भारतीय समाज में नारी और श्रमिक दोनों ही वर्ग ऐसे हैं, जिन्हें सबसे अधिक सहना और दबना पड़ता है। उनकी नियति ही सब कुछ सहने और दबने की बन गई है। इनमें भी नारी सर्वाधिक दबावों में रहने को विवश है। पुरुष-प्रधान और पुरुष-प्रभुत्व वाली इस समाज व्यवस्था तथा सामंती-पूँजीवादी संस्कृति के संदर्भ में नारी शोषण की कहानी, हमारी सभ्यता की बुनावट और बनावट को आलोकित करती है।
पुरानी सिहांसन बत्तीसी में नर-नारी की बेवफ़ाई और बुराई के उलाहने हैं। सिंहासन बत्तीसी में नारी स्थिति और गति के माध्यम से समूची वास्तविकता को व्यक्त करने के साथ नारी के आंतरिक और बाह्य संघर्ष का साक्षात्कार संभव हो- इस प्रयोजन से यह उपन्यास श्रृंखला प्रस्तावित की गई है।
आधुनिक सिंहासन बत्तीसी में बत्तीस नारियाँ अपनी कहानियाँ कहेंगी या उनकी कहानी कही जाएगी। सिंहासन बत्तीसी में नारी को कठपुतली कहा गया है - यह प्रयोग सांकेतिक है। आधुनिक सिंहासन बत्तीसी में भी नारी कठपुतली है, क्योंकि आज भी नारी-पुरुष इस पितृसत्तात्मक समाज व्यवस्था में कठपुठतली की तरह संचालित होते हैं।
सिंहासन बत्तीसी के इस भाग में कठपुतलियों की दशा, दिशा, मनःस्थिति और उनकी गतिविधियों का चित्रण किया गया है।
सिंहासन बत्तीसी के सभी खंड रचना प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित होने जा रहे हैं - यह संतोष का विषय है। श्री रामशरण नाटाणी इसके लिए धन्यवाद के पात्र हैं। उन्होंने पूरे मनोयोग और श्रम से इस उपन्यास श्रृंखला को प्रकाशित किया है !!
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