पुस्तक के विषय में
आचार्य नरेन्द्रदेव (जन्म: 31 अक्तूबर, 1889 ई. सीतापुर, उत्तर प्रदेश; निधन: 19 फ़रवरी 1956 ई. इरोड, तमिलनाडु) प्रथम कोटि के विद्वान, शिक्षाविद् चिन्तक तथा सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्त्ता थे । उन्होंने न केवल भारतीय स्वतंत्रता आदोलन में हिस्सा लिया था, वरन् किसान आदोलन, छात्र और युवा आदोलनों तथा शिक्षा-संस्कृति तथा राजनीति के क्षेत्र में भी अपनी सक्रिय हिस्सेदारी से भारत के पुननिर्माण में महत्वपूर्ण योगदान किया । नरेन्द्रदेव बीस के दशक में भारतीय स्वाधीनता आदोलन से जुड़े । शुरू में वे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, श्रीअरविन्द घोष तथा विपिनचंद्र पाल की गरम राष्ट्रीय धारा से प्रभावित हुए फिर महात्मा गाँधी के प्रभाव में आए और अंत में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के वरिष्ठतम नेता के रूप में स्वाधीनता आदोलन से तथा स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात् विपक्ष की राजनीति से संबद्ध रहे । अपनी लंबी सक्रिय जीवन-यात्रा के दौरान विभिन्न विचारधाराओं के संपर्क में आने के बावजूद वे अपने विचारों और सिद्धांतों में नितांत मौलिक रहे । अनेक इतिहास-पुरुषों से प्रभावित रहते हुए भी वे किसी के अंधभक्त नहीं हुए । गरम दल की विचारधारा के समर्थक होते हुए भी वे उसकी सामाजिक रूढ़िवादिता से सहमत नहीं थे । गाँधी जी के प्रति अगाध निष्ठा रखते हुए वे हिंसा-अहिंसा के प्रश्न पर उनसे असहमति व्यक्त कर सकते थे । मार्क्सवाद के प्रति भी उनकी गहरी निष्ठा थी । मार्क्सवादी दर्शन और इतिहास का उनका अध्ययन गहन एवं विस्तृत था, तथापि वे मार्क्सवाद के प्रयोग में लोक तंत्र की उपेक्षा के आलोचक थे और उनका दृढ़ विश्वास था कि मार्क्स, ऐंगेल्स और लेनिन का मार्क्सवाद लोकतंत्र का विरोधी नहीं था ।
नरेन्द्रदेव स्वतंत्रता-पूर्व और स्वातंत्र्योत्तर भारत की राजनीति में निरंतर सक्रिय रहे । 1946 में वे उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य तथा 1952 में राज्य सभा के सदस्य चुने गए । उन्हें डी. लिट् (मानद) की उपाधि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1948 में ही प्रदान की गई थी । विभिन्न संस्थाओं से सक्रिय संबद्ध रहे आचार्य नरेन्द्रदेव 1926 में काशी विद्यापीठ के अध्यक्ष तथा 1947 में लखनऊ विश्वविद्यालय एवं 1952 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए ।
नेहरू स्मारक संग्रहालय द्वारा आचार्य नरेन्द्रदेव की अंग्रेज़ी रचनाएँ और कागज़ात सेलेक्टिड वर्क्स ऑफ़ आचार्य नरेन्द्रदेव शीर्षक से चार खंडों में तथा हिन्दी रचनाएँ और काग़ज़ातों का संकलन आचार्य नरेन्द्रदेव वाङ्मय शीर्षक से तीन खंडों में प्रकाशित हैं । इस विनिबंध के लेखक मस्तराम कपूर (जन्म : 22 दिसंबर 1926 ई., कांगड़ा) एमए., पी-एच.डी., प्रतिष्ठित लेखक हैं । आपकी मौलिक, अनूदित और संपादित कृतियों की संख्या पचास से भी अधिक है, जिनमें कविता, कहानी, उपन्यास, बाल साहित्य और वैचारिक निबंध शामिल हैं । आप दिल्ली प्रशासन से सेवानिवृत्त सूचना अधिकारी हैं । आप दिल्ली मासिक, बच्चे और हमतथा रसालो संवाद पत्रिकाओं के संपादन से जुड़े रहे हैं तथा आपने स्वतंत्रता सेनानी ग्रंथमाला (11 खंडों में) का संपादन भी किया है । आपके निबंधों की एक महत्वपूर्ण पुस्तक अस्तित्ववाद से गाँधी तक है । संप्रति आप दिल्ली में रहकर स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं ।
अनुक्रम
1
आचार्य नरेन्द्रदेव : संक्षिप्त जीवनी
7
2
आचार्य नरेन्द्रदेव : समग्र वाड्मय के आलोक में
49
3
आचार्य नरेन्द्रदेव : समकालीनों की नज़र में
63
4
आचार्य नरेन्द्रदेव : प्रतिनिधि विचार
92
परिशिष्ट
क.
आचार्य नरेन्द्रदेव के जीवन की प्रमुख घटनाएँ
132
ख.
संदर्भ-ग्रंथ सूची
134
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