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आधा आदमी- Aadha Aadmi

$33
Specifications
HBI143
Author: Rajesh Malik
Publisher: Manish Publications, Delhi
Language: Hindi
Edition: 2018
ISBN: 9789381435885
Pages: 239
Cover: HARDCOVER
9x6 inch
400 gm
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Book Description
पुस्तक परिचय
पिछले कुछ समय से हिन्दी कया-साहित्य में जिन लोगों ने अपनी पहचान बनाई है उनके राजेश मलिक का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। प्रायः यह देखा गया है युवा कथाकार गद्य के परम्परागत डोंचे से चाहर आकर नये-नये विषयों की तलाश करते है और इस प्रक्रिया में उस विषय में गहरे अध्ययन और शोध के बाद अपने अनुभवों और संवेदनाओं के साथ रचना करते है। राजेश मलिक का उपन्यास आधा आदमी ऐसे विषय को केन्द्र में लिखा गया है जिस पर हिन्दी कथा साहित्य में अपेक्षाकृत बहुत कम पाया जाता है। यह उपन्यास हमारे जीवन के अत्यंत उपेक्षित और अकेले पन का जीवन जीने वाले किन्नरों को केन्द्र में रखकर लिया है। सालों के अध्ययन के सहारे किन्नरों की जीवन को केन्द्र में रखकर लिखा गया यह उपन्यास हमारे समय के ऐसे समुदायों पर लिखा है जो अपने हक के लिए अपनी आवाज बुलंद कर रहें है। इस क्रम में राजेश मलिक ने उनकी पीड़ाओं और संवेदनाओं को अत्यंत मार्मिक ढंग से इस उपन्यास में उठाया है। समाज में नए-नए मनोभावों वाले समुदायों की उपस्थिति और उनके सुख दुख को सृजनशीलता के रुप में प्रस्तुत करना आज हिन्दी कथा साहित्य की सबसे बड़ी चुनौती है। रचनाकार अपनी अभिव्यक्ति के लिए नये-नये विषयों की तलाश करता है। उपन्यास के जितने ही अंश मैंने पढ़े हैं उसके आधार पर कहा जा सकता है कि यह उपन्यास हिन्दी कथा-साहित्य में किन्नरों के जीवन को रेखांकित करने वाली एक विशिष्ट रचना के रूप में जाना जायेगा और पाठक इसी रूप में इसका स्वागत करेंगे।

लेखक परिचय
योग्यता : एम.ए. (अर्थशास्त्र)

प्रकाशित कहानी संग्रह: पाँच फुट दस इंच

रचनाएँ : हिन्दी की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ तथा आकाशवाणी से प्रसारित हैं।

थियेटर : एक था गधा, अँधेर नगरी चौपट राजा, संकल्प, यह धुआँ कब तक रहेगा, अपनी रोशनी खुद बनो, सुबह का भूला, हम सब एक हैं, मारे गए राम लोटन, जागो रे जागो आदि में अभिनय और निर्देशन।

दूरदर्शन कहानियों पर : पथरीले रास्ते (सीरियल) टेलीफिल्म मेरा हक में अभिनय किया।

फिल्म निर्माण: गैंग (भोजपुरी), पाप की लंका (अवधी), मेरे देश की धरती, डियर फ्रेन्ड (हिन्दी), जय राम जी (हिन्दी, अवधी)।

निर्देशन : पाप की लंका, मेरे देश की धरती, डियर फ्रेन्ड, जय राम जी।

फिल्म : कुसूर, पिया-पिया बोले जिया, बुंलदी, पाप की लंका, मेरे देश की धरती, डियर फ्रेन्ड, जिद्दी आशिक, गैंग, जय माँ विन्धवासिनी आदि।

सम्मान : प्रेमचंद सम्मान, शब्द निष्ठा सम्मान, जनवादी लेखक संघ, श्री राममूर्ति स्मारक बरेली, दिल्ली प्रेस सरिता, स्पेनिन रांची स्मृति सम्मान तथा कथादेश, कहानी प्रतियोगिता में पुरस्कृत सेवार्थ फाउण्डेशन, देहात फाउण्डेशन, कहानी प्रतियोगिता में पुरस्कृत।

सम्प्रति : स्वतन्त्र लेखन, फिल्म निर्माण।

भूमिका
मैं अपनी बात राइनेर मारिया रिल्के की पंक्तियों से शुरू करता हूँ मैं भी जीवन और कला को अलग-अलग नहीं करना चाहता। और यह बिल्कुल सच है कि जीवन ऐसे गुजरता जाता हैं-गुम हो चुके अनुभवों या क्षतियों के लिए समय प्रधान नहीं करता। यह बात उस व्यक्ति के लिए तो विशेषतया सच है, जो कलाकर है। कला का अनुगमन एक जीवन अवधि के लिए बहुत बड़ा, बहुत कठिन और बहुत लम्बा रास्ता है।

आज तक मैंने अपने लेखन को वस एक ऐसा काम समझा है जो किया जाना है।

लिखना-पढ़ना कब मेरे जुनून में बदल गया। और मेरा जुनून कब मेरे पागलपन में बदल गया मुझे पता ही नहीं चला। 'आधा आदमी' उपन्यास पूरा हुआ। जैसे लगता है एक सपना पूरा हुआ है। यह उपन्यास मेरे ज़ेहन में मेरी साँसों की तरह हमेशा चलता रहा। वर्षों तक यह मुझे कचोटता रहा।

इस बीच मैंने कई कहानियाँ और फिल्मों के लिए पटकथाएँ लिखी। फिल्में भी बनायी। थियेटर भी किया। बीच-बीच में में किन्नरों से भी मिलता रहा।

उनके बीच सुबह से शाम कब हो जाती मुझे पता ही नहीं चलता। उनकी समस्या, पीड़ा, उनकी क्रिया-कलाप, उनकी भाषा और उनके अन्तरंग जीवन की थाह पाने की कोशिश करता रहा। और रुक-रुककर मैं 'आधा आदमी' लिखता रहा। लिखते-लिखते 17 वर्ष बीत गए। कभी-कभी तो मुझे ऐसा लगता था कि मैं भी उनके बीच का एक हिस्सा हूँ। धीरे-धीरे मेरा मन उनमें रमता गया।

दो शब्द
'आधा आदमी' राजेश मलिक का पहला उपन्यास है। थर्ड जेंडर विमर्श इस उपन्यास की आत्मा है। इस उपन्यास की रचना राजेश मलिक ने वर्षों शोध करने के उपरांत की है। इस उपन्यास में किन्नरों की त्रासदी, उनकी समस्याओं, उनके रहन-सहन व रीति-रिवाजों को पूरी तरह से और बहुत ही अच्छे ढंग से प्रदर्शित किया गया है। उपन्यास में यह भी दिखाया गया है कि एक आम आदमी किन्नरों का किस तरह से दैहिक शोषण करता है। यद्यपि किन्नरों पर पहले भी कुछ लेखन किया गया है किंतु राजेश मलिक ने अपेक्षाकृत कुछ ज्यादा ही गहराई और गूढ़ता से एक शोध परक दृष्टि से इस उपन्यास की रचना की है। इसमें किन्नरों की जीवन शैली का अलग-अलग तरह से चित्रण किया गया है और कई-कई कोणों से उन पर प्रकाश डाला गया है। कथा-वस्तु व भाषा काफी सरल व सुगम है। हाँ उनकी प्रवृत्ति को ध्यान में रखते हुए गालियों या कह लो कुछ अशोभनीय शब्दों का भी प्रयोग किया है जिसे अश्लीलता नहीं कहा जा सकता। उपन्यास में यह जरूरी लगता है कहानी में जीवंतता लाने के लिए क्योंकि गाली-गलौज इस समाज की प्रकृति और प्रवृत्ति होती है। जैसे कि कहा जाता है कि गाली-गलौज बनारस की संस्कृति है। अतः इस उपन्यास को समझने-बूझने के लिए इसकी बुनावट नहीं इसकी आत्मा को समझने की जरूरत है। इसे लिखने और अपनी मेहनत में राजेश मलिक कितना सफल हुए हैं यह पाठक तय करेंगे। बाकी मुझे विश्वास है कि किन्नरों पर लिखी गई दुर्लभपुस्तकों के बीच ये पुस्तक अपना अलग ही स्थान बनाएगी तथा पाठकों को नया बोध और सोचने के नए फलक देगी।

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