कहा रसखान सुख संपति सुमार महँ
कहा महाजोगी है लगाए अंग छारको । कहा साधे पंचानल, कहा सोए बीच जल,
कहा जीत लीन्हें राज सिंधु वारापारको । । जप बार बार, तप संजम, अपार, बत,
तीरथ हजार अरे! बूझत लबारको? सोइ है गँवार जिहि कीन्हों नाहिं प्यार, नाहिं
सेयो दरबार यार नंदके कुमारको । । कंचनके मंदिरन दीठि ठहरात नायँ
सदा दीपमाल लाल रतन उजारेसों । और प्रभुताई तव कहाँ लौं बखानौं, प्रति
हारिनकी भीर भूप टरत न द्वारेसों ।। गंगाजूमें न्हाय मुकताहल लुटाय, बेद
बीस बार गाय ध्यान कीजै सरकारेसों । ऐसे ही भये तौ कहा कीन्हों, रसखान जुपै,
चित्त दै न किन्ही प्रीति पीत पटवारेसों ।।
गोपी प्रेम पर कुछ भी लिखना वस्तुत मुझ सरीखे मनुष्यके लिये अनधिकार चर्चा है । गोपी प्रेमका तत्त्व वही प्रेमी भक्त कुछ जान सकता है, जिसको भगवान्की ह्लादिनी शक्ति श्रीमती राधिकाजी और आनन्द तथा प्रेमके दिव्य समुद्र भगवान् सच्चिदानन्दघन परमात्मा श्रीकृष्ण स्वयं कृपापूर्वक जना देते हैं । जाननेवाला भी उसे कह या लिख नहीं सकता, क्योंकि गोपी प्रेमी का प्रकाश करनेवाली भगवान्की वृन्दावनलीला सर्वत्र अनिर्वचनीय है । वह कल्पनातीत, अलौकिक और अप्राकृत है । समस्त व्रजवासी भगवान्के मायामुक्त परिकर हैं और भगवान्की निज आनन्दशक्ति, योगमाया श्रीराधिकाजीकी अध्यक्षतामें भगवान् श्रीकृष्णकी मधुरलीलामें योग देनेके लिये व्रजमें प्रकट हुए हैं । व्रजमें प्रकट इन महात्माओंकी चरणरजकी चाह करते हुए सृष्टिकर्ता ब्रह्मा स्वयं कहते हैं
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu ( हिंदू धर्म ) (12489)
Tantra ( तन्त्र ) (987)
Vedas ( वेद ) (705)
Ayurveda ( आयुर्वेद ) (1888)
Chaukhamba | चौखंबा (3349)
Jyotish ( ज्योतिष ) (1442)
Yoga ( योग ) (1092)
Ramayana ( रामायण ) (1389)
Gita Press ( गीता प्रेस ) (731)
Sahitya ( साहित्य ) (23027)
History ( इतिहास ) (8218)
Philosophy ( दर्शन ) (3370)
Santvani ( सन्त वाणी ) (2532)
Vedanta ( वेदांत ) (121)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist