूची से सहज ही खींची गयी हैं वे अचंभित करती हैं। वास्तव में यह आश्चर्यजनक कृतित्व है। परन्तु जब छत की सतह पर संवारी क्षितिज के समानान्तर लकीरें, उनमें संगत घुमाव, मेहराब की शक्ल में एकरूपता के दर्शन होते हैं और इसके सृजन की हज़ारों जटिलताओं पर ध्यान जाता है, तब लगता है वास्तव में यह विस्मयकारी आश्चर्य और कोई चमत्कार है। 5 अजन्ता में प्राप्त चित्र गुफाओं की समय सीमा गुफा संख्या समय 9 व 10 प्रथम शताब्दी (गुप्तकाल से पूर्व) 16 एवं 17 500 ई. (उत्तर गुप्त काल) 1 एवं 2 लगभग 628 ई. (गुप्तोत्तर काल) यूनेस्को 1 द्वारा 1983 से विश्वउ विरासत स्थसल घोषित किए जाने के बाद अजंता और एलोरा की तस्वीरें और शिल्पकला बौद्ध धार्मिक कला के उत्कृष्ट नमूने माने गए हैं और इनका भारत में कला के विकास पर गहरा प्रभाव है। रंगों का रचनात्मक उपयोग और अभिव्येक्ति की स्वनतंत्रता के उपयोग से इन गुफाओं वे चित्रों में अजंता के अंदर जो मानव और जंतु रूप चित्रित किए गए हैं, उन्हें कलात्मतक रचनात्मीकता का एक उच्च स्तर माना जा सकता है। ये शताब्दियों से बौद्ध, हिन्दू और जैन धर्म के प्रति समर्पित है। ये सहनशीलता की भावना को प्रदर्शित करते हैं, जो प्राचीन भारत की विशेषता रही है।
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