समकालीन भारतीय साहित्य ने अपने संपादन मंडल की सहमति से समय-समय पर उन विशिष्ट साहित्यकारों की जन्मशती पर केंद्रित रचनाओं को प्रकाशित किया है, जिन्होंने भारतीय साहित्य को एक नई दिशा एवं ऊँचाई दी और अपनी भाषा को एक नई पहचान। इस प्रयास में हमने पिछले कुछ वर्षों में रामविलास शर्मा, भीष्म साहनी, नगेंद्र, अमृतलाल नागर, जगदीश चंद्र माथुर (हिंदी), एन.वी. कृष्णा वारियार (मलयाळम्), इस्मत चुग़ताई (उर्दू), शंख घोष (बाङ्ला), अभिनव गुप्त (संस्कृत), बुच्चि बाबू (तेलुगु) पर महत्त्वपूर्ण लेखकों की रचनाएँ प्रकाशित की हैं। इसके आगामी अंकों में भी हम विशिष्ट रचनाकारों की जन्मशती के अवसर पर विषय विशेषज्ञ से रचनाएँ आमंत्रित कर प्रकाशित करेंगे। इसी कड़ी में हमने प्रस्तुत अंक आचार्य नलिन विलोचन शर्मा और डॉ. शिवमंगल सिंह 'सुमन' के साहित्यिक योगदान पर केंद्रित किया है।
नलिन विलोचन शर्मा (जन्म 1916, निधन 1961) हिंदी कविता में 'प्रपद्यवाद' के प्रवर्तक कवि ही नहीं, हिंदी आलोचना को नया आयाम देनेवाले आलोचक भी थे। गंभीर अध्येता, सुयोग्य अध्यापक और प्रबुद्ध लेखक होने के साथ वे सामाजिक-राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत जागरूक व्यक्ति थे। उन्होंने साहित्यालोचन के अलावा अन्यान्य विषयों पर हिंदी और अंग्रेज़ी में जो भी और जितना कुछ लिखा, वह पठनीय और मननीय ही नहीं, पर्याप्त विचारोत्तेजक भी है। कविता, कहानी, आलोचना, निबंध, जीवनी, संस्मरण आदि कई विधाओं में लिखकर उन्होंने हिंदी साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान किया।
नलिन विलोचन शर्मा ने आलोचना को अकादमिक रूढ़ियों से मुक्त किया और उसे आधुनिकता से जोड़कर नई दृष्टि प्रदान की। रूपवादी आलोचक होते हुए भी उन्होंने किसी रचना की आलोचना करते हुए उसके प्रतिपाद्य को अपना आधार बनाया। नवीनता के आग्रही होने के साथ वे रचना में निहित मूल तत्त्व के अन्वेषक और समर्थक रहे। उन्होंने मार्क्सवादी और आधुनिकतावादी ही नहीं, प्रगतिवादी खेमों की आलोचनात्मक अवधारणाओं से रचना की मुक्ति और निर्बंधता की वकालत की। आलोचक के रूप में नलिन विलोचन शर्मा कथा साहित्य में भी, उपन्यास विधा के विशेष पारखी थे। पश्चिम के उपन्यास साहित्य के समानांतर उन्होंने हिंदी उपन्यास की आलोचना को विकसित करने का विशेष उद्यम किया।
नलिन जी ने हिंदी की सर्वमान्य और प्रतिष्ठित विधा-काव्य के समानांतर, तब उभरती हुई उपन्यास विधा (जिसे नलिन जी ने पहले 'अन्त्यज' करार दिया था) में छिपी अनंत संभावनाओं को उजागर किया था और गोदान के वर्षों बाद प्रकाशित मैला आँचल को भी सम्मानजनक स्थान पर बिठाने का उपक्रम किया।
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