ब्रह्म क्या है? आत्म के साथ इसका संबंध क्या है? ब्रह्मांड में एक व्यक्ति का स्थान क्या है? क्या मोक्ष प्राप्ति के लिए एकमात्र मार्ग व्यक्तिगत ईश्वर और कर्मकांडों के अनुसार पूजा है? जब एक मनुष्य आध्यात्मिक जगत के साथ जुड़ता है तो जाति मायने रखती है? इन शाश्वत प्रश्नों के उत्तर उस व्यक्ति और संत पर इस मौलिक पुस्तक में स्पष्टता से दिए गए हैं, जिसने हिंदू धर्म का पुनरुत्थान किया और उपनिषदों की अंतर्दृष्टि को एक दृढ़संरचना और बेहद आकर्षक दर्शन प्रदान किया।
जगद्गुरु आदि शंकराचार्य (788-820 ईस्वी) का जन्म केरल में हुआ था और मृत्यु केदारनाथ में। उन्होंने परम सत्य की तलाश में पूरे भारत की यात्रा की थी। बत्तीस वर्ष के लघु जीवन में, शंकराचार्य ने ना केवल हिंदू धर्म का पुनरुत्थान किया, बल्कि इसके प्रचार-प्रसार के लिए उन मठों के रूप में संस्थागत संरचना का निर्माण भी किया, जो उन्होंने श्रृंगेरी, द्वारका, पुरी और जोशीमठ में स्थापित किए थे।
आदि शंकराचार्यः हिंदू धर्म के महानतम विचारक उनके जीवन और दर्शन का व्यापक चित्रण है जिसके लिए सतर्कतापूर्ण शोध किया गया है। शंकराचार्य की मौलिक रचनाओं में से चुनिंदा पद्यावली के साथ यह पठनीय पुस्तक उन आश्चर्यजनक प्रमाणों की चर्चा भी करती है, जो उनके विचारों के पक्ष में आधुनिक विज्ञान में मिलते हैं। सभी तरह की विचारधाराओं के लोगों के लिए यह पुस्तक पढ़ने योग्य है, और पाठकों को हिंदू धर्म के उस अद्भुत दार्शनिक आधार की याद दिलाती है जो इसे विश्व के सर्वाधिक जीवंत धर्मों में से एक बनाता है।
पवन के. वर्मा एक लेखक, कूटनीतिज्ञ और राजनीतिज्ञ हैं। हाल-फिलहाल तक आप राज्यसभा सांसद थे। आप बिहार के मुख्यमंत्री के सलाहकार भी रह चुके हैं। पवन एक दर्जन से भी ज़्यादा बेस्टसेलिंग किताबों के लेखक हैं, जिनमें शामिल हैं: ग़ालिब: द मैन, द टाइम्स; द ग्रेट इंडियन मिडिल क्लास; द बुक ऑफ़ कृष्णा; बीइंग इंडियन; बिकमिंग इंडियन; और चाणक्याज़ न्यू मेनिफेस्टो। आप कई देशों में राजदूत के तौर पर काम कर चुके हैं, लंदन में नेहरू सेंटर के डायरेक्टर, विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता, और भारत के राष्ट्रपति के प्रेस सचिव रहे हैं।
पवन के. वर्मा को कूटनीति, साहित्य, संस्कृति और सौंदर्य शास्त्र के क्षेत्रों में योगदान के लिए 2005 में इंडियानापॉलिस यूनीवर्सिटी ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि दी थी।
हिंदू धर्म, इसके अधिकतर अनुयायियों के लिए, जीवन जीने का एक तरीका है। इसका कोई एक पोप नहीं है, कोई एक धर्मग्रंथ नहीं है, कोई कठोर निर्धारित रीति-रिवाज नहीं है, कोई अनिवार्य समूह नहीं है, और ना ही कोई एक मुख्य मंदिर है। शायद इस वजह से यह अनंत काल से फलता-फूलता आ रहा है; यह सनातन और अनंत है क्योंकि जो सर्वव्यापी है लेकिन क्षणभंगुर रूप तक सीमित नहीं है, वो अविनाशी है।
लेकिन शायद इसी वजह से ही, अधिकतर हिंदू जहां एक ओर अपने तरीके से आस्था का पालन करते हैं, वहीं दूसरी ओर अपने धर्म के दार्शनिक आधारों के महत्व से अनजान हैं। हिंदुत्व, एक धर्म के रूप में, हिंदुत्व दर्शन से अलग नहीं है। अगर हिंदू अपने धर्म के दार्शनिक आधार से दूर हैं, तो वो एक तरह से जानबूझकर इसके भीतर के खजाने को छोड़कर उसका आवरण चुन रहे हैं। जब धर्म बड़े पैमाने पर रीति-रिवाजों तक सीमित हो जाता है, तो इस बात का खतरा बढ़ जाता है कि बाहरी रंग-रूप को सार की तुलना में अधिक महत्व मिलेगा। मैं मानता हूं कि यह हिंदुत्व के लिए, और इसके महान संतों, संन्यासियों और विचारकों के लिए- जिन्हें ये पुस्तक मैं विनम्रतापूर्वक समर्पित करता हूं क्षति होगी, जिन्होंने इस सनातन धर्म को विश्व की कुछ सर्वाधिक प्रगाढ़ दार्शनिक अंतर्दृष्टि दी है।
इसी कारण मैंने ये किताब लिखी। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य निस्संदेह उन महानतम विद्वानों में एक थे, जिन्होंने अंतिम सत्य की हिंदू धर्म की अथक खोज में योगदान दिया। बत्तीस वर्षों का उनका छोटा सा जीवन उतना ही अद्भुत है जितना वो अद्वैत दर्शन जिसे उन्होंने कुशलता से गढ़ा है।
मेरा उद्देश्य इस महान व्यक्तित्व और उसके जीवन की खोज करना था, और मैंने इस तलाश में, उनके जन्म स्थल केरल के कलाडी से लेकर, उनके समाधि स्थल केदारनाथ तक की यात्रा की और अधिकतर उन स्थानों पर भी मैं गया जो उनके जीवन से संबंधित हैं।
जगद्गुरु के कदमों पर चलते हुए ना सिर्फ मैंने भारत को भौतिक रूप से लंबाई और चौड़ाई में नापा, बल्कि मैंने अपने आपको उनके दर्शन, और इसके स्वयं और ब्रह्मांड के साथ संबंध की मानसिक यात्रा में भी डुबो लिया। सच बताऊं तो मेरे पूरे शोध के दौरान सबसे महत्वपूर्ण पहलू था उनके दार्शनिक सिद्धांतों, और आधुनिक विज्ञान के आविष्कारों, विशेषकर ब्रह्मांड विज्ञान, क्वांटम भौतिकी और तंत्रिका विज्ञान, के बीच तालमेल का मेरा शोध।
इस किताब को लिखने में सहायता के लिए मैं कई लोगों का कृतज्ञ हूं, लेकिन अगर मैं यहां उनमें से कुछ नाम ना लूं तो मेरी गलती क्षमायोग्य नहीं होगी। सबसे पहला नाम है मणि शंकर द्विवेदी का, जो संस्कृत के प्रतिभाशाली युवा विद्वान हैं और उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि ली है। उन्होंने कई दुर्लभ किताबों को तलाश करने में, संस्कृत ग्रंथों को पढ़ने में और चयनित पद्यावली को संकलित करने में बड़ी सहायता की। हमेशा मदद करने की उनकी तत्परता और मेरे काम में उनके विश्वास का मूल्य मैं कभी नहीं दे सकता।
मैंने विद्वान-राजनेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी के साथ भी कई घंटे बिताए, और उनसे हिंदू दर्शनशास्त्र के गूढ़ पहलुओं और शंकराचार्य के लेखन की तुलना आधुनिक विज्ञान से करने जैसे विषयों पर गहरी चर्चा की। डॉक्टर साहब, जैसा उनके चाहने वाले पुकारते हैं, ने मेरी लंबी यात्राओं के दौरान कई तरह के प्रबंध में बड़ी मदद की। मैं उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूं। मैं अपने दिल से जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल, एन.एन. वोहरा का भी शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने श्रीनगर यात्रा के दौरान मेरी बहुत मदद की, और हिंदू दर्शनशास्त्र और कश्मीर शैववाद के विद्वानों के साथ मेरी मुलाकात का प्रबंध किया। मैं संस्कृत और हिंदू दर्शन के विद्वान डॉ. करण सिंह के साथ बिताए घंटों को भी लंबे समय तक याद रखूंगा।
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