शिक्षा मानव का सर्वांगीण विकास करती है। भारतीय समाज में शिक्षा को सदैव ही महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। स्वतन्त्रता के पूर्व और बाद में शिक्षा जगत में समय-समय पर परिवर्तन किये गये हैं। यह परिवर्तन शिक्षा नीतियों के कार्यान्वयन से संभव हो सका।
प्राचीन और सनातन भारतीय ज्ञान और विचार की समृद्ध परम्परा के आलोक में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 तैयार की गई है। ज्ञान, प्रज्ञा और सत्य की खोज को भारतीय विचार परम्परा और दर्शन में सदा सर्वोच्च लक्ष्य माना जाता है। प्राचीन भारत में शिक्षा का लक्ष्य सांसारिक जीवन अथवा स्कूल के बाद के जीवन की तैयारी के रूप में ज्ञान अर्जन नहीं बल्कि पूर्ण आत्मज्ञान और मुक्ति के रूप में माना गया था। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुसार 2040 तक भारत के लिए एक ऐसी शिक्षा प्रणाली का लक्ष्य होगा जो कि किसी से पीछे नहीं हैं। ऐसी शिक्षा व्यवस्था जहाँ किसी भी सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि से सम्बन्धित शिक्षार्थियों को समान रूप से सर्वोच्च गुणवत्ता की शिक्षा उपलब्ध हो सकेगी। यह 21वीं सदी की पहली शिक्षा नीति है जिसका लक्ष्य हमारे देश के विकास के लिए अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करना है तथा भारत की परम्परा और सांस्कृतिक मूल्यों के आधार को बरकरार रखते हुए 21वीं सदी की शिक्षा के लिए आकांक्षात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करना है।
भारत एक विकसित राष्ट्र बनने के साथ-साथ आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर है। वर्तमान में सीखने के परिणामों और जो आवश्यक है उनके मध्य की खाई को प्रारम्भिक बाल्यावस्था से देखभाल और उच्चतर शिक्षा के माध्यम से शिक्षा में उच्चतम गुणवत्ता, इक्विटी और सिस्टम में अखण्डता लाने वाले प्रमुख सुधारों के जरिए पूर्ण किया जा सकता है।
यह नीति निश्चित तौर पर प्रत्येक स्तर पर शिक्षकों को समाज के सर्वाधिक और श्रेष्ठ सदस्य के रूप में पुनः स्थान देने के लिए वचनबद्ध है। इस नीति द्वारा शिक्षकों को सक्षम बनाने के लिए हर संभव कदम उठाए जाने की योजना है जिससे कि वे अपने कार्य को प्रभावी रूप से कर सकें। भारतीय भाषाओं को महत्व देते हुए अभियान्त्रिकी, चिकित्सा और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों सहित लगभग सभी पाठ्यक्रमों में भारतीय भाषा का विकल्प रखा गया है। बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान को सर्वाधिक प्राथमिकता दी गई है और साथ ही साथ तकनीकी के यथासंभव उपयोग का भी उल्लेख है।
इस नीति में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन की बात कही गयी है जिसमें बहु विषयक विश्वविद्यालयों की स्थापना तथा अन्तर्विषयक शोध प्रमुख है। राष्ट्रीय अनुसंधान फाउन्डेशन की स्थापना, डिग्री कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण बदलाव, अकादमिक क्रेडिट बैंक की स्थापना, मल्टीपल एन्ट्री एवं मल्टीपल एक्जिट आदि महत्वपूर्ण कदम है।
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