इस दुनिया में कुल कितनी भाषाएँ हैं, इसकी सर्वमान्य सूची किसी के भी पास नहीं है। इफिर भी, अनुमान है कि दुनिया में साढ़े छह हजार से अधिक भाषाएँ हैं, लेकिन ऐसी भाषाएँ डेढ़ सौ से ज्यादा नहीं हैं, जिन्हें दस लाख से अधिक लोग बोलते-समझते और उसमें लिखना-पढ़ना करते हों। मुगल काल के भारत में अरबी-फारसी और उर्दू को बढ़ावा मिला। अंग्रेजों ने आकर इसमें दखल दिया और शिक्षा तथा व्यवसाय में अंग्रेजी लागू कर दी। कालांतर में हिन्दी इलाकों में उन्होंने ही देवनागरी लिपि में हिन्दी अनिवार्य कर दी तो अरबी-फारसी और उर्दू का प्रभाव सीमित होने लगा। जम्मू-कश्मीर की राजभाषा उर्दू है, मगर कश्मीर में कश्मीरी, जम्मू में डोगरी और लद्दाख में भोटी का प्रचलन है। कभी कश्मीर में संस्कृत चला करती थी, पर अब वहाँ वह अप्राप्य है। भारत से पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका और तिब्बत का रिश्ता एक ऐसा रिश्ता है कि उसे आप अलग-अलग देशों के रिश्तों के रूप में पकड़ ही नहीं सकते। एक दिन भारत के आसपास के ये सारे देश एकता की ओर अवश्य बढ़ेंगे, जैसे यूरोप के देश बढ़े हैं। भारतीय उपमहाद्वीप तो पहले से ही वैसा रहा है। भारत के आसपास के देश भारतीयता की हवाओं में साँस लेते और अपनी हवाओं से उसे प्रभावित करते ही रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के बहुभाषावाद को मान्यता मिलने के बाद भारतीय भाषाओं में आपसी आदान-प्रदान के लिए अनुवाद प्रक्रिया को अब और तेज कर देना चाहिए। बाङ्ला का 'गणदेवता' (ताराशंकर बंद्योपाध्याय), मलयाळम् का 'मछुआरे' (तकषि शिवशंकर पिल्लै), मराठी का 'मृत्युंजय' (शिवाजी सावंत), कन्नड का 'पर्व' (भैरप्पा), तमिळ का 'चित्रप्रिया' (अखिलन) और ओड़िया का 'दो सेर धान' (फकीर मोहन सेनापति) जब अनूदित होकर हिन्दी में छपते हैं तो एकाएक कैसे उनके रचयिता भारत के प्रतिनिधि लेखक के रूप में उभर आते हैं और कैसे वे प्रेमचंद के 'गोदान', अज्ञेय के 'शेखर एक जीवनी', फणीश्वरनाथ रेणु के 'मैला आँचल', अमृतलाल नागर के 'अमृत और विष', यशपाल के 'मेरी तेरी उसकी बात', श्रीलाल शुक्ल के 'राग दरबारी', भीष्म साहनी के 'तमस', कृष्णा सोबती के 'जिंदगीनामा' और विनोद कुमार शुक्ल के 'नौकर की कमीज' की तरह हिन्दी का कंठहार हो जाते हैं। हिन्दुस्तान का दो तिहाई हिस्सा हिन्दी जानता, समझता और पढ़ता-बोलता है तो हिन्दी का इसीलिए यह कर्तव्य भी ज्यादा बनता है कि वह ऐसे सार्वदेशिक प्रयत्न अधिक से अधिक खुद करे ताकि अन्य भाषाएँ प्रेरणा पाकर खुद भी वैसा करने की कोशिश करें। हिन्दी भारत की ही नहीं, दुनिया की एक जरूरी और अनिवार्य भाषा बनकर उभरी है।
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