यह पुस्तक सीएसआईआर की मासिक लोकप्रिय विज्ञान पत्रिका "विज्ञान प्रगति" के श्रेष्ठ 80 आलेखों का एक अनोखा संकलन है। इस पत्रिका का प्रकाशन, सीएसआईआर ने वर्ष 1952 में आरंभ किया था। विगत वर्ष 2022 में 'विज्ञान प्रगति' ने अपने नियमित निरंतर प्रकाशन के 70 वर्ष पूरे किए हैं। सीएसआईआर की स्थापना को भी 80 वर्ष पूरे हुए हैं। इसी महत्वपूर्ण पड़ाव को यादगार बनाने के उद्देश्य से विज्ञान प्रगति के श्रेष्ठ 80 आलेखों पर केंद्रित यह पुस्तक लाने की अनुशंसा सीएसआईआर की विशेष सलाहकार समिति ने की। 70 वर्षों के अंकों में से श्रेष्ठ 80 आलेखों का चयन करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। यद्यपि प्रत्येक प्रकाशित लेख श्रेष्ठ और महत्वपूर्ण होता है, परंतु विषयवस्तु, रोचकता तथा प्रभावोत्पादकता जैसे पहलुओं को संज्ञान में लेकर श्रेष्ठ 80 आलेखों का चयन संपन्न कर उन्हें इस दस्तावेज में सम्मिलित किया गया है। विषय विविधता और रोचकता में वृद्धि के लिए जिन श्रेणियों के अंतर्गत प्रकाशित आलेखों को इस दस्तावेज में संकलित किया गया, उनमें शामिल हैं- समसामयिक विज्ञान लेख, वैज्ञानिकों की जीवनी एवं साक्षात्कार, विज्ञान गल्प, विज्ञान कविता और संपादकीय ।
विज्ञान गल्प तथा विज्ञान कविताएं विज्ञान लोकप्रियकरण की सशक्त विधाएं हैं और 'विज्ञान प्रगति' इन स्तंभों को वर्षों से नियमित रूप से प्रकाशित करती आ रही है इसलिए इन्हें इस संकलन में स्थान दिया जाना आवश्यक था। संपादकीय भी किसी पत्रिका का एक महत्वपूर्ण स्तंभ होता है और पाठकों के मन पर इनकी स्थायी छाप होती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए इस संकलन में कुछ उत्कृष्ट प्रकाशित संपादकीय को भी स्थान दिया गया है। संक्षेप में कहें, तो यह संकलन विज्ञान व प्रौद्योगिकी के विविध पहलुओं पर 'विज्ञान प्रगति' में प्रकाशित श्रेष्ठ 80 लेखों का एक प्रामाणिक, ऐतिहासिक और अनोखा दस्तावेज है। यह पुस्तक विद्यार्थियों, शोधार्थियों, शिक्षकों, वैज्ञानिकों तथा विज्ञान संचारकों के लिए समान रूप से उपयोगी साबित होगी, ऐसी हमें उम्मीद है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी मनुष्यों को एक साथ जोड़ते हैं। जितनी भी खोजें और विश्व में आविष्कार हुए हैं, वे सभी मानवता की सेवा के निहितार्थ हुए हैं। पहिया, विद्युत बल्ब, टेलीफोन, हवाई जहाज जैसे अनगिनत आविष्कारों की आप कल्पना कर सकते हैं। इस प्रसंग से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि विज्ञान और तकनीक का सीधा संबंध हमारे समाज से होता है। जो समाज वैज्ञानिक रूप से जितना उन्नत होता है, यह राष्ट्र उतना ही तर्कसंगत और प्रगतिशील होता है।
भारत के पास ज्ञान-विज्ञान का एक समृद्ध अतील रहा है। भारत की वैज्ञानिक विरासत के मुख्य साक्ष्य हैं शून्य की खोज और चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट की वैज्ञानिक गवेषणाएं। हमारे देश के पारंपरिक ज्ञान वैज्ञानिकता से परिपूर्ण रहे हैं। ब्रिटिश दासता के दौर में वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में भारतीयों के साथ भेदभाव के बावजूद प्रफुल्ल चन्द्र राय, जगदीश चन्द्र बसु, सी.वी. रामन जैसे हमारे वैज्ञानिक सपूतों ने विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिए।
1947 में भारत को जब आजादी मिली तो विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विविध क्षेत्रों में अनुसंधान कार्य तेजी से आरंभ हुए। प्रयोगशालाओं के निर्माण किए गए। कृषि, रक्षा, जैविकी, भौतिकी, रसायन, इंजीनियरिंग आदि अनेक क्षेत्रों में भारतीय वैज्ञानिकों ने महत्वपूर्ण कार्य किए।
वैज्ञानिक अनुसंधान सहित जनसामान्य को वैज्ञानिकों के कार्यों की जानकारी देने और विज्ञान के विभिन्न पहलुओं से समाज को अवगत कराने के उद्देश्य से वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर) ने 1951 में प्रकाशन एवं सूचना निदेशालय (पीआईडी) का गठन किया जहां से 1952 में 'विज्ञान प्रगति' नामक एक मासिक विज्ञान पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ। आरंभिक वर्षों में यह पत्रिका सीएसआईआर की प्रयोगशालाओं में चल रहे अनुसंधान तथा उनके औद्योगिक अनुप्रयोगों की जानकारी समाज से साझा करती रही, परंतु आगे चलकर इसे एक लोकप्रिय विज्ञान पत्रिका का स्वरूप दे दिया गया जिसमें विज्ञान व प्रौद्योगिकी से जुड़े लेख विभिन्न विधाओं में प्रकाशित किए जाने लगे। ब्लैक एंड व्हाइट से शुरू हुई यह पत्रिका आगे चलकर टू कलर में मुद्रित होने लगी और फिर पूरी तरह रंगीन कर दी गई। विषयों की विविधता, जानकारी और प्रस्तुतीकरण इस पत्रिका के मजबूत पक्ष हैं।
भारत में हिंदी जानने, बोलने, पढ़ने और लिखने वाले लोगों की आवादी अधिक है, वहीं विज्ञान की प्रामाणिक जानकारी रोचकता के साथ प्रस्तुत करने वाली पत्रिकाओं की संख्या कम है। विज्ञान प्रगति ने प्रामाणिकता से कभी समझौता नहीं किया। इस पत्रिका ने अनुभवी विज्ञान लेखकों सहित युवा प्रतिभाशाली रचनाकारों को भी लेखन के लिए हमेशा प्रेरित किया। संपादकों के उचित मार्गदर्शन ने इस पत्रिका को नई ऊंचाइयां प्रदान की। संस्थान के पास हमेशा कुशल व अनुभवी डिजाइनिंग और प्रोडक्शन टीम रही, जिनकी वजह से पत्रिका क आकर्षण पाठकों के मन में बना रहा। ये तमाम कारण हैं, जिनकी वजह से विज्ञान पत्रिका देश की सबसे लोकप्रिय विज्ञान पत्रिकाओं अपना प्रमुख स्थान रखती है।
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