मानव मन में अनेक संशय एवं शंकाएँ उत्पन्न होती रहती हैं। यदि उनका समाधान नहीं होता है तो वह सदा अशांत और बेचैन रहता है। भगवान् श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में कहा है- "संशयात्त्मा विनश्यति। इसलिए शंकाओं के समाधान की नितांत आवश्यकता है।
इस पुस्तक में अनेक जिज्ञासुओं एवं सत्यान्वेषी साधकों की शंकाओं का समाधान है, इसलिए इसका नाम "अध्यात्म-शंका-समाधान रखा है, जो इसके अनुरूप ही है।
इस पुस्तक में जिज्ञासुओं एवं साधकों द्वारा किए गए प्रश्नों का संक्षिप्त उत्तर दिया गया है। अनेक जिज्ञासुओं एवं प्रेमी भक्तों के आग्रह से इस पुस्तक का प्रकाशन किया गया है।
आध्यात्मिक प्रश्न इतने गूढ एवं रहस्ययुक्त होते हैं कि उनका समाधान मेरे जैसे अल्पज्ञ के लिए आसमान से तारे तोड़ने जैसा है, परन्तु मेरे हृदयाराध्य परम पूज्य सद्गुरुदेव श्री सतपाल जी महाराज की महती कृपा एवं अहेतुकी दया से यह सुगमता से हो गया है। अध्यात्म के जिन प्रश्नों का उत्तर लिखना अनुचित है, उनको गुरुकृपा से तत्त्वज्ञान प्राप्तकर जानने को कहा है। बहुत से प्रश्नों के उत्तर अव्यक्त एवं अनुभवगम्य होने के कारण उन्हें लिपिबद्ध नहीं किया गया है। उसे साधु-संग में जाकर ही समझा जा सकता है। फिर भी जिज्ञासुओं की शंकाओं के समाधान का भरपूर प्रयास किया गया है। संपूर्ण पुस्तक के अध्ययन से उनकी शंकाओं का सहजता से समाधान हो जायेगा।
यह पुस्तक "अध्यात्म-शंका-समाधान आपके समक्ष प्रस्तुत्त करते हुए मुझे अति हर्ष हो रहा है। मुझे विश्वास है कि साधना-पथ के पथिकों के लिए यह पथ-प्रदर्शक का कार्य करेगी। अज्ञान-अंधकार में भटकते हुए के लिए, ज्योतिपूंज का कार्य करेगी। सत्त्यान्देषियों को उस सत्य तक पहुँचाने में परम सहायक सिद्ध होगी।
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